Karan Kavach Kundal Mahabharat Story in hindi
कर्ण कवच कुण्डल महाभारत की कहानी
भगवान श्री कृष्ण शांति दूत बनकर कौरवों की सभा में गए थे। लेकिन भगवान की बात को दुर्योधन ने मानने से मना कर दिया। जिस कारण इस बात का पक्का हो गया था कि अब युद्ध होना निश्चित है। इसके बाद भगवान विदुर के घर गए और उसके घर कृपा की।
यहाँ पर इंद्र देव को चिंता हुई कि जब तक कर्ण के शरीर पर कवच और कुण्डल रहेगा तब तक कर्ण युद्ध में अपराजेय और अमर रहेगा। ये कवच और कुण्डल जन्म से ही उसके साथ थे।
रात्रि में कर्ण को भगवान सूर्य देव दिखाई दिए। वे कर्ण से कहते हैं कि कल इंद्र देव तुम्हारे कुण्डल और कवच मांगने के लिए आएंगे लेकिन तुम देने से मना कर देना। क्योंकि कर्ण ये दोनों रत्नमय कवच और कुण्डल अमृत से उत्पन्न हुए हैं। इसलिए अगर तुम्हे अपना जीवन प्रिय हो, तो इन दोनों वस्तुओं की रक्षा अवश्य करना’। इंद्र देव को दान करने से मना कर देना।
कर्ण ने कहा कि मेरा प्रतिदिन का नियम है दान देने का। यदि उस समय मुझसे कोई मेरे प्राण भी मांगे तो मैं मना नहीं कर सकता। सूर्य देव कहते हैं यदि तुम कुण्डल और कवच दान कर देते हो तो बदले में शक्ति बाण मांग लेना। इस तरह से दोनों के बीच वार्ता हुई और सूर्य देव चले गए।
Mahabharat karna kavach kundal donate (Daan) to Indra : कर्ण का कवच और कुण्डल इंद्र को दान देना
सुबह जब सूर्य देव की पूजा करने के बाद कर्ण दान दे रहे थे। तभी इंद्र एक ब्राह्मण के भेष में आया। कर्ण ने कहा-ब्राह्मण देव आपको क्या चाहिए?
इंद्र ने कहा कि मुझे दान में तुम्हारे कुण्डल और कवच चाहिए। कर्ण ने बिना समय गवाए अपने शरीर से कवच और कुण्डल दान(kavach aur kundal daan) में दे दिए। कर्ण के शरीर से लहू निकल रहा था। क्योंकि ये जन्म से ही कर्ण के साथ थे।
अब इंद्र ने कर्ण के शरीर के घाव को ठीक कर दिया और बदले में एक शक्ति बाण दिया। साथ में ये भी बताया कर्ण- तुम जिस पर भी इस बाण का प्रयोग करोगे वो जीवित नहीं बच पायेगा। इस बाण को देकर इंद्र देव वहां से चले गए। इस बाण का प्रयोग कर्ण ने भीम के पुत्र घटोत्कच को युद्ध में मारने के लिए किया था।