Krishna meet Pandavs During Vanvas hindi Story
भगवान कृष्ण का वनवास में पांडवों से मिलना
एक बार भगवान श्री कृष्ण वन में पांडवों से मिलने आये हैं। भगवान का सबने आदर सत्कार किया और तब बातचीत शुरू हुई है। सभी पांडव व द्रौपदी क्रोध की अग्नि में जल रहे थे। क्योंकि द्रौपदी चीर हरण हुआ। जिसमे किसी ने द्रौपदी की लाज नहीं बचाई। सिर्फ भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी की लाज बचाई।
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द्रौपदी भगवान श्री कृष्ण से कहती है- मधुसूदन! ‘ मेरे लिये न पति हैं, न पुत्र हैं, न बान्धव हैं, न भाई हैं, न पिता हैं और न आप ही हैं। ‘क्योंकि आप सबलोग, नीच मनुष्यों द्वारा जो मेरा अपमान हुआ था, उसकी उपेक्षा कर रहे हैं, मानो इसके लिये आपके हृदय में तनिक भी दुःख नहीं है। उस समय कर्ण ने जो मेरी हँसी उड़ायी थी, उससे उत्पन्न हुआ दुःख मेरे हृदय से दूर नहीं होता है। ‘श्रीकृष्ण! चार कारणों से आपको सदा मेरी रक्षा करनी चाहिये। एक तो आप मेरे सम्बन्धी, दूसरे अग्नि कुण्ड में उत्पन्न होने के कारण मैं गौरवशालिनी हूँ, तीसरे आपकी सच्ची सखी हूँ और चौथे आप मेरी रक्षा करने में समर्थ हैं।’
यह सुनकर भगवान श्रीकृष्ण ने वीरों के उस समुदाय में द्रौपदी से कहा- तुम जिन पर क्रुद्ध हुई हो, उनकी स्त्रियाँ भी अपने पतियों को अर्जुन के बाण से छिन्न-भिन्न और खून से लथपथ हो मरकर धरती पर पड़ा देखकर रोयेंगी। पाण्डवों के हित के लिये जो कुछ भी सम्भव है, वह सब करूँगा, शोक न करो। मैं सत्य प्रतिज्ञा पूर्वक कह रहा हूँ कि तुम राज रानी बनोगी।
धृष्टद्युम्न भी वहीँ थे , उसने कहा – बहिन कृष्णा! मैं द्रोण को मार डालूँगा, शिखण्डी भीष्म का वध करेंगे, भीमसेन दुर्योधन को मार गिरायेंगे और अर्जुन कर्ण को यमलोक भेज देंगे। भगवान श्रीकृष्ण और बलराम का आश्रय पाकर हम लोग युद्ध में शत्रुओं के लिये अजेय हैं। हम धृतराष्ट्र के पुत्रों को युद्ध में बुरी तरह हराएंगे।
भगवन ने भी पांडवों को यहाँ खूब सुनाई है। युधिष्ठिर से कहा- जब तुम्हारी पत्नी को अधर्म के सहारे द्युत सभा में बेइज्जत किया जा रहा था तब तुम धर्म का मुखौटा पहन कर एक पत्थर की तरह मूर्ति की तरह देख रहे थे इसे धर्म नहीं कहते हैं। अर्जुन को कहा- तुम विश्व के सर्वश्रेठ धनुर्धर हो। क्या ये विद्या तुमने सिर्फ दिखाने के लिए प्राप्त की है।
भीम, नकुल व सहदेव सभी को आज भगवान कृष्ण ने खूब डांटा। काफी देर में बाद युधिष्ठिर ने कृष्ण से कहा कहा- वासुदेव! आप द्युत क्रीड़ा के समय कहाँ पर थे?
श्रीकृष्ण ने कहा- मैं उन दिनों शाल्व के सौभ नामक नगराकार विमान को नष्ट करने के लिये गया हुआ था। शाल्व शिशुपाल का मित्र था। और मुझसे अकारण ही बैर करने लगा।
जब वो मुझसे युद्ध करने लगा तो मैंने उसे मार गिराया जिस कारण मैं हस्तिनापुर में नहीं आ पाया।
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जब मुझे पता चला की पांडव सब कुछ हारकर वन में चले गए हैं तब मैं तुमसे मिलने आया ।
भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि अर्जुन तुम इंद्र व महादेव से दिव्यास्त्र प्राप्त करो। क्योंकि जब युद्ध होगा तो तुम्हारे तूणीर में वो शस्त्र नहीं हैं जो महाबली भीम, गुरु द्रोण, अंगराज के बाणों का सामना कर सकें।
आज्ञा पाकर अर्जुन इन्द्रकील पर्वत पर तपस्या करने चले गए हैं।