Mahabharat : Guru Dronacharya Vadh Story in hindi
महाभारत : गुरु द्रोणाचार्य वध की कहानी/कथा
चौदहवें दिन के युद्ध में गुरु द्रोण द्रुपद और विराट को मार देते हैं जबकि अर्जुन जयद्रथ का वध कर देता है। अगले दिन का युद्ध प्रारम्भ हुआ।
पन्द्रवें दिन के युद्ध में गुरु द्रोणाचार्य अपने तेवर में थे और पांडव सेना को धराशायी किये जा रहे थे। ये देखकर भगवान श्री कृष्ण ने सोचा कि इस तरह तो युद्ध जितना असंभव हो जायेगा। उन्होंने गुरु द्रोणाचार्य का वध करने की योजना बनाई। जिस योजना के अनुसार भीम ने अश्वत्थामा नाम के एक हाथी मार गिराया और शोर मचा दिया गया कि अश्वत्थामा मारा गया। अब द्रोणाचार्य जी तक सिर्फ ये खबर पहुँचानी थी कि अश्वत्थामा मारा गया, जबकि योजना अनुसार ये नहीं बताना था कि वो अश्वत्थाम एक हाथी है उनका बेटा नहीं। क्योंकि द्रोणाचार्य को जब ये पता चलेगा कि उनका पुत्र अश्वत्थामा मारा गया तो वो खुद ही मर जायेंगे।
भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर जी से ये काम करने के लिए कहा। कृष्ण बोले – युधिष्ठिर! तुम द्रोण से जाकर कहो कि अश्वत्थामा मारा गया, क्योंकि गुरु द्रोण जिस तरह से युद्ध कर रहे हैं इस तरह तो वो आज ही युद्ध समाप्त कर देंगे।
लेकिन युधिष्ठिर झूठ बोलने से साफ़ साफ़ मना कर देते हैं।
कृष्ण कहते हैं – तुम देख रहे हो न.. गुरु द्रोण कितनी कुशलता से हमारी सेना का विनाश कर रहे हैं। अब तुम द्रोण से हम लोगों को बचाओं, इस मौके पर अगर झूठ का सहारा भी लेना पड़े तो उस झूठ का महत्त्व सत्य से भी बढ़कर है। किसी की प्राण रक्षा के लिये यदि कदाचित असत्य बोलना पड़े तो उस बोलने वाले झूठ का पाप नहीं लगता’।
वहीं पर भीम भी होते हैं। भीम कहते हैं कि मैंने जब हाथी को मारा तो द्रोणाचार्य के पास जाकर कहा कि अश्वत्थामा मारा गया, लेकिन उन्होंने मेरी बात पर विश्वास नहीं किया है। अब आप श्रीकृष्ण की बात मान लीजिये और द्रोणाचार्य से कह दीजिये कि अश्वत्थामा मारा गया। क्योंकि आप तीनों लोकों मे सत्यवादी के रूप में विख्यात हैं।
अब युधिष्ठिर जी गुरु द्रोण के सामने गए और हिम्मत करके कहते हैं कि “अश्वत्थामा हतोहतः, नरो वा कुञ्जरोवा”, अर्थात ‘अश्वत्थामा मारा गया, परंतु मनुष्य नहीं पशु।” गुरु द्रोण ने सिर्फ इतना ही सुना था कि अश्वत्थामा मारा गया, इतना सुनते ही मानो उनके प्राण निकल गए और अपनी सुध बुध खो बैठे। हालाँकि युधिष्ठिर ने पूरी बात कही थी कि मनुष्य नहीं पशु, लेकिन जब ये बात कही तो श्रीकृष्ण ने इतने जोर से शंख बजाया कि द्रोणाचार्य आगे के शब्द न सुन सके।
अब गुरु द्रोण ने मानो समाधि ले ली और अपने अस्त्र-शस्त्र त्याग दिये। इसी समय मौका पाकर द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न ने उनका सर धड़ से अलग कर दिया और द्रोणाचार्य की मृत्यु हो गई।
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