Amir Khusro and Nizamuddin Auliya Story in hindi
अमीर खुसरो और निज़ामुद्दीन औलिया की कहानी
अमीर खुसरो बड़ा संपन्न था और वो आश्रित था निजामुद्दिन औलिया का।
बाबा निजामुद्दिन औलिया बैठे हैं। 1 आदमी उसके पास जाता है …गरीब। चुपचाप खड़ा रह गया। भीड़ कम हुई, मौका मिला।
तो औलिया फकीर ने पूछा कि कोई काम है?
तो रो पड़ा, बोले …बेटी विवाह योग्य हो गई। बिल्कुल गरीब हूँ ..कुछ नहीं है। उसकी माँ मर गई है। मेरा कोई नहीं। आपका नाम सुना है कि आप दाता हैं …कुछ कृपा करो।
वो भी फकीर …कुछ नहीं था …तो सोचने लगे कि क्या करूँ। मुद्दत डाल दी …ऐसा करो अगले सप्ताह आना ….कोशिश करेंगे।
1 तसल्ली हुई, वो चला गया क्योंकि महात्मा का वचन है …फिर क्यूँ चिंता? तो चला गया।
फिर सप्ताह के बाद आ गया। बाबा निजामुद्दिन को याद आया कि अरे …क्षमा करें ..मैं भूल गया। अगले सप्ताह आना ….3..4 बार आया।
अब निजामुद्दिन की आँखें डबडबा गई कि करूँ क्या? मेरे पास कुछ नहीं ….तो अपने पास जो जूतियाँ थीं …पादुका ..वो जो पहनते थे ..वो उसको दे दी कि लो …ये ले जाओ ….हो जायेगा।
अपने फटे चीथड़े में लपेटकर, बगल में दबाकर लेकिन उसको बड़ी निराशा हुई कि बेटी की शादी इससे थोडी हो सकेगी, ठीक है प्रसाद तो मिला।
नगर के बाहर जब जा रहा है दूर, उसी समय अमीर खुसरो अपना रसाला लेकर जीवन भर की संपदा लेकर ऊँटो पर लादकर के आ रहा है।
इतने में अमीर ने अपने मंत्रियों को कहा कि रोको, मुझे मेरे पीर की खुश्बू आ रही है ….मेरे गुरू की …मेरे सदगुरू की गंध आ रही है। अगल बगल में मेरे गुरू की कोई चीज़ होनी चाहिये।
साधना की 1 खुश्बू होती है साहब …भजन की 1 महक होती है।
तलाश करो। तो देखा इधर उधर .तो 1 गरीब आदमी बोला चलो हमारे साथ, ले गये।
ऊँट से अमीर उतरा है। खुश्बू और तीव्र हुई …पूछा कहाँ से आ रहा है?
बोले निजामुद्दिन औलिया के पास से…. 5 सप्ताह से जा रहा हूँ। बेटी कुँवारी है, पैसे नहीं है और आज आखिर में उसने अपनी जूतियाँ दे दी हैं।
ओह्ह् …मेरे पीर की खुश्बू उसकी पादुका में है …ला ..ला।
और इतिहास कहता है ….अपने गुरू की जूतियाँ उसने ले ली और उसके बदले में जितनी संपदा जीवन भर की थी। सब दे दी और ये जूतियाँ अपने सिर पर रखकर अमीर खुसरो बाबा के स्थान में आया ….निजामुद्दिन के पास।
बाबा ने कहा – अमीर! तू ये कहाँ से लाया ? मैने तो 1 अकिंचन को दिया था।
अमरि बोले हाँ बाबा, मैने उससे ले ली।
बाबा बोले – कितने में?
बोले – पूरे जीवन भर की पूरी संपदा दे दी।
बाबा बोले – बहुत सस्ते में ले ली तूने…. बहुत सस्ते में।
पाकिस्ताना शायराना परवीन शाकिर की बहुत प्रसिद्ध गज़ल है ये।
तेरी खुश्बू का पता करती है …
मुझपे एहसान हवा करती है …
दिल को उस राह पे चलना ही नहीं …
जो मुझे तुझसे जुदा करती है ….
शब की तनहाई में अब तो अक्सर …
गुफ़तगु तुझसे रहा करती है …..
ज़िन्दगी मेरी थी ..लेकिन अब तो …
तेरे कहने में रहा करती है ….
ये हवा मुझपे बहुत महरबान है कि तेरी खुश्बू का पता ये हवा लाती है …..तो ये खुश्बू आती है तो संभावना बढ़ जाती है कि मेरा मुर्शिद वहाँ बैठा होगा ….इस पवन के कारण …इस वायुपुत्र के कारण हम राम तक पहुँच जाते हैं।
मोरारी बापू के शब्द
मानस राम राजा
जय सियाराम
Wah
thanks