Draupadi Cheer Haran Story in hindi
द्रौपदी चीर हरण की कहानी
द्रौपदी चीर हरण की कहानी/कथा बड़ी ही मार्मिक औऱ दिल को दहला देने वाली है। अगर भगवान ना होते तो आज द्रौपदी की लाज कौन बचाता? मैं आर्टिकल के शुरू में ही लिख देता हूँ कि भगवान श्री कृष्ण ने आज अपने भक्त द्रौपदी के लिए वस्त्र के रूप में वस्त्रावतार ले लिया। भगवान ही तो ऐसा कर सकते हैं। जब कोई पति, कोई देवर, कोई ससुर, कोई कुल गुरु, कोई पितामह कोई चाचा काम नहीं आता तब भगवान ही भक्त की रक्षा करने के लिए दौड़े दौड़े आते हैं। आइये कथा में प्रवेश कीजिये–
महाराज युधिष्ठिर जुए में अपना सारा राज पाठ, धन, इन्द्रप्रथ, अपने सारे भाई, औऱ खुद को भी हार चुके थे। अंत में द्रौपदी को दांव पर लगाया औऱ द्रौपदी को भी शकुनि ने कुनीति से जीत लिया। अब द्रौपदी को दुर्योधन दासी कहने लगा। क्योंकि जो हार गया वो दास बन गया।
दुर्योधन ने द्वारपाल को आदेश दिया द्रौपदी को द्युत सभा में लाया जाये।
इस समय विदुर ने यहाँ पर दुर्योधन को खूब खरी-खोटी सुनाई। धृतराष्ट्र से कहा कि आज आपकी पुत्रवधु को इस सभा में बुलाया जा रहा है महाराज। आप इस अनर्थ को होने से रोक लीजिये। लेकिन किसी ने विदुर की एक न सुनी। दुर्योधन ने भी विदुर को खूब खरी खरी सुनाई।
अब द्वारपाल द्रौपदी के पास गया। द्रौपदी को कहा – महारानी! महाराज युधिष्ठिर अपना सारा राज पाठ, अपने सारे भाई औऱ खुद को जुए में हार चुके हैं। अंत में आपको भी दांव पर लगाया। इसमें भी उनकी हार हुई। अब आप दुर्योधन की दासी हुई। आपको दुर्योधन ने सभा में आने के लिए कहा है।
द्रौपदी की आँख से आंसू गिरने लगे। द्रौपदी ने कहा कि महाराज से कहना – ‘द्रौपदी आपसे पूछना चाहती है कि किस-किस वस्तु के स्वामी रहते हुए आप मुझे हारे हैं ? आप पहले अपने आपको हारे हैं या मुझे ?’
द्वार पाल सभा में आये औऱ दुर्योधन को ये सब बात बताई। दुर्योधन क्रोधित हुआ। तब दुर्योधन बोला – द्वारपाल! तुम जाकर कह दो, द्रौपदी यही आकर अपने इस प्रश्न को पूछे।
प्रातिकामी ने कहा – राजकुमारी! दुर्योधन तुम्हें सभा में ही बुला रहे हैं और कह रहे हैं आप खुद ही सभा में जाकर अपना प्रश्न पूछ लो।
द्रौपदी ने सभा में जाने से मना कर दिया।
दुर्योधन अब अत्यंत क्रोधित हुआ। दुर्योधन बोला – दु:शासन! तुम जाओ और द्रौपदी को सभा में खींचकर लाओ।
Draupadi Cheer Haran : द्रौपदी चीर हरण
दु:शासन द्रौपदी के पास गया और उस बेचारी आर्त अबला को अनाथ की भाँति घसीटता हुआ सभा के समीप ले आया और जैसे वायु केले के वृक्ष को झकझोरकर झुका देता है, उसी प्रकार वह द्रौपदी को बलपूर्वक खींचने लगा।
दु:शासन के खींचने से द्रौपदी का शरीर झुक गया। उसने कहा – मन्दबुद्धि दु:शासन! मैं रजस्वला हूँ तथा मेरे शरीर पर एक ही वस्त्र है। इस दशा में मुझे सभा में ले जाना अनुचित है’।
यह सुनकर दु:शासन अनाप सनाप बकने लगा और बोला- द्रौपदी! तू रजस्वला है या एकवस्त्रा, हमने तुझे जूए में जीता है; अत: तू हमारी दासी हो चुकी है, इसलिये अब तुझे हमारी इच्छा अनुसार दासियों में रहना पड़ेगा।
द्रौपदी ने फिर कहा- अरे दुष्ट! इस सभा में शास्त्रों क विद्वान्, कर्मठ और इन्द्र के समान तेजस्वी मेरे पिता के समान सभी गुरुजन बैठे हुए हैं। मैं उनके सामने इस रूप में खड़ी होना नहीं चाहती। दुराचारी दु:शासन! तू इस प्रकार मुझे मत खींच।
लेकिन दु:शासन ने द्रौपदी जी की एक बात न सुनी, और द्रौपदी जी को बालों से पकड़कर, घसीटकर बुरी तरह से सभा में ले गया।
द्रौपदी ने देखा सभा में बैठे हुए सभी कुरूवंशी चुपचाप देख रहे हैं। द्रोणाचार्य, पितामह भीष्म, महात्मा विदुर तथा राजा धृतराष्ट्र में अब कोई शक्ति नहीं रह गयी है; तभी तो ये कुरूवंश के बडे़-बडे़ महापुरुष राजा दुर्योधन के इस भयानक पापा चार की ओर दष्टिपात नहीं कर रहे हैं।
द्रौपदी बोली- मेरे इस प्रश्न का सभी सभा सद् उत्तर दें। राजाओ! आप-लोग क्या समझते हैं ? धर्म के अनुसार मैं जीती गयी हूँ या नहीं? क्या कोई हरा हुआ व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को दांव पर लगा सकता है? इस प्रकार करूण स्वर में रोती हुई सभा के मध्य में द्रौपदी ने क्रोध में भरे हुए अपने पतियों की ओर तिरछी दृष्टि से देखा। पाण्डवों क्रोध की अग्नि में जल रहे थे।
उस समय वहाँ दुर्योधन, कर्ण, शकुनि और दुर्योधन को छोड़कर अन्य सब लोगों को सभा में इस प्रकार घसीटी जाती हुई द्रौपदी की दुर्दशा देखकर बड़ा दु:ख हुआ।
पाण्डवों को दुखी और राजकुमारी द्रौपदी को घसीटी जाती हुई देख धृतराष्ट्र के एक पुत्र विकर्ण ने द्रौपदी से सहमति जताई और इस द्युत क्रीड़ा का विरोध किया। विकर्ण कहते हैं द्रौपदी ने जो प्रश्न उपस्थित किया है, उसका आप लोग उत्तर दें। यदि इसके प्रश्न का ठीक-ठीक विवेचन नहीं किया गया, तो हमें शीघ्र ही नरक भोगना पड़ेगा। इस प्रकार विकर्ण ने उन सब सभासदों से बार-बार अनुरोध किया। लेकिन दुर्योधन, कर्ण आदि ने विकर्ण को डांट कर चुप करवा दिया।
अब द्रौपदी ने भीष्म से पूछा- भीष्म ने कहा- सौभाग्यशाली बहू! धर्म का स्वरूप अत्यन्त सूक्ष्म होने के कारण मैं तुम्हारे इस प्रश्न का ठीक-ठीक विवेचन नहीं कर सकता। जो स्वामी नहीं है वह पराये धन को दाँव पर नहीं लगा सकता, लेकिन पत्नी तो सदैव पति की ही रहती है। पांडवों ने खुद ही अपने आपको और तुमको हारा है।
द्रौपदी ने कहा – राजा युधिष्ठिर को सभा में बुलाकर जूए का खेल शुरू कर दिया। इन्हें जूआ खेलने का अधिक अभ्यास नहीं है। फिर इनके मन में जूए की इच्छा क्यों उत्पन्न की गई ?
इन सब दुरात्माओं ने मिलकर इन भोले-भोलेमहाराज युधिष्ठिर को पहले जूए में जीत लिया है, उसके बाद ये मुझे दाँव पर लगाने के लिये विवश किये गये हैं। क्या अब आप सभी लोग धर्म को भूल गए हैं?
द्रौपदी ने ये प्रश्न कृपाचार्य, गुरु द्रोणाचार्य से भी किये लेकिन वे भी कोई उत्तर नहीं दे पाए। अंत में धृतराष्ट्र से भी ये प्रश्न किये। धृतराष्ट्र ने कहा की दुर्योधन ने युधिष्ठिर की मर्जी से ही तुमको जीता है। तुम खुद अपने पति से ही प्रश्न करो।
दुर्योधन ने द्रौपदी से कहा- आओ दासी! हमारी जंघाओं पर बैठ जाओ। तभी भीम ने कसम खाई दुर्योधन तेरी जंघाओं को अगर मैंने नहीं तोडा तो सात जन्मों तक तुम्हारा दास बनूँगा।
कर्ण ने कहा- दास तो तुम अभी बन गए हो। सात जन्मों की बात क्यों करते हो।
अब कर्ण ने बहुत सारे अनुचित शब्द कहे। द्रौपदी को पांच पतियों की पत्नी और वेश्या तक कह दिया। अर्जुन ने यहाँ पर कर्ण को सूत पुत्र कहकर खूब सुनाई। लेकिन युधिष्ठिर ने भीम व अर्जुन को चुप करवाया है।
अब दुर्योधन ने अपने भाई दु:शासन को कहा कि तुम इस दासी द्रोपदी के चीर का हरण कर लो। द्रोपदी को निर्वस्त्र कर दो। दु:शासन ने भरी सभा में द्रौपदी का वस्त्र बलपूर्वक पकड़कर खींचना शुरू कर। जब वस्त्र खींचा जाने लगा, तब द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण किया। द्रौपदी आज सब कुछ भुलाकर भगवान श्री कृष्ण को याद कर रही है। द्रौपदी जी ने अपनी साड़ी का पल्लू पकड़ रखा था उसे भी छोड़ दिया। केवल और केवल श्री कृष्ण को याद कर रही है।
भीम ने कहा – देश-देशान्तर के निवासी क्षत्रियो! आप लोग मेरी इस बात पर ध्यान दें। ऐसी बात आज से पहले न तो किसी ने कही होगी और न दूसरा कोई कहेगा ही। यह खोटी बुद्धिवाला दु:शासन भरतवंश के लिये कलंक है। मैं युद्ध में बलपूर्वक इस पापी की छाती फाड़कर इसका रक्त पीऊँगा। ये मैं प्रतिज्ञा करता हूँ। यदि अपनी कही हुई उस बात को पूरा न करूँ, तो मुझे अपने पूर्वज बाप-दादों की श्रेष्ठ गति न मिले।
Krishna Vastra Avatar Story in hindi : कृष्ण का वस्त्र अवतार
द्रौपदी ने मन-ही-मन कहा—मैंने पूर्वकाल में महात्मा वसिष्ठजी की बतायी हुई इस बात कों अच्छी तरह समझा है कि भारी विपत्ति पड़ने पर भगवान श्रीहरि का स्मरण करना चाहिये। द्रौपदी ने बार-बार ‘गोविन्द’ और ‘कृष्ण’ का नाम लेकर पुकार रही है। द्रौपदी कहती हैं- ‘गोविन्द! हे द्वारकावासी श्रीकृष्ण! हे गोपांगनाओं के प्राणवल्लभ केशव! कौरव मेरा अपमान कर रहे हैं, क्या आप नहीं जानते ? है नाथ! हे रमानाथ! हे व्रजनाथ! हे संकटनाशन जनार्दन! मैं कौरवरूप समुद्र में डूबी जा रही हूँ, मेरा उद्धार कीजिये। ’सच्च्िदानन्द स्वरूप श्री कृष्ण! महायोगिन्! विश्रमात्मन्! विश्वभावन! गोविन्द! कौरवों के बीच में कष्ट पाती हुई मुझे शरणागत अबला की रक्षा कीजियें’।
द्रौपदी कहती हैं- हे कृष्ण ! मेरी लाज तेरी लाज , तेरी लाज मेरी लाज !!
मेरी लाज जाएगी तो , तेरी लाज जाएगी..
अगर आज मेरी लाज लूटी तो तेरी होंगी हसी, आप क्या मुँह दिखाओगे भक्तो को।
लेकिन भगवान श्री कृष्ण के गुण जिसने गाये भगवान दौड़े चले आये। भगवान कहते हैं मेरी शरण में आये मेरे भक्त की रक्षा करना मेरा व्रत है , मेरा कर्तव्य है , मेरा धर्म है। आज भगवान ने द्रौपदी की करुण पुकार सुनकर वस्त्र अवतार धारण कर लिया।
दु:शासन द्रौपदी की साड़ी खींचने में लगा हुआ है। लेकिन साड़ी खत्म ही नहीं होती है। वो खींचता जा रहा है और साडी बढ़ती जा रही है। द्रौपदी का चीर बढ़ता ही जा रहा है। आज सभी भगवान के इस चमत्कार को देख रहे हैं।
दु:शासन में दस हजार हाथियों जितना बल था और द्रौपदी का चीर छोटा सा था, थोड़ा सा था लेकिन भगवान का प्रेम देखिये, भगवान की करुणा देखिये–
दस हजार गज बल थक्यो , पर थक्यो न दस गज चीर।।
आज दस हजार हाथियों की ताकत हार गई और दस गज चीर(साडी) की जीत हुई। भगवान श्री कृष्ण ने वस्त्रावतार रूप धारण करके आज द्रौपदी की भरी सभा में लाज बचा ली।
भगवान कहते है- मेरे भक्त की लाज मेरी लाज से भी बढ़ कर है। मैं उनकी लाज कभी नही जाने देता। मुझे मेरी लाज की परवाह हो न हो, पर मेरे भक्त की लाज की मैं हमेशा परवाह करता हूँ।