Mahabharat Lakshagraha Story(Katha) in hindi
महाभारत लाक्षागृह की कहानी(कथा)
युधिष्ठिर को भीष्म, विदुर व प्रजाजनों की सहमति से धृतराष्ट्र ने युवराज बनाया जबकि दुर्योधन को राजकोष का अध्यक्ष बनाया गया। युधिष्ठिर से सारी प्रजा खुश थी। लेकिन शकुनि, दुर्योधन, दु:शासन सब परेशान थे। शकुनि, दुर्योधन, दु:शासन और कर्ण ने (आपस में) एक दुष्टतापूर्ण गुप्त सलाह की। शकुनि ने पुरोचन(Purochan) को बुलाया और वारणावत(varnavat ) में एक सुंदर भवन लाक्षागृह(Lakshagraha) का निर्माण करने को कहा। शकुनि ने कहा की जब रात्रि में पांडव सो जायेंगे तब उस लाक्षाग्रह में आग लगा दी जाएगी जिससे सब पांडव वहीँ मर जायेंगे और दुर्योधन राजा बन जायेगा। लेकिन कर्ण ने कहा की हमे पांडवों को कायरों की तरह नही मारना चाहिए बल्कि उनसे युद्ध करना चाहिए। शकुनि ने कर्ण की एक नही सुनी।
दुर्योधन ईर्ष्या की आग से जलता हुआ धृतराष्ट्र के पास आया। दुर्योधन बोला- पिताजी! मैंने बड़ी अशुभ बातें सुनी हैं। सभी नगरवासी आपका और भीष्मजी का अनादर करके युधिष्ठिर को राजा बनाना चाहते हैं।
पाण्डु ने अपने सद्गुणों के कारण पिता से राज्य प्राप्त कर लिया और आप अंधे होने के कारण अधिकार प्राप्त राज्य को भी न पा सके। और मैं राजा बनना चाहता हूँ। क्योंकि आप ज्येष्ठ हैं और मैं आपका पुत्र हूँ। नियम तो ये है की ज्येष्ठ का पुत्र ही राजा बनता है।
अपने बेटे की बात सुनकर धृतराष्ट्र शोक में डूब गए । फिर दुर्योधन कहता है की- ‘पिताजी! आप किसी तरह पांडवों को वारणावत नगर में भेज दीजिये’।
धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर को अपने पास बुलाया और कहा की प्रिय दुर्योधन चाहता है की अबकी बार आप वारणावत में जाएं। युधिष्ठिर ने वारणावत जाने के लिए हाँ कर दी।
जब पांडवों का जाने का पक्का हो गया तब दुर्योधन व शकुनि ने पुरोचन को बुलाया। और आदेश दिया की पांडव कुछ दिनों तक वारणावत रहकर उत्सव में भाग लेंगे- मेले में घूमे-फिरेंगे। तुम आज ही वहां पहुंच जाओ, और नगर के निकट ही एक ऐसा भवन तैयार कराओ जिसमें चारों ओर कमरे हों तथा जो सब ओर से सुरक्षित हो। वह भवन बहुत सुन्दर होना चाहिए। ‘सन तथा साराल आदि, जो कोई भी आग भड़काने वाले द्रव्य संसार में हैं, उन सबको उस मकान की दीवार में लगवाना। ‘घी, तेल, चर्बी तथा बहुत-सी लाह मिट्टी में मिलाकर उसी से दीवारों को लिपवाना। लेकिन किसी को भी इस बात की शंका न हो कि यह घर आग भड़काने वाले पदार्थों से बना है, इस तरह पूरी सावधानी के साथ राजभवन का निमार्ण कराना चाहिये।
महल बन जाने पर जब पाण्डव वहां जायें, तब उन्हें तथा कुन्ती देवी को भी बड़े आदर-सत्कार के साथ उसी में रखना। जब तुम्हे विश्वास हो जाये की पाण्डव सो गए हैं तब घर के दरवाजे की ओर से आग लगा देना। ‘उस समय लोग यही समझेंगे कि अपने ही घर में आग लगी थी, उसी में पाण्डव जल गये। इसलिए वे पाण्डवों की मृत्यु के लिये कभी हमारी निन्दा नहीं करेंगे’। पुरोचन ने दुर्योधन के सामने वैसा ही करने की प्रतिज्ञा की और तुरंत रथ पर बैठकर वहां से वारणावत नगर के लिये प्रस्थान किया।
इधर ज्ञानी विदुर शकुनि, दुर्योधन के मन का भाव समझ गये और उन दुष्टों की गुप्त मन्त्रणा का भी उन्होंने पता लगा लिया। विदुरजी ने सभी बातें जान लीं।
यहाँ युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल व सहदेव सभी ने निश्चय किया कि सभी पांडव माता कुंती के साथ वारणावत जायेंगे। सभी वारणावत जाने के लिए तैयार हो गए।
विदुर ने जाने से पहले युधिष्ठिर को संकेत कर दिया। विदुर ने पूछा – बताओ की जंगल की आग से कौन बच सकता है?
युधिष्ठिर ने जवाब दिया की-एक चूहा जंगल की आग से बच सकता है क्योंकि वो बिल में घुस जाता है।
युधिष्ठिर ने विद्वानों में विदुर जी से कहा- ‘मैंने आपकी बात अच्छी तरह समझ ली। इस तरह पाण्डवों को बार-बार कर्तव्य की शिक्षा देते हुए कुछ दूर तक उनके पीछे-पीछे जाकर विदुर जी उनको जाने की आज्ञा दे उन्हें अपने दाहिने करके पुन: अपने घर को लौट गये। सभी पांडवों को कुंती के साथ वारणावत के लिए विदा किया गया।
पाण्डवों ने फाल्गुन शुक्ला अष्टमी के दिन रोहिणी नक्षत्र में यात्रा की थी। वे यथा समय वारणावत पहुंचर कर वहां के नागरिकों से मिले।
वारणावत नगर के लोग पांडवों के आने से बहुत खुश हुए और उनको आशीर्वाद देने लगे। वहां पुरोचन ने उनके खाने-पीने की उत्तम वस्तुऐं, सुन्दर शय्याएं और श्रेष्ठ आसन प्रस्तुत किये। उस भवन में पुरोचन द्वारा उनका बड़ा सत्कार हुआ।
दस दिनों तक वहां रह लेने के बाद पुरोचन ने पाण्डवों से उस नए गृह के सम्बन्ध में चर्चा की, जो कहने को तो ‘शिव भवन’ था, लेकिन वास्तव में अशिव (अमंगलकारी) था।
पुरोचन के कहने से सभी पांडव उस लाक्षागृह में गये। उस घर को अच्छी तरह देखकर युधिष्ठिर ने भीम से कहा- ‘भाई! यह भवन तो आग भड़काने वाली वस्तुओं से जान पड़ता है। मुझे इस घर की दीवारों से घी और लाह मिली हुई चर्बी की गंध आ रही है। अत: स्पष्ट जान पड़ता है कि इस घर का निर्माण अग्नि दीपक पदार्थों से ही हुआ है। यह मन्द बुद्धि पापी पुरोचन दुर्योधन की आज्ञा के अधीन हो सोच रहा है जब हम सोये हों, तब वह आग लगाकर (घर के साथ ही) हमें जला दे। यही उसकी इच्छा है। लेकिन विदुरजी ने हमारे ऊपर आने वाली इस विपत्ति को समझ लिया था; इसीलिये उन्होंने पहले ही मुझे सचेत कर दिया। विदुरजी हमारे छोटे पिता और सदा हम लोगों का हित चाहने वाले हैं।
भीम बोले- भैया! हम लोग जहाँ पहले रहते थे, क्यों ना उसी घर में लौट चलें?
लेकिन युधिष्ठिर जी ने मना कर दिया। युधिष्ठिर जी कहते हैं अगर हम यहाँ से वापिस लौट गए तो हमे ये कभी नही पता चल पायेगा कि दुर्योधन क्या चाहता है?
फिर एक सुरंग खोदने वाले मनुष्य को विदुर जी ने पांडवों के पास भेजा। उसने पांडवों से कहा -मैं सुरंग खोदने के काम में बड़ा निपुण हूं। मैं आपकी सेवा के लिए यहाँ आया हूँ। ‘इसी कृष्णपक्ष की चर्तुदशी की रात को पुरोचन आपके घर के दरवाजे पर आग लगा देगा।
इससे पहले मैं आपके लिए सुरंग खोद दूंगा। जिसमे से आप बचकर निकल जायेंगे।
ऐसा कहकर उसने सुरंग खोदना शुरू कर दिया। जिसके बारे में पांडव व विदुर के अलावा किसी को भी नही पता था।
जल्दी ही उस खनिक ने सुरंग खोद दी और उस सुरंग का मुख युधिष्ठिर जी के सिंहासन के पास में ही बना दिया। सुरंग खोदकर खनिक वहां से चला गया।
एक रात को कुन्ती ने दान देने के निमित्त ब्राह्मण-भोजन कराया। उसमें बहुत-सी स्त्रियां भी आयी थी। वे सब स्त्रियां घूम फिरकर खा-पी लेने के बाद कुन्ती देवी से आज्ञा ले रात में फिर अपने-अपने घरों को ही लौट गयीं।
लेकिन उस भोज के समय एक भीलनी अपने पांच बेटों के साथ वहां भोजन की इच्छा से आयी। मानो काल ने ही उसे प्रेरित करके वहां भेजा था। वह भीलनी शराब पीकर मतवाली हो चुकी थी। उसके पुत्र भी शराब पीकर मस्त थे। शराब के नशे में बेहोश होने के कारण अपने सब पुत्रों के साथ वह उसी घर में सो गयी।
रात में जब सब लोग सो गये, उस समय सहसा बड़े जोर की आंधी चली। तब भीमसेन ने उस जगह आग लगा दी। जहाँ पुरोचन सो रहा था। इसके पश्चात् उन्होंने उस घर के चारों ओर आग लगा दी। जब वह सारा घर अग्नि की लपेट में आ गया, तब सभी पाण्डव अपनी माता के साथ सुरंग में घुस गये। देखते ही देखते वहां अग्नि की भयंकर लपटें उठने लगी। पुरे नगर में हाहाकार मच गया। उस घर को जलता देख पुरवासियों के मुख पर दीनता छा गयी। वे व्याकुल हो गए। सभी सोचने लगे की पांडव और माता कुंती इस अग्नि में जल कर भस्म हो गए है। वे रात भर उस घर को चारों ओर से घेर कर खड़े रहे। उधर समस्त पाण्डव भी अत्यन्त दुखी हो अपनी माता के साथ सुरंग के मार्ग से निकल कर तुरंत ही दूर चले गये। उन्हें कोई भी देख न सका।
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Very nice sir ji
It is the best story