Draupadi Swayamvar Marriage Story in hindi
द्रौपदी स्वयंवर विवाह की कहानी/कथा
द्रौपदी स्वयंवर महाभारत की कथा है। द्रौपदी के विवाह की कथा बड़ी ही रोचक है। भीम ने बकासुर का वध किया। जिससे एकचक्रा नगरी के लोग बहुत खुश हुए। एक दिन कुछ ब्राह्मण गाँव में आये और उन्होंने बताया की पंचालदेश द्रुपद की बेटी द्रौपदी का स्वयंवर होने जा रहा है। उन्होंने बताया कि द्रुपद चाहते थे कि द्रौपदी का विवाह पाण्डु पुत्र अर्जुन के साथ हो। लेकिन जब उन्हें पता चला कि पांडव लाक्षागृह में जलकर मर गए हैं तब उन्हें काफी दुःख हुआ। फिर उन्होंने द्रौपदी का स्वयंवर करवाने का निश्चय किया।
इस पर पांडवों ने पूछा कि द्रुपद के तो कोई बेटी नहीं थी। फिर कौनसी बेटी का स्वयंवर किया जा रहा है। इस पर ब्राह्मण ने पांडवों को द्रौपती और उसके भाई धृष्टद्युम्न के जन्म की कथा सुनाई।
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उस ब्राह्मण की बात सुनकर कुन्ती पुत्रों का मन विचलित हो गया। कुन्ती ने अपने सभी पुत्रों का मन उस स्वयंवर की ओर आकृष्ट देख युधिष्ठिर से कहा-बेटा! हम लोग यहां इन महात्मा ब्राह्मण के घर में बहुत दिनों से रह रहे हैं। यदि तुम्हारी राय हो तो अब हम लोग सुखपूर्वक पञ्जालदेश में चलें। सभी ने जाने के लिए हाँ कर दी। उस समय वेदव्यास जी पांडवों से मिलने आये और उन्होंने कहा कि तुम सभी पांडव द्रौपदी को प्राप्त करोगे। ऐसा आशीर्वाद देकर वो वहां से चले गए। व्यास जी के जाने के बाद सभी पांडव वहां से पञ्जालदेश की ओर चल दिये।
पांडव ब्राह्मण के भेष बनाकर स्वयंवर में पहुंचे। उन्होंने देखा कि स्वयंवर सभा में अनेक देशों के राजा-महाराजा एवं राजकुमार पधारे हुये थे। श्रीकृष्ण अपने बड़े भाई बलराम तथा गणमान्य यदुवंशियों के साथ विराजमान थे। दुर्योधन, विकर्ण, दु:शासन, कर्ण, जरासंध, महारथी भद्रराज शल्य, सिन्धुगज जयद्रथ, बृहद्रथ, श्रृतायु, चित्रागद, वत्सराज, कोसलनरेश और पराक्रमी शिशुपाल आदि राजा आये हुए थे।
इसी बीच जयमाला लिये द्रुपद राजकुमारी उस रंग भूमि में उतरी। द्रौपदी जी को देखते ही सभी के मन में उनसे विवाह करने की इच्छा जाग गई।
अब धृष्टद्युम्न ने सभा को सम्बोधित करते हुये कहा- “आप सभी राजा-महाराजाओं एवं अन्य गणमान्य जनों का स्वागत है। इस सभा में स्तम्भ के ऊपर बने हुए उस घूमते हुये यंत्र पर ध्यान दीजिये। उस यन्त्र में एक मछली लटकी हुई है तथा यंत्र के साथ घूम रही है। आप में से जो भी स्तम्भ के नीचे रखे हुए पानी में मछली के प्रतिबिम्ब को देखते हुए बाण चलाकर मछली के नेत्र को भेदने में सफल हो जायेगा उसका विवाह मेरी बहन द्रौपदी के साथ होगा।”
सभी राजा एक के बाद एक मछली पर निशाना लगाने के लिए उठे, लेकिन कमल हो गया। इनमे से अनेक तो धनुष को उठा भी नही पाए। इनमे दुर्योधन, दुसासन और सभी कौरव व अन्य जितने राजकुर आये थे कोई भी सफल नही हो पाया। कौरवों के असफल होने पर दुर्योधन के मित्र कर्ण ने मछली को निशाना बनाने के लिये धनुष उठाया और प्रत्यंचा चढाने लगे। तभी द्रौपदी ने भगवान कृष्ण की और देखा। भगवान कृष्ण ने द्रौपदी को इशारों में कर्ण से विवाह विवाह करने के लिए मना कर दिया।
द्रौपदी कहती हैं- “यह कर्ण सूतपुत्र है, इसलिये मैं इसको वरमाला नही पहनाऊँगी।” द्रौपदी के वचनों ने कर्ण के ह्रदय में आघात किया जिसे सुनकर कर्ण ने लज्जित होकर धनुष बाण रख दिया।
जब सब राजाओं ने हार मान ली तब ब्राह्मणों की पंक्ति से उठकर अर्जुन निशाना लगाने के लिए आये। कर्ण और शल्य आदि बलवान्, धनुर्वेद परायण तथा लोक विख्यात क्षत्रिय जिसे झुका (तक) न सके, उसी धनुष पर यह अत्यन्त दुर्बल ब्राह्मण-बालक कैसे प्रत्यञ्चा चढ़ा सकेगा। लेकिन भगवान श्री कृष्ण जानते थे कि ये अर्जुन है और इस लक्ष्य को अगर कोई भेद सकता है तो वो केवल अर्जुन ही है।
Arjun Draupadi Vivah : अर्जुन द्रौपदी विवाह
अर्जुन आगे आये उन्होंने महाराज द्रुपद को प्रणाम किया और धनुष को उठा लिया। अर्जुन ने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई। अर्जुन लक्ष्य की ओर बढे। अर्जुन ने पानी में मछली के प्रतिबिम्ब को देखते हुए एक ही बाण से मछली के नेत्र को भेद दिया। राजा द्रुपद, द्रौपदी, धृष्टद्युम्न, कृष्ण-बलराम और ब्राह्मण लोग काफी खुश हुए। द्रौपदी ने आगे बढ़कर अर्जुन के गले में वरमाला डाल दी।
एक ब्राह्मण के गले में द्रौपदी को वरमाला डालते देख समस्त क्षत्रिय राजा-महाराजा एवं राजकुमारों क्रोधित हुए और उन्होंने अपना अपमान समझा। वे अर्जुन पर आक्रमण करने के लिए तैयार हो गए। अर्जुन ने भी अपने बाण धनुष पर चढ़ा लिए। इसी बीच भीम ने बड़ी तेज गति से एक वृक्ष उखाड़ दिया और उसे लेकर वे अन्य राजाओं को टक्कर देने के लिए अर्जुन के साथ खड़े हो गए। सभी युद्ध के लिए तैयार हो रहे थे। ऐसा लग रहा था मानो अभी भीम किसी न किसी की जान ले लेंगे।
इसी बीच भगवान् श्रीकृष्ण ने अपने भाई बलरामजी से कहा- ‘भैया संकर्षण! विशाल धनुष को जिन्होंने हाथ में ले रखा है वे अर्जुन और ये जो बड़े वेग से वृक्ष उखाड़कर सहसा समस्त राजाओं का सामना करने के लिये उद्यत हुए हैं, ये और कोई नही बल्कि भीम है।
बलराम जी काफी खुश हुए कि उनकी बुआ कुंती के सभी पुत्र जीवित हैं। जबकि वो सोच रहे थे वारणावत में लाक्षागृह कि आग में सभी जलकर भस्म हो गए।
इस बीच शकुनि ने अर्जुन का सामने करने के लिए कर्ण के हाथ में एक धनुष दिया और अर्जुन पर चलने के लिए कहा। लेकिन अर्जुन ने कर्ण के हाथ में आते ही उस धनुष को अपने तीर से तोड़ दिया। कर्ण बोला- विप्रवर! युद्ध में आपके बाहुबल से मैं संतुष्ट हूं। क्योंकि विष्णु, इन्द्र, परशुराम, परशुराम शिष्य, पाण्डुनन्दन अर्जुन, और गुरु द्रोण व इनके शिष्य के अलावा मेरा धनुष कोई नही तोड़ सकता है। मैं आपके गुरु को प्रणाम करता हूँ। ऐसा कहकर कर्ण सभी कौरवों के साथ सभा से चले गए।
तब बलराम के कहने पर कृष्ण जी बीच में आये। और उन्होंने युद्ध जैसी स्थिति को रोक दिया। सभी राजा अपने अपने राज्य को लौट गए।
इधर अर्जुन द्रौपदी व भीम को लेकर माता कुंती के पास पहुंचे। इस प्रकार द्रौपदी स्वयंवर पूरा हुआ और अर्जुन ने उसमे द्रौपदी को पाया।