Arjun and Chitrangada Marriage(Vivah) Story in hindi
अर्जुन और चित्रागंदा के विवाह की कहानी
अर्जुन को वनवास मिला। फिर अर्जुन का संग एक नागराज की कन्या ‘उलूपी’ के साथ हुआ। इससे अर्जुन को इरावान नमक एक पुत्र हुआ। अर्जुन यहाँ से आगे निकले हैं। वनवास भोगते भोगते अर्जुन हिमालय में गए। फिर हिमालय में दान पूण्य करके पूर्व दिशा की ओर चल दिये। अनेक तीर्थों में घूमने के बाद अर्जुन महेन्द्र पर्वत का दर्शन कर समुद्र के किनारे-किनारे यात्रा करते हुए धीरे-धीरे मणिपूर पहुंच गये।
वहां के सभी तीर्थों और पवित्र मन्दिरों में जाने के बाद अर्जुन मणिपुर नरेश के पास गये। मणिपुर के स्वामी की एक सुंदर चित्रागंदा नाम वाली कन्या थी। उसको देखने के बाद अर्जुन के मन में उसे प्राप्त करने की अभिलाषा हुई। अर्जुन ने राजा से मिलकर अपना अभिप्राय इस प्रकार बताया-‘महाराज! मुझ क्षत्रिय को आप अपनी यह पुत्री प्रदान कर दीजिये’।
यह सुनकर राजा ने पूछा- ‘आप कौन है ?’ अर्जुन ने कहा- ‘मैं महाराज पाण्डु तथा कुन्ती देवी का पुत्र हूं। मेरा नाम अर्जुन है।
तब राजा ने कहा- अर्जुन मैं तुम्हारा विवाह अपनी बेटी के साथ करवाने के लिए तैयार हूँ लेकिन मेरी एक शर्त है- ‘हमारे कुल में पहले प्रभञ्जन नाम से एक प्रसिद्ध राजा थे। ‘उनके कोई पुत्र नहीं था, इसलिए उन्होंने पुत्र की इच्छा से उत्तम तपस्या प्रारम्भ की। उन्होंने उस समय उग्र तपस्या से पिनाकधारी महादेव को संतुष्ट कर दिया। तब भगवन शिव ने उन्हें वरदान देते हुए बोले, तुम्हारे कुल में एक-एक संतान होती जायगी’।
इस कारण हमारे इस कुल में सदा से एक-एक संतान ही होती चली आ रही है। मेरे अन्य सभी पूर्वजों के तो पुत्र होते आये हैं, परंतु मेरे यह कन्या ही हुई है। यही इस कुल की परम्परा को चलानेवाली है।
इसलिए मेरे लिए ये मेरी पुत्री नही बल्कि मेरा पुत्र है। अब इससे जो प्रथम पुत्र होगा, वह मेरा ही पुत्र माना जायगा, इस कारण से मैंने इसे पुत्र की संज्ञा दे राखी है। तुम्हारे द्वारा इसके गर्भ से जो एक पुत्र उत्पन्न हो, वह यही रहकर उस कुल परम्परा का प्रवर्तक हो; इस कन्या के विवाह का यही शुल्क आपको देना होगा।
अर्जुन ने शर्त मान ली और उस कन्या से विवाह किया। कन्या का पाणिग्रहण करके उन्होंने तीन वर्षो तक उसके साथ उस नगर में निवास किया। उसके गर्भ से एक पुत्र उत्पन्न हुआ जिसका नाम ‘बभ्रुवाहन’ रखा गया।इसके बाद अर्जुन ने यहाँ से विदा ली तथा राजा चित्रवाहन से पूछकर वे पुन: तीर्थों में भ्रमण करने के लिये चल दिये।