Pandavas Birth(Janam) story in hindi
पांडव जन्म कहानी/कथा
महाराज पाण्डु का विवाह कुंती और माद्री जी के साथ हुआ। फिर पाण्डु ने अनेक राजाओं को रण क्षेत्र में हराया। राजा पाण्डु ने अपने बाहुबल से जीते हुए धन को भीष्म, सत्यवती तथा माता अम्बिका तथा अम्बिालिका को भेंट किया। उन्होंने विदुरजी के लिये भी वह धन भेजा, पाण्डु ने अनेक प्रियजन को उस धन से तृप्त किया। पाण्डु के पराक्रम से धृतराष्ट्र बड़े-बड़े सौ अश्वमेध यज्ञ किये तथा प्रत्येक यज्ञ में एक-एक लाख स्वर्णमुद्राओं की दक्षिणा दी।
इतना सब जितने के बाद पाण्डु ने थोड़े दिन अपनी पत्नियों सहित वन में जाने को उचित समझा। पाण्डु कुंती और माद्री सहित वन में धर्म पूर्वक रहते और शिकार करते।
ऋषि किंदम का पाण्डु को शाप : Rishi kindama Cursed(Shrap) to pandu in hindi
एक बार पाण्डु शिकार कर रहे थे। उन्होंने गलती से एक शिकार समझकर शब्द भेदी बाण चला दिया। वहां पर एक मैथुन करता हुआ मृग जोड़ा था। गलती से वो बाण उस मृग जोड़े को लग गया। ये मृग और कोई नहीं बल्कि ऋषि किंदम और उनकी धर्म पत्नी थी। तब किंदम ऋषि ने अपने असली रूप में आये और घायल अवस्था में ही पाण्डु को शाप दिया कि तुमने अकारण मुझ पर और मेरी पत्नी पर बाण चलाए हैं, जब हम विहार कर रहे थे। अब तुम जब कभी भी अपनी पत्नी के साथ सम्बन्ध बनाओगे तो उसी समय तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी। इतना कहते है ऋषि और ऋषि पत्नी की मृत्यु हो गई।
इस शाप से पाण्डु अत्यन्त दुःखी हुये और अपनी पत्नियों सहित हस्तिनापुर में आ गए। पाण्डु ने भीष्म, धृतराष्ट्र और विदुर से कहा की मुझसे एक ऋषि और ऋषि पत्नी की हत्या हो गई है। अब आप मेरा प्रायश्चित बताइये। सभी ने विचार विमर्श करके निर्णय लिया की पाण्डु को वनवास में जाना होगा। पाण्डु जी वनवास में जाने के लिए तैयार हो गए।
जब पाण्डु वन में जा रहे थे तब कुंती और माद्री आई और उन्होंने भी साथ जाने के लिए निवेदन किया। पाण्डु जी ने बहुत समझाया लेकिन दोनों नहीं मानी। अब पाण्डु अपनी पत्नियों कुंती और माद्री सहित वनवास में जाते हैं।
एक बार वनवास के दौरान राजा पाण्डु ने अमावस्या के दिन बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों को ब्रह्मा के दर्शनों के लिये जाते हुये देखा। उन्होंने उन ऋषि-मुनियों से स्वयं को भी साथ ले जाने के लिए निवेदन किया किया।
लेकिन ऋषि-मुनियों ने कहा की राजन! कोई भी निःसन्तान पुरुष ब्रह्मलोक जाने का अधिकारी नहीं हो सकता। अतः हम आपको अपने साथ ले जाने में असमर्थ हैं।”
ऋषि-मुनियों की बात सुन कर पाण्डु और भी ज्यादा दुखी हुए और अपनी पत्नी से बोले- कुन्ती! मेरा जन्म लेना ही बेकार जा रहा है क्योंकि सन्तानहीन व्यक्ति देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण से मुक्त नहीं हो सकता।
कुंती ने बताया की आप चिंता क्यों करते हैं? ऋषि दुर्वासा ने मुझे एक मन्त्र दिया है। जिसके फलस्वरूप मैं जिस भी देवता का आह्वान करुँगी वो हमें मनवांछित फल देगा। आप बताइये कि मैं किस देवता का आह्वान करूँ?
Yudhishthira Bhima Arjuna Nakula and Sahadeva Birth Story in hindi : युधिष्ठिर भीम अर्जुन नकुल और सहदेव की जन्म कहानी/कथा
पाण्डु ने कहा की आप धर्म को आमन्त्रित कीजिये। आह्वान करने पर धर्मदेव जी आये और उन्होंने कुंती पाण्डु को एक पुत्र दिया। जिसका नाम युद्धिष्ठिर(Yudhishthira) रखा गया।
पाण्डु ने कुन्ती को वायुदेव को आमन्त्रित करने की आज्ञा दी। वायुदेव से भीम(Bhima) की उत्पत्ति हुई। भीमसेन के जन्म लेते ही एक अद्भुत घटना यह हुई कि अपनी माता की गोद से गिरने पर उन्होंने अपने अंगों से एक पर्वत की चट्टान को चूर-चूर कर दिया। पत्थर की चट्टान को चूर-चूर हुआ देख महाराज पाण्डु बड़े आश्चर्य में पड़ गये। जिस दिन भीमसेन का जन्म हुआ था, उसी दिन हस्तिनापुर में दुर्योधन की भी उत्पत्ति हुई।
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अब इन्द्र देव का आह्वान करने पर इंद्र देव प्रकट हुए। देवराज इन्द्र आये और उन्होंने अर्जुन(Arjuna) को पुत्र रूप में प्रदान किया।
जब कुन्ती के तीन पुत्र उत्पन्न हो गये और धृतराष्ट्र के भी सौ पुत्र हो गये, तब माद्री ने पाण्डु से एकान्त में कहा-कुरुनन्दन ! कुंती दीदी के 3 पुत्र हुए हैं। आप उनसे कहो की मुझे भी मन्त्र की दीक्षा दे ताकि मैं भी आपको पुत्र प्रदान कर सकूँ।
इसलिए पाण्डु की आज्ञा से कुन्ती ने माद्री को भी उस मन्त्र की दीक्षा दी।
माद्री ने मन-ही-मन कुछ विचार करके दोनों अश्विनीकुमारों का स्मरण किया। तब उन दोनों ने आकर माद्री के गर्भ से दो जुड़वे पुत्र उत्पन्न किये । जिनमें से एक का नाम नकुल(Nakula) था और दूसरे का सहदेव(Sehdeva)।