Mahabharat : Karna 3 curses(shrap) Story in hindi
महाभारत : कर्ण को मिले 3 श्राप की कहानी/कथा
महाभारत में दानवीर कर्ण का जीवन हमेशा ही दुखों से घिरा रहा है। जन्म से लेकर मृत्यु तक कर्ण के जीवन में दुःख ही दुःख रहे हैं। कर्ण को मिले श्रापों ने कर्ण को झकजोर दिया और अंत में वो श्राप कर्ण की मृत्यु का कारण बने।
Parshuram shrap to Karna : भगवान परशुराम का कर्ण को श्राप
कर्ण ने श्री परशुराम जी को अपना गुरु बनाया था। कर्ण को ये बात ज्ञात थी कि परशुराम जी सिर्फ ब्राह्मण बालकों को ही धनुर्विद्या सिखाएंगे। लेकिन कर्ण ने अपने गुरुदेव को ये बात नहीं बताई। एक दिन की बात है गुरू परशुराम कर्ण की जंघा पर सिर रखकर विश्राम कर रहे थे। वहाँ पर एक बिच्छू आया और और कर्ण को डंक मारने लगा। गुरु का विश्राम भंग ना हो इसलिए कर्ण बिच्छू को दूर ना हटाकर उसके डंक को सहता रहा। इस प्रकार कर्ण की जंघा से रक्त बहने लगा लेकिन कर्ण टस से मस तक नहीं हुआ। जब कर्ण का रक्त बहता बहता गुरुदेव एक आ पहुँचा तब गुरुदेव की आँख खुल गई। ये सब देखकर गुरु देव हैरान हो गए। उन्होंने कहा कि केवल किसी क्षत्रिय में ही इतनी सहनशीलता हो सकती है कि वह बिच्छू डंक को सह ले, ना कि किसी ब्राह्मण में। परशुरामजी ने उसे मिथ्या भाषण के कारण श्राप दिया कि जब भी कर्ण को उनकी दी हुई शिक्षा की सर्वाधिक आवश्यकता होगी, उस दिन वह उसके काम नहीं आएगी। कुछ लोककथाओं में कहा जाता है कि इस बिच्छू के रूप में खुद इंद्र था जो कर्ण की असली पहचान गुरु तक करवाना चाहता था।
कर्ण खुद अपने को सूत पुत्र कहता था क्योंकि माता कुंती द्वारा जन्म होते ही उसे गंगा नदी में बहा दिया गया था और उस समय धृतराष्ट्र के सारथी अधिरथ और उनकी पत्नी राधा ने उसे देखा और उसे गोद ले लिया और उसका लालन पालन किया। । उसे अपने वंश का खुद भी पता नहीं था। लेकिन गुरुदेव ने अपनी दिव्य दृष्टि से सब जान लिया तब कर्ण को क्रोधवश श्राप देने पर उन्हें ग्लानि हुई पर वे अपना श्राप वापस नहीं ले सकते थे। तब उन्होनें कर्ण को अपना विजय नामक धनुष प्रदान किया और उसे ये आशीर्वाद दिया कि उसे वह वस्तु मिलेगी जिसे वह सर्वाधिक चाहता है – अमिट प्रसिद्धि।
वैसे आध्यात्मिक पक्ष भी बड़ा जबरदस्त है इसका। अगर गुरु श्राप ना देते तो कर्ण युद्ध में ब्रह्मास्त्र चलता और पूरी सृष्टि का विनाश हो जाता। सृष्टि की रक्षा के लिए ऐसा किया गया।
Brahman shrap to karna : ब्राह्मण द्वारा कर्ण को श्राप
परशुरामजी के आश्रम से जाने के बाद, कर्ण कुछ समय तक भटकता रहा। इसी समय वहशब्दभेदी विद्या सीख रहा था। अभ्यास के दौरान उसने एक गाय के बछड़े को कोई वनीय पशु समझ लिया और उस पर शब्दभेदी बाण चला दिया और बछडा़ मारा गया।
उस गाय का स्वामी एक ब्राह्मण था। उस ब्राह्मण ने कहा – तुमने एक निर्दोष की हत्या की है जिसकी सजा तुम्हें मिलनी चाहिए।
तब कर्ण ने क्षमा याचना की। उस ब्राह्मण ने कहा तुम इसके प्राण लौटा दो तब मैं तुम्हे क्षमा कर दूंगा। लेकिन कर्ण किस तरह से प्राण लौटा सकता था।
अब उस गाय के स्वामी ब्राह्मण ने कर्ण को श्राप दिया कि जिस प्रकार उसने एक असहाय पशु को मारा है, वैसे ही एक दिन वह भी मारा जाएगा जब वह सबसे अधिक असहाय होगा और जब उसका सारा ध्यान अपने शत्रु से कहीं अलग किसी और काम पर होगा।
Earth(Dharti) shrap to Karna : धरती द्वारा कर्ण को श्राप
धरती माँ ने श्राप दिया कि कर्ण, युद्ध करते समय एक दिन तुम्हारे रथ का पहिया भूमि में धंस जायेगा। आन्ध्र की लोक कथाओं के अनुसार कथा है कि एक बार कर्ण कहीं जा रहा था, तब रास्ते में उसे एक कन्या मिली जो अपने घडे़ से घी के बिखर जाने के कारण रो रही थी।
कर्ण के पूछने पर उसने बताया कि उसका घी मिट्टी में गिर गया है। जिस कारण उसकी सौतेली माँ उसपर गुस्सा करेगी।
तब कर्ण ने कहा कि वह दूसरा घी लाकर उसे दे देगा।
लेकिन उस कन्या ने कहा कि उसे वही मिट्टी में मिला हुआ घी ही चाहिए और उसने नया घी लेने से मना कर दिया। तब कन्या पर दया करते हुए कर्ण ने घी युक्त मिट्टी को अपनी मुठ्ठी में लिया और निचोड़ने लगा ताकि मिट्टी से घी निचुड़कर घड़े में गिर जाए।
जब कर्ण ऐसा कर रहा था तब उसे एक महिला की दर्दभरी आवाज सुनाई दी। जब उसने अपनी मुठ्ठी खोलकर देखा तो धरती माता को पाया। पीड़ा से क्रोधित धरती माता ने कर्ण की आलोचना की और कहा कि तुमने आज मुझे बहुत पीड़ा दी है कर्ण। ऐसा कहकर धरती माता ने कर्ण को श्राप दिया कि एक दिन उसके जीवन के किसी निर्णायक युद्ध में वह भी उसके रथ के पहिए को वैसे ही पकड़ लेंगी जैसे उसने उन्हें अपनी मुठ्ठी में पकड़ा है, जिससे वह उस युद्ध में अपने शत्रु के सामने असुरक्षित हो जाएगा।
और आप सभी जानते हैं ये सभी श्राप अर्जुन से युद्ध करते हुए कर्ण के सामने निर्णायक युद्ध में आये थे और इन्हीं श्राप के कारण कर्ण को अपने जीवन का बलिदान देना पड़ा था।
पढ़ें : कर्ण वध की कथा
पढ़ें : कर्ण जन्म की कथा