Amba Ambika Ambalika and Bhishma story in hindi
अम्बा अम्बिका अम्बालिका और भीष्म कहानी/कथा
भीष्म ने आजीवन ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा ली और उनके पिता शांतनु ने उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान दिया। फिर सत्यवती चेदिराज वसु की पुत्री है और निषादराज ने इसका पालन-पोषण किया है- यह जानकर राजा शान्तनु ने उसके साथ शास्त्रीय विधि से विवाह किया।
Chitrāngada and Vichitravirya Story : चित्रांगद और विचित्रवीर्य की कथा
कुछ समय के बाद सत्यवती के गर्भ से शान्तनु का बुद्धिमान् पुत्र वीर चित्रांगद(Chitrangada) उत्पन्न हुआ। इसके बाद दूसरे पुत्र विचित्रवीर्य(Vichitravirya) का जन्म हुआ। विचित्रवीर्य अभी युवावस्था में भी नही पहुंचे थे कि महाराजा शान्तनु की मृत्यु हो गयी। शान्तनु के स्वर्गवासी हो जाने पर भीष्म ने सत्यवती की सहमति से चित्रांगद को राज्य पर बिठाया। चित्रांगद अपने शौर्य के घमंड में आकर सब राजाओं का अपमान करने लगे। चित्रांगद सभी को अपने से छोटा समझता था।
एक दिन एक गंधर्व चित्रांगद के पास आया और उसे युद्ध के लिए ललकारा। राजा चित्रांगद और गंधर्वराज के बीच सरस्वती नदी के तट पर तीन वर्षों तक युद्ध होता रहा। अंत में उस गंधर्व ने चित्रांगद का वध कर डाला। चित्रांगद को मारकर वह गन्धर्व स्वर्गलोक में चला गया। चित्रांगद के मारे जाने पर भीष्म ने उनके प्रेम-कर्म करवाये। जनमेयज ! चित्रांगद के मारे जाने पर दूसरे भाई विचित्रवीर्य अभी बहुत छोटे थे, इसलिए सत्यवती की राय से भीष्मजी ने ही उस राज्य का पालन किया। जब विचित्रवीर्य धीरे-धीरे युवावस्था में पहुंचे, तब बुद्धिमानों में श्रेष्ठ भीष्मजी ने उनकी वह अवस्था देख विचित्रवीर्य के विवाह पर विचार किया।
Amba Ambika and Ambalika Swayamvara : अम्बा अम्बिका और अम्बालिका का स्वयंवर
भीष्म ने सुना की काशिराज की तीन कन्याएं(अम्बा,अम्बिका और अम्बालिका )एक साथ ही स्वयंवर सभा में पति का वरण करने वाली हैं। तब माता सत्यवती की आज्ञा से भीष्म भी उस स्वयंवर में पहुंचे। सभी ने सोचा की भीष्म तो आजीवन ब्रह्मचारी हैं और अब ये बूढ़े हो गए है तो भी स्वयंवर में आये हैं। ऐसा कहकर और सोचकर सभी राजा(जो स्वयम्वर के लिए आये थे) हँसने लगे। भीष्म को क्रोध आ गया। उन्होंने उन कन्याओं को उठाकर रथ पर चढ़ा लिया और समस्त राजाओं को ललकारते हएु कहा- ‘ मैं इन कन्याओं को यहां से बलपूर्वक हर ले जाना चाहता हूं। इस तरह का विवाह विद्वानों ने आठवां प्रकार का विवाह माना है। आप में से कोई भी राजा यदि मुझे जाने से रोक लेगा तो मैं अपनी हार स्वीकार कर लूंगा।
उन राजाओं ने भीष्म के साथ घोर युद्ध किया। उन नरेशों ने भीष्मजी पर एक ही साथ दस हजार बाण चलाये; परंतु भीष्मजी ने उन सबको शीघ्रता पूर्वक काट गिराया। भीष्मजी ने सब ओर से उस बाण-वर्षा को रोक कर उन सभी राजाओं को तीन-तीन बाणों से घायल कर दिया। लेकिन ये सभी भीष्म जी को रोकने में सफल न हो पाए।
फिर भीष्म और शाल्व के बीच जबरदस्त युद्ध हुआ। लेकिन भीष्म ने अंत में शाल्व को भी हरा दिया। भीष्म से हारने के बाद शाल्व अपनी राजधानी लौट गया और धर्मपूर्वक राज्य का पालन करने लगा। अब भीष्म सभी योद्धाओं को हराकर और उन कन्याओं को जीतकर हस्तिनापुर पहुंचे। अब भीष्म ने उन सर्वसद्गुण सम्पन्न कन्याओं को अपने छोटे भाई विचित्रवीर्य के हाथ में दिया।
अब भीष्म अपनी माता सत्यवती से सलाह ले अपने भाई विचित्रवीर्य के विवाह की तैयारी करने लगे। तभी काशिराज की उन कन्याओं में जो सबसे बड़ी थी, वह बड़ी सती-साध्वी थी। उसने जब सुना कि भीष्मजी मेरा विवाह अपने छोटे भाई के साथ करेंगे, तब वह उनसे इस प्रकार बोली-‘धर्मात्मन् ! मैंने पहले से ही मन-ही-मन सौम नामक विमान के अधिपति राजा शाल्व को पतिरुप में वरण कर लिया था। उन्होंने भी पूर्वकाल में मेरा वरण किया था। मेरे पिताजी की भी यही इच्छा थी कि मेरा विवाह शाल्व के साथ हो। ‘उस स्वयंवर में मुझे राजा शाल्व का ही वरण करना था।
भीष्म ने विद्वान् ब्राह्मणों के साथ विचार करके काशिराज की ज्येष्ठ पुत्री अम्बा को उस समय शाल्व के यहां जाने की अनुमति दे दी। शेष दो कन्याओं(अम्बिका और अम्बालिका) का विवाह शास्त्रोक्त विधि के अनुसार छोटे भाई विचित्रवीर्य के साथ कर दिया।