कहा की ले जाओ और मेरे पुत्र को मार दो।
Prahlad ko yatnaye dena: प्रल्हाद जी को यातनाएं देना
प्रल्हाद जी को यातनाएं दी गई। तीखी दाढ़, विकराल वादन, लाल-लाल दाढ़ी-मूँछ वाले असुर हाथों में त्रिशूल लेकर प्रल्हाद जी पर वार कर रहे है। लेकिन प्रल्हाद जी भगवान विष्णु का नाम जप करने में लगे हुए है। भगवान की कृपा से इनका बाल भी बांका नही हुआ।
जब अस्त्रों से बात नही बनी तो हिरण्यकशिपु को शंका हुई। उसने बड़े-बड़े हाथियों को बुलवाया और कहा की मेरे पुत्र को कुचल दो। लेकिन हाथी भी प्रल्हाद जी को नही कुचल पाये।
फिर साँपों वाले कुँए में प्रल्हाद जी को डाला गया। लेकिन हरि के नाम से सांप भी प्रल्हाद जी को प्यार करने लगे।
पुरोहितों से एक भयंकर कृत्या राक्षसी को बुलाया गया। लेकिन प्रल्हाद को मारने में वो भी नाकाम रही।
प्रल्हाद को पहाड़ की चोटी से नीचे फेक दिया गया। लेकिन प्रल्हाद जी हरि नाम में इतना मगन थे की उन्हें कोई होश नही है। बस हरि का नाम जप किये जा रहे है।
इसके बाद प्रल्हाद जी को विष पिलाया गया, अँधेरी कोठरी में रखा गया, बर्फीली जगह रखा गया, समुद्र में बारी-बरी डलवाया गया। लेकिन भक्त प्रल्हाद का एक बाल तक बांका नही कर सकता कोई।
आगे की कथा पढ़ने के लिए पार्ट 2 पढ़िए —
Vah bhagvan
भक्त प्रल्हाद (Bhakt Prahlad ) की कहानी
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