Abhimanyu Uttara Marriage/Vivah Story in hindi
अभिमन्यु उत्तरा के विवाह की कथा/कहानी
अभिमन्यु अर्जुन और सुभद्रा के पुत्र हैं। अभिमन्यु का विवाह, राजा विराट की बेटी उत्तरा से हुआ।इसके पीछे एक बड़ी ही रुचिकर कथा है। पांडवों को 12 वर्ष का वनवास व एक वर्ष का अज्ञातवास मिला था। क्योंकि ये जुए में अपना राज पाठ सब कुछ हार गए थे। पांडवों ने 12 वर्ष तो जैसे तैसे जंगल में बिता दिए लेकिन अज्ञातवास के लिए इनको छिपकर रहना था। तब सभी पांडवों ने अपना भेष बदला और मत्स्य नगर के राजा विराट के यहाँ पर रहने लगे। युधिष्ठिर कंक के रूप में, भीम बल्लभ के रूप में, अर्जुन वृहन्नला के रूप में , नकुल तन्तिपाल के रूप में, सहदेव ग्रान्थिक के रूप तथा द्रौपदी सैरंध्री के रूप में यहाँ पर रहने लगे। युधिष्ठिर राजा विराट के सहायक के सहायक बन गए। भीम रसोइया बन गए, अर्जुन राजा विराट की पुत्री उत्तरा को नृत्य और संगीत सीखाने लगे।सहदेव गौशाला को सँभालने लगे और नकुल घोड़ों की देखभाल में लग गए जबकि द्रौपदी राजा विराट की पत्नी सुदेष्णा की सेवा में लग गई।
एक दिन सुदेष्णा का भाई कीचक इनके राज्य में आया और उसने द्रौपदी पर बुरी नजर डाली। भीम ने कीचक का वध कर दिया। इसकी खबर कौरवों को लगी तो उन्होंने विराट नगर पर आक्रमण कर दिया। अर्जुन ने राजा विराट के पुत्र उत्तर के साथ युद्ध में सबको परास्त कर दिया। जब युद्ध से वापिस लौटे तो राजा विराट ने उत्तर की खूब वाह वाही की।
अज्ञातवास पूरा होने पर सभी पांडव द्रौपदी सहित अपने असली रूप में आ गए। तब राजा विराट को ज्ञात हुआ कि मेरे घर में जो रह रहे हैं वो कोई साधारण व्यक्ति नहीं थे बल्कि पांडव और उनकी धर्म पत्नी द्रौपदी जी हैं। उन्हें बड़ा अफ़सोस हुआ कि मैंने इन सबसे इतना काम करवाया और इन्हे ठीक से आदर भी नहीं दिया। इस अफ़सोस से उबरने के लिए उन्होंने अपनी बेटी अर्जुन को देने का निश्चय किया।
लेकिन अर्जुन ने राजा विराट से कहा- आप चाहते हैं कि मैं उत्तरा से विवाह कर लूँ। लेकिन ये संभव नहीं है। क्योंकि उत्तर मेरी शिष्या है और मैं इसका गुरु हूँ। इस कारण से मैं इससे विवाह नहीं कर सकता। वहां पर भगवान कृष्ण भी मौजूद हो गए थे। भगवान ने कहा- एक उपाय तो है, आप उत्तरा का विवाह अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु से कर दीजिये। सबको ये बात पसंद आई। उत्तरा का विवाह अभिमन्यु से करने का निश्चय किया गया।
विवाह का भव्य आयोजन किया गया। सभी को निमंत्रित किया गया लेकिन इस विवाह में कौरव पक्ष से कोई भी नहीं आया। क्योंकि भीष्म पितामह आदि काफी शर्मिंदा थे। क्योंकि उन सबके सामने द्रौपदी जी का अपमान हुआ।
Read : द्रौपदी चीर हरण की कथा
यहाँ पर द्रौपदी जी अभिमन्यु से मिली है। द्रौपदी अभिमन्यु को लम्बी आयु का वर देती है। उस भगवान कृष्ण वहीँ होते हैं वो रोक लेते हैं और द्रौपदी से कहते हैं कि आप भी ब्राह्मणो की तरह आशीर्वाद दे रहीं है। आप कुछ और आशीर्वाद दो। तब द्रौपदी इसको वरदान देती है कि तुम संसार में ऐसा काम करोगे जो किसी ने नहीं किया होगा। तुम्हारा नाम सदैव ही आदर से लिया जायेगा। इसके बाद द्रौपदी अपने पाँचों पुत्र से मिली है जो प्रत्येक पांडव से एक पैदा हुआ था।
इस प्रकार सबसे मिलने के बाद अभिमन्यु और उत्तरा का विवाह सबके आशीर्वाद के साथ खुशी ख़ुशी होता है।