भजन और कीर्तन में अंतर(फर्क)
Difference between Bhajan and Kirtan
एक श्रोता ने पूछा है …बापू …जय श्री कृष्ण!
कीर्तन और भजन में क्या फर्क है? कीर्तन और भजन कब और कैसे करना चाहिये? सरल शब्दों में समझाइये ….
मोरारी बापू बापू बोले – भजन गुप्त रूप से होता है …कीर्तन जाहिर में होता है।
भजन गुप्त रहना चाहिये ….यदि हम भजन करते हैं तो भजन स्वयं गुप्त रहने की ही कोशिश करेगा लेकिन किसीका मूल में पका हुआ भजन जब पुष्पित और फलित होता है …भजन आगे बढ़ता है 1 वृक्ष की तरह, तब रस उड़ेगा, बिखरेगा और उसी रस को बिखेरना ……रस का खुद से उठना …उसी को कीर्तन कहते हैं।
भजन उसको कहते हैं जो साधक को भी खबर ना हो और 24 घंटे चलता है लेकिन कीर्तन कभी कभी होता है।
भजन – कीर्तन कैसे करना चाहिये?
चैतन्य को पूछोगे तो कहेंगे ऊर्ध्वबाहु होकर करो।
नारद को पूछो तो कहेंगे वीणा बजाते बजाते करो।
मीरा को पूछो तो कहेगी नर्तन करते करते करो।
नानक को पूछो तो कहेंगे मर्दाना छेड …तू ज़रा राग छेड।
बुद्ध को पूछो तो कहेंगे ध्यान करो।
महावीर को पूछो तो कहेंगे बिल्कुल अकिंचन ….वस्त्र का भी पता ना रहे ऐसे खड़े हो जाओ।
भजन ऐसे करो कि पता ही ना चले लेकिन कीर्तन भी ऐसे करो कि परिवार को disturb ना हो। घरवालों को सोना हो और तुम उछल कूद करो तो ये कीर्तन ठीक नहीं लगेगा।
कीर्तन करने में ज़बरदस्ती परिवार वालों को शामिल भी मत करो ….ए !!कीर्तन कर ….उसे ऑफिस जाने दो।
अखंड कीर्तन जहाँ जहाँ चलते हैं ना वहाँ भी सविनय नियम रखने चाहिये कि रात को loud speaker बंद कर देने चाहिये।
मोरारी बापू के शब्द (मानस राम जनम के हेतु अनेका)
जय सियाराम
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