Draupadi 5(Five) son and Abhimanyu Birth Story in hindi
द्रौपदी के 5(पांच) पुत्र और अभिमन्यु के जन्म की कहानी
अर्जुन के 3 विवाह हुए हैं। पहला द्रौपदी के साथ। दूसरा चित्रांगदा के साथ और तीसरा सुभद्रा के साथ। अर्जुन द्रौपदी, सभी पांडव, अर्जुन व सुभद्रा हस्तिनापुर में सभी ख़ुशी से रह रहे हैं।
Abhimanayu Birth(Janam) Story(Katha) : अभिमन्यु की जन्म कहानी(कथा)
कुछ समय के बाद सुभद्रा के एक पुत्र हुआ। जिसका नाम अभिमन्यु रखा गया। उसके जन्म लेने पर युधिष्ठिर ने ब्राह्मणों को दस हजार गौएँ तथा बहुत सी स्वर्ण मुद्राएँ दान में दीं।
अभिमन्यु बचपन से ही भगवान् श्रीकृष्ण का अत्यन्त प्रिय हो गया था। श्रीकृष्ण ने जन्म से ही उसके लालन-पालन की सुन्दर व्यवस्थाएँ की थीं। बालक अभिमन्यु दिनों-दिन बढ़ने लगा। अभिमन्यु ने वेदों का ज्ञान प्राप्त करके अपने पिता अर्जुन से धनुर्वेद का ज्ञान प्राप्त कर लिया। अस्त्रों के विज्ञान, सौष्ठव (प्रयोगपटुता) तथा सम्पूर्ण क्रियाओं में भी महाबली अर्जुन ने उसे विशेष शिक्षा दी थी। यह बालक शूरता, पराक्रम, रूप और आकृति – सभी बातों में श्रीकृष्ण के समान ही जान पड़ता था।
Draupadi Five Son Birth Story(katha) : द्रौपदी के पांच पुत्र का जन्म
द्रौपदी ने भी अपने पाँचों पतियों से पाँच श्रेष्ठ पुत्रों को प्राप्त किया। वे सभी वीर और पहाड़ के समान अविचल थे।
युधिष्ठिर से प्रतिविन्धय(Prativindhya) नामक पुत्र हुआ।
भीम से सुतसोम(Sutasoma) नाम का पुत्र हुआ।
अर्जुन से जो पुत्र हुआ उसका नाम श्रुतकर्मा(Shrutakarma) रखा गया।
नकुल से जो पुत्र हुआ उसका नाम शतानीक(Satanika) रखा।
सहदेव से श्रुतसेन(Shrutasena) नाम के पुत्र उत्पन्न हुए ।
ब्राह्मणों ने युधिष्ठिर से उसके पुत्र का नाम शास्त्र के अनुसार प्रतिविन्ध्य बताया। उनका उद्देश्य यह था कि यह प्रहार जनित वेदना के ज्ञान में विन्ध्य पर्वत के समान हो। (इसे शत्रुओं के प्रहार से तनिक भी पीड़ा न हो)।
भीम सहस्त्र सोमयाग करने के पश्चात् द्रौपदी ने उनसे सोम और सूर्य के समान तेजस्वी महान् धनुर्धर पुत्र को उत्पन्न किया था, इसलिय उसका नाम सुतसोम रक्खा गया।
अर्जुन ने महान् एवं विख्यात कर्म करने के बाद लौटकर द्रौपदी से पुत्र उत्पन्न किया था, इसलिये उनके पुत्र का नाम श्रुतकर्मा हुआ।
कौरवकुल के महामना राजर्षि शतानीक के नाम पर नकुल ने अपने कीर्तिवर्धक पुत्र का नाम शतानीक रख दिया।
इसके बाद द्रौपदी ने सहदेव से अग्निदेवता सम्बन्धी कृत्तिका नक्षत्र में एक पुत्र उत्पन्न किया, इसलिये उसका नाम श्रुतसेन रखा गया। श्रुतसेन अग्नि का ही नाम है।
ये सभी पुत्र द्रौपदी को एक एक वर्ष के अन्तर से पैदा हुए थे। सभी सबका कल्याण चाहने वाले थे।
इनके जन्म के बाद पुरोहित धौम्य ने सभी बालकों के जातकर्म, चूड़ाकरण और उपनयन आदि संस्कार विधिपूर्वक सम्पन्न किये। पूर्णरूप से ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने वाले उन बालकों ने धौम्य मुनि से वेदाध्ययन करने के पश्चात् अर्जुन से सम्पूर्ण दिव्य और मानुष धनुर्वेद का ज्ञान प्राप्त किया।
देवपुत्रों के समान चैड़ी छाती वाले उन महारथी पुत्रों से संयुक्त हो पाण्डव बड़े प्रसन्न हुए।
इस प्रकार द्रौपदी के 5 पुत्रों का वर्णन महाभारत में आता है। महाभारत युद्ध के पूरा होने के बाद(अंत में) अश्वत्थामा ने द्रौपदी के इन पाँचों पुत्रों को सोते हुए मार दिया था।