Ram ne Bali ko kyo Mara
राम ने छुपकर बालि को क्यों मारा?
हम सब जानते हैं कि भगवान राम ने बालि को तीर मारा। तो लोग कहते हैं कि छिपकर क्यों मारा? क्या सबके सामने नहीं मार सकते थे? और मारा ही क्यों? इसी का जवाब आपके सामने है।
बालि और सुग्रीव युद्ध लड़ रहे हैं। श्री रघुनाथजी वृक्ष की आड़ से देख रहे थे। सुग्रीव ने बहुत से छल-बल किए, किंतु (अंत में) भय मानकर हृदय से हार गया। तब श्री रामजी ने तानकर बालि के हृदय में बाण मारा। बाण के लगते ही बालि व्याकुल होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा, किंतु प्रभु श्री रामचंद्रजी को आगे देखकर वह फिर उठ बैठा। भगवान् का श्याम शरीर है, सिर पर जटा बनाए हैं, लाल नेत्र हैं, बाण लिए हैं और धनुष चढ़ाए हैं। बालि ने बार-बार भगवान की ओर देखकर चित्त को उनके चरणों में लगा दिया। प्रभु को पहचानकर उसने अपना जन्म सफल माना। उसके हृदय में प्रीति थी, पर मुख में कठोर वचन थे। वह श्री रामजी की ओर देखकर बोला-
हे गोसाईं। आपने धर्म की रक्षा के लिए अवतार लिया है और मुझे व्याध की तरह (छिपकर) मारा? मैं बैरी और सुग्रीव प्यारा? हे नाथ! किस दोष से आपने मुझे मारा? आपको वीरों की तरह युद्ध करना चाहिए था… तुमने मेरी अकारण हत्या की है।
अब रामजी बोले हैं – वानर राज! आज मरने वाले हो तो तुम्हें धर्म याद आ रहा है.. सतकर्म याद आ रहा है.. और नीति की बात कर रहे हो।अपने जीवन काल में इसी धर्म और नीति का विचार तुमने सपने में भी नहीं किया। धर्म, अर्थ, काम और लौकिक सदाचार तुम खुद ही नहीं जानते हो। आचार्यों द्वारा धर्म के सूत्रों को ठीक ठीक जाने बिना ही आज तुम मुझे धर्म का उपदेश देना चाहते हो?
मेरी निंदा करते समय तुम मुझे एक अबोध बालक के समान दिखाई देते हो। तुम खुद चपल और चंचल चित्त वाले, अजितात्मा वानर तुम्हारे मंत्री हैं। जिस तरह एक अँधा दूसरे अंधे को रास्ता दिखाए वैसे ही तुम्हारे चपल मंत्री तुम्हें परामर्श देते हैं। फिर तुम धर्म का विचार कैसे कर सकते हो? धर्म के सूक्ष्म स्वरूप को कैसे समझ सकते हो? धर्म की बात तो दूर रही, अपने बल के घमंड में तुमने सामान्य लौकिक व्यवहार का आचार विचार कभी नहीं किया।
बड़ा भाई, पिता और गुरु तीनों एक जैसे पूजनीय हैं। इसी प्रकार छोटा भाई, पुत्र और शिष्य एक समान माने गए हैं।
तुलसीदास जी कहते हैं –
अनुज बधू भगिनी सुत नारी। सुनु सठ कन्या सम ए चारी॥
इन्हहि कुदृष्टि बिलोकइ जोई। ताहि बधें कछु पाप न होई॥
हे मूर्ख! सुन, छोटे भाई की स्त्री, बहिन, पुत्र की स्त्री और कन्या- ये चारों समान हैं। इनको जो कोई बुरी दृष्टि से देखता है, उसे मारने में कुछ भी पाप नहीं होता। लेकिन तुमने कभी किसी मर्यादा का कोई पालन नहीं किया। अपने छोटे भाई सुग्रीव के साथ अन्याय करके तुमने बिना किसी दोष के उसे भगा दिया और उसके जीते जी उसकी पत्नी को अधर्म और अनीति से पत्नी की तरह अपने अधीन रखा। ऐसे पुरुष का वध करना ही उसके लिए उपयुक्त दंड माना गया है।
बाली ने पूछा – अगर ये मेरा पाप भी था तो दंड देने का अधिकार केवल राजा को होता है। तुम्हें क्या अधिकार था न्याय का बाण अपने हाथ में लेने का?
रामजी कहते हैं – अहंकारी वानर तुम्हें ये पता होना चाहिए कि ये सारी पृथ्वी इक्ष्वाकु वंश के राजाओं की है। इस समय इक्ष्वाकु वंश के राजा भरत हैं। उन्हीं की आज्ञा पालन करने वाला और पवित्र इक्ष्वाकु वंश का वंशधर होने के नाते यहाँ के पशु पक्षी नर वानर सबके पति दया का भाव रखने अथवा उन्हें दंड देने का अधिकार मुझे प्राप्त है। धर्मात्मा राजा भरत इस पृथ्वी का पालन करते हैं और उनके रहते कोई भी प्राणी धर्म के विरुद्ध आचरण नहीं कर सकता। इसलिए हम सब उन्हीं की आज्ञा से श्रेष्ठ धर्म में स्थिर रहकर तुम जैसे पुरुषों को विधिवत दंड देते हैं। वालि सत्पुरुषों का धर्म अति सूक्षम होता है। इसे समझना बड़ा कठिन है। इतना समझ लो कि यदि राजा यदि पापी को दंड दे तो पापी उस दंड को भोगकर निष्पाप हो जाता है। परन्तु यदि राजा पापी को उचित दंड न दे तो उस दंड का फल राजा को स्वयं भोगना पड़ता है। मनुस्मृति में मनु महाराज ने भी यही कहा है कि
राजभिः कृतदण्डास्तु कृत्वा पापानि मानवाः ।
निर्मलाः स्वर्गं आयान्ति सन्तः सुकृतिनो यथा ।
अर्थ : मनुष्य पाप – अपराध करके पुनः राजाओं से दण्डित होकर अर्थात् राजा द्वारा दिये गये दण्डरूप प्रायश्चित्त को करके पवित्र – दोषमुक्त होकर सुख को प्राप्त करते हैं जैसे अच्छे कर्म करने वाले श्रेष्ठ लोग सुखी रहते हैं ।
शासनाद् वापि मोक्षाद् वा स्तेनः पापात् प्रमुच्यते।
राजा त्वशासन् पापस्य तदवाप्नोति किल्बिषम्।
राजा द्वारा दण्ड देने के बाद अथवा निर्दोष समझकर छोड़ देने के बाद चोर चोरी के अपराध से मुक्त हो जाता है। यदि राजा अपराधी को दण्ड नहीं देता तो उसका दोष राजा का माना जाता है।
बलि इस तरह से तुमने जो पाप किया है उसके अनुसार तुम्हारा वध धर्म के अनुसार सर्वदा उचित माना जायेगा।
बालि ने कहा प्रभु मैं अहंकार में चूर हो गया था। मेरी आत्मा के अंतरचक्षु खुल रहे हैं। मैंने आपको कुछ अनुचित बातें बोली है उसके लिए आप मुझे माफ़ कर दीजिये। चरण रज दी है। प्रायश्चित तो तुम्हारा दंड पाने से ही हो गया। तुम अब निष्पाप हो। हम तुम्हें अब ठीक कर देंगे। बालि ने कहा अब रक्षा किसलिए? जीवन तो बार बार मिल जायेगा पर ऐसी मृत्यु फिर नहीं मिलेगी। इस तरह राम ने बालि को मारा नहीं है बल्कि तारा है।
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महानुभव मै आपसे पूछना चाहता हूं श्री राम तो एक साहसी वीर और धर्मपरायण राजा थे और मै यह भी मानता हूं कि बाली ने जो कुछ किया वो धर्मानुसार सर्वथा अनुचित था लेकिन न्यायानिती के दृष्टिकोण से देखे तो न्यायमूर्ति प्रभु श्री राम को उसे विरोचित मृत्यु देनी थी कही न कहीं ये रामजी की विसंगति रही मेरी बात पर आप अवश्य विचार कीजिएगा…धन्यवाद🙏🙏
श्री मान जी आपके इस प्रश्न का उत्तर ये है के भगवान राम जी जो समय के पार देख सकते थे उन्होंने बाली को इस प्रकार मारने का उद्देश्य ये था कि जिस भील ने श्री राम जी के अगले अवतार कृष्ण जी को तीर मारा था वो बाली ही था। भगवान ने अपने अगले अवतार (श्री कृष्ण) के समय समाप्ति की लीला राम अवतार में ही रच दी थी। 🙏
महानुभव मै मानता हूं कि श्री राम वीर साहसी और धर्मपरायण राजा थे और मै यह भी मानता हूं कि बाली ने जो कुछ भी सुग्रीव के साथ किया वो नैतिकता की दृष्टिकोण से अनुचित था लेकिन न्यायमूर्ति प्रभु श्री राम को उसे विरोचित मृत्यु देनी थी कही न कहीं देखा जाए तो ये श्री राम की एक विसंगति थी जरा विचार कीजिएगा इस पर…… धन्यवाद 🙏🙏
सर जी आपकी पोस्ट बहुत अच्छी होती है आपकी पोस्ट से हमें कॉफी सारी जानकारीयॉ मिलती है आप ऐसे ही काम करते रहों।
Abhi ap bhagwan ki leelao ko smjhne me baalak ho. Ap apne gyan ko bdhaiye.bhagwan Ram ne jo kiya wo galat nhi tha.bali ko jo vardaan mila tha uski rksha bhi ram ko hi krni thi otherwise logo ka biswas vardaan pr nhi rh jata. Apni soch ko aur deeply le jaiye.