Bhakti kya hai ? What is devotion in hindi
भक्ति क्या है?
ह्रदय का भाव ही ये निश्चित करता है कि अभी हम परमात्मा के कितने करीब हैं….. ये क्रिया से पता नहीं चलेगा.. ये भाव से पता चलता है। क्रिया तो कई बार ऐसी लगती है कि सामने देखने वाले को लगेगा कि अरे, इनको तो भगवान मिल ही गए हैं।
यदि कुछ लोगों की क्रिया देखो तो वो पूरा दिन पूजा पाठ में, भजन में लगे रहते हैं। परन्तु केवल क्रिया इस बात का संकेत नहीं कर सकती कि व्यक्ति कितना परमात्मा के निकट है। क्योंकि भक्ति क्रिया से नहीं झलकती। भक्ति का सम्बन्ध ह्रदय से है। ध्यान रखिये..बड़े काम की बात मैं आपको बता रहा हूँ।
कई बार लोगों को लगता है कि माला जपना भक्ति(Bhakti) है। माला जपना भक्ति(Bhakti) नहीं है.. मंदिर जाना भक्ति(Bhakti) नहीं है…. कथा में बैठकर कथा सुनना भक्ति(Bhakti) नहीं है…. ये सब क्रियाएं हैं। हाँ! यदि इन क्रियाओं को करते करते, माला जपते जपते या मंदिर जाते जाते या ठाकुर जी की पूजा करते करते या तारकेश्वर धाम में बैठकर तारा बाबा के चरणों में कथा सुनते सुनते… यदि तुम्हारा मन भगवान के(बिहारी जी) के प्रेम से भर जाये तो समझ लेना अब तुम्हारे जीवन में भक्ति(Bhakti) आ गई है।
यदि ह्रदय में प्रभु के लिए भाव उत्पन्न हो जाये…. तो समझना… भक्ति(Bhakti) आ गई। यानि कथा सुनते सुनते ऐसी स्थिति आ जाये कि तुम सबको भूल जाओ…. चाहे 2 सेकंड के लिए ही ऐसा क्यों ना हो…… तुम बिहारी जी के प्रेम में विह्वल हो जाओ…. तो समझना भक्ति(Bhakti) की शुरुआत हो गई है।
बाकि तो सब साधन हैं… भक्ति(Bhakti) तक पहुँचने के लिए वो क्रियाएं हैं। उन साधनों को, उन क्रियाओं को करके हमें उस भक्ति(Bhakti) की ऊँची स्थिति तक.. उस भाव तक पहुँचना है जहाँ भगवान के सिवा कोई रहे ही ना…… संतों ने कहा है कि
तू तू करता तू भया , अब मुझमें बची न हूं…
ये जलवा है तेरे इश्क़ का… अब जित देखूं तित तू।
श्री राधे
शब्द : श्री गौरव कृष्ण गोस्वामीजी
((भागवत कथा – सिरसा))
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