Hidimb vadh and Bhim Hidima marriage(Vivah) Story in hindi
हिडिम्ब वध व भीम हिडिम्बा विवाह
दुर्योधन व शकुनि ने पांडवों को जलाने के लिए वारणावत में लाक्षागृह का निर्माण करवाया। लेकिन विदुर की नीति से पांडव लाक्षागृह में जल नही पाए। पांडव एक सुरंग के सहारे बाहर निकल गए।
जबकि हस्तिनापुर में दुर्योधन व शकुनि ने समझ की सभी पांडव माता कुंती के साथ लाक्षागृह में जलकर भस्म हो गए। शकुनि ने ये खबर सबको दे दी कि सभी पांडव व माता कुंती आग में जलकर भस्म हो गए हैं। कौरवों को किसी प्रकार का दुःख नही था लेकिन द्रोण, भीष्म और प्रजाजन काफी दुःखी थे व विदुर जी जानते थे की पांडव सुरक्षित हैं।
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पांडव उस सुरंग से निकालकर काफी दूर आ गए। वे सभी चलते जा रहे थे। नींद पूरी न होने के कारण ये सभी जल्दी-जल्दी चल पा रहे थे। जब चलते चलते माता कुंती थक गई तो उन्होंने चलने से मना कर दिया। तब भीम ने माता को तो कन्धे पर चढ़ा लिया और नकुल-सहदेव को गोद में उठा लिया तथा शेष दोनों भाइयों को दोनों हाथों से पकड़कर उन्हें सहारा देते हुए चलने लगे। काफी दूर चलने के बाद माता कुंती ने युधिष्ठिर को रुकने के कहा। युधिष्ठिर ने माता कुंती की बात मान ली और वन में रुक गए। कुंती जी को प्यास लगी और उन्होंने भीम को पानी लाने के लिए कहा। भीम जी पानी लाये है और जब रात्रि हुई तो सब पांडव पेड़ के नीचे सोने लगे। और भीम जागकर पहरा देने लगे ताकि मेरे सभी भाई और माँ आराम से सो सके।
जहाँ पाण्डव कुन्तीसहित सो रहे थे, उस वन से थोड़ी दूर पर एक शाल-वृक्ष का आश्रय ले हिडिम्ब नामक राक्षस रहता था। वह बड़ा क्रूर, शक्तिशाली और मनुष्य का मांस खानेवाला था। वह देखने में बड़ा भयानक था। दाढ़ी,मूंछ और सिर के बाल लाल रंग के थे। दोनों कान भाले के समान लम्बे और नुकीले थे। वह विकराल राक्षस देखने में बड़ा डरावना था। भूख से व्याकुल होकर वह कच्चा मांस खाना चाहता था। उसे मनुष्यों की गंध आई। और उसने अकस्मात् पाण्डवों को देख लिया। उसने अपनी बहन हिडिम्बा से कहा-‘आज बहुत दिनों के बाद ऐसा भोजन मिला हैं, जो मुझे बहुत प्रिय है। इस समय मेरी जीभ लार ठपका रही है और बड़े सुख से लप-लप कर रही है। ‘बहिन! जाओ, पता तो लगाओ, ये कौन इस वन में आकर सो रहे हैं ?
हिडिम्ब के ऐसा कहने पर हिडिम्बा अपने भाई की बात मानकर उस स्थान पर गयी, जहाँ पाण्डव को सोते और भीमसेन को जागते देखा। भीम को देखते ही हिडिम्बा मोहित हो गई। हिडिम्बा के मन में आया ये मेरे लिये उपयुक्त पति हो सकते हैं। उसने निश्चय किया इन सबको मार देने पर इनके मांस से मुझे और मेरे भाई को केवल दो घड़ी के लिये तृप्ति मिल सकती हैं और यदि न मारुं तो बहुत वर्षो तक इनके साथ आनन्द भोगूंगी’। हिडिम्बा इच्छानुसार रुप धारण करने वाली थी। वह मानव जाति की स्त्री के समान सुन्दर रुप बनाकर धीरे-धीरे महाबाहु भीम के पास पहुंची।
हिडिम्ब ने सोचा मेरी बहन को गए हुए काफी देर हो गई है क्यों ना मैं खुद चलकर देखूं कि मेरी बहन कहाँ रह गई? हिडिम्ब उस वृक्ष से उतरा और शीघ्र ही पाण्डवों के पास आ गया। वह बहुत ही गुस्से में था। राक्षस हिडिम्ब को आते देखकर ही हिडिम्बा भय काँप उठी । तभी उसने भीम व पाँचों पांडवों को मारने के लिए ललकारा। इतने में सभी पांडव माता कुंती के साथ जाग गए। हिडिम्बा ने हिडिम्ब को लड़ाई करने से मना किया और कहा- मैंने मन ही मन इनको(भीम) अपना पति मान लिया है आप इनका वध मत करो। लेकिन हिडिम्ब ने एक न सुनी। हिडिम्ब अपनी बहिन-पर अत्यन्त गुस्सा हुए।
भीम ने कहा – कायर , तू इस नारी में क्रोध क्यों करता है। आ मुझसे युद्ध कर। तभी हिडिम्ब ने भीम के ऊपर हमला किया। भीम और हिडिम्ब के बीच युद्ध होने लग गया। इस युद्ध में हिडिम्बा ने भीम का साथ दिया। भीम ने अंत में हिडिम्ब को मार दिया।
जब हिडिम्ब मर गया तो सभी पांडव व माता कुंती खुश हुए। लेकिन हिडिम्बा थोड़ी दुःखी हुई। कुंती ने हिडिम्बा से पूछा – तुम कौन हो? हिडिम्बा ने अपना परिचय कुंती जी को दिया और बताया कि ये मेरा भाई हिडिम्ब है। जिन्होंने आप लोगों को मारने के लिए मुझे भेज था। लेकिन मैं भीम पर आकर्षित हो गई हूँ। और मैंने मन ही मन इनको अपना पति मान लिया है। मेरे तो सिर्फ एक भाई थे। जिन्हें भीम ने मार दिया। अब मैं कहाँ जाऊं ?
माता कुंती ने हिडिम्बा का भीम के प्रति प्रेम देखकर हिडिम्बा व भीम को विवाह करने के अनुमति दे दी। इस प्रकार भीम-हिडिम्बा का विवाह हुआ।
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