Jayadratha Kidnaps Draupadi Mahabharat Story in hindi
जयद्रथ द्वारा द्रौपदी हरण महाभारत की कहानी
अर्जुन स्वर्ग से अस्त्र शस्त्र प्राप्त करके वापिस लोटे हैं। अर्जुन को देखकर सभी भाई(युधिष्ठिर, भीम, नकुल और सहदेव) काफी खुश हुए हैं। और आपस में गले लगे हैं। एक भाई ने पूछा अर्जुन- तुम्हे स्वर्ग में तो काफी सुख मिला होगा। अर्जुन कहते हैं जितना सुख मुझे अपने भाइयों के साथ मिलता है उतना सुख मुझे कहीं भी नहीं मिलता है। अर्जुन ने बताया कि उसने महादेव से पाशुपतास्त्र प्राप्त किया है। सभी भाई काफी खुश थे।
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एक बार द्रोपदी जी पानी लेने नदी पर गई हुई थी। तभी वहां पर एक रथ आकर रुका। रथ में जयद्रथ बैठा था। जो कौरवों की एकमात्र बहन दु:शला का पति है।
जयद्रथ ने द्रौपदी को अकेले देखकर कहा- तुम इस वन में अकेली कैसे घूम रही हो। तुम्हारे पति पांडव तो अपना सारा राज पाठ हार चुके हैं। अब तुम्हे मेरे साथ चलना चाहिए। क्योंकि जिसके पास धन नहीं होता पत्नी को उसको पास रहने का भी अधिकार नहीं है।
इसकी ऐसी घटिया बात सुनकर द्रौपदी को क्रोध आ गया। उसने कहा- जयद्रथ, तुम मेरे नन्दोई हो। तुम्हे ऐसी बात कहना सोभा नहीं देता। थोड़ी तो लाज करो। तुम धृतराष्ट्र पुत्रों तथा पाण्डवोंकी छोटी बहन दु:शला के पति हो। तुम मेरे भाई समान हो; इसलिए तुम्हें मेरी रक्षा करनी चाहिये। तुम्हारा जन्म तो धर्मात्माओं के कुलमें हुआ है, परंतु तुम्हारी दृष्टि धर्मकी ओर नहीं है।
Draupadi Haran by Jayadratha in hindi : द्रौपदी हरण जयद्रथ द्वारा
लेकिन जयद्रथ ने द्रौपदी की एक न सुनी। इसने जबरदस्ती द्रौपदी को रथ में बिठा लिया। द्रौपदी रोने लगी और कहती है अगर मेरे पतियों को इस बात का पता चला तो तुम्हारा अंजाम ठीक नहीं होगा। जयद्रथ बेसरम होकर सारी बाते सुनकर हँसता रहा और द्रौपदी का हरण करके जाने लगा।
इधर जब पांडव आश्रम में आये तो उन्हें द्रौपदी कहीं भी दिखाई नहीं दी। युधिष्ठिर ने अर्जुन और भीम को आज्ञा दी कि तुम जाकर द्रौपदी को ढूंढकर लाओ। हो सकता है कि वो किसी मुसीबत में ना फस गई हो।
भीम और अर्जुन द्रौपदी को ढूंढने के लिए निकले । मार्ग में उन्हें द्रौपदी का पानी का मटका टुटा हुआ दिखाई दिया। अर्जुन और भीम दोनों अब आगे बढे और एक राहगीर से पूछा। राहगीर ने बताया कि यहाँ से एक रथ गुजरा है। उस रथ पर से एक स्त्री के रोने की आवाज आ रही थी। ऐसा लग रहा था मानो उस स्त्री का हरण करके कोई ले जा रहा हो।
भीम ने उससे पूछा- किस दिशा में और कितनी दूर वो रथ गया होगा?
तब उसने बताया की लगभग एक कोस दूर गया होगा।
तब अर्जुन ने तुरंत एक बाण अपने धनुष से चलाया। और वो बाण सीधा जयद्रथ के रथ के अगर गिरा। और उसके रथ के सामने आग जल गई।
द्रौपदी बोली, ठीक से पहचान लो। ये गांडीवधारी अर्जुन का बाण है। अब तुम्हारी दशा ठीक नहीं होगी। जयद्रथ ये सब देखकर डर गया।
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उसी क्षण वहां पर अर्जुन और भीम आ गए। भीम ने तुरंत जयद्रथ को लात-घूंसों से मारना शुरू कर दिया। भीम उसे जान से ही मारने वाले थे कि अर्जुन ने रोक दिया। अर्जुन कहते हैं – हमें इसे जान से मारने का अधिकार नहीं है। हम इसे महाराज युधिष्ठिर के पास लेकर चलते हैं।
अर्जुन व भीम जयद्रथ को साथ लेकर युधिष्ठिर व अन्य भाइयो के पास पहुंचे। द्रौपदी ने सब बात युधिष्ठिर को बता दी। भीम ने कहा कि इसे तो मृत्यु दंड ही दिया जाना चाहिए। युधिष्ठिर ने कहा कि इसे मृत्यु दंड दिया जा सकता है लेकिन ये हमारी बहन दुःशला का पति है। लेकिन इसे दंड देना भी जरुरी है। अब द्रौपदी से पूछा गया कि तुम्हारी क्या इच्छा है। द्रौपदी ने कहा कि इसने मेरा अपमान किया है तुम भी इसे अपमानित करके छोड़ दो।
तब भीम ने जयद्रथ के केशों को अपने अर्द्धचन्द्राकार बाणों से मूंडकर पाँच चोटी रख दी। और उसका अपमान करके कहा जा- तुझे दासत्व से मुक्त किया। यह सुनकर जयद्रथ कान्तिहीन हो, लज्जा से सिर झुकाये वहाँ से चला गया।