Tulsidas aur Shri Ram Ka Samvad
तुलसीदास और श्री राम का सबसे सुन्दर संवाद
भगवान राम ने तुलसीदासजी को 1 बार पूछा कि तुम्हारा मन क्या है?
तुलसीदासजी ने कहा कि मेरा मन भँवरा है।
राम ने कहा कि तुम्हारा मन अगर भँवरा है तो तुम्हें क्या चाहिये?
तो कहे कि भँवरे को कमल बहुत प्यारा होता है तो मुझे कमल दीजिये।
भगवान बोले तुझे 1 नहीं 4-4 कमल दे दूँ, ले।
नव कंज लोचन ……पहला कमल। .विनयपत्रिका का ये भँवरा और मेरा राम ….उनका संवाद …..तुम्हारा मन अगर भँवरा है तो ले …मेरे नेत्र रूपी कमल तुझे दे दूँ।
तुलसी ने कहा – प्रभु! ये आँख छोटे कमल हैं।
राम कहे तुझे 1 बड़ा कमल दे दूँ …उसमें बहुत कमल हैं नव कंज लोचन कंज मुख …….मेरा मुख….मेरा वदन …वो दे दूँ।
तुलसी बोले – मेरा मन बहुत लोभी है। उसको ज़्यादा चाहिये ….मुझे तो मेरी नज़र के सामने खिलता हो ऐसा कमल चाहिये ….क्यूँकी मुझे उसपर बैठना है।
भगवान बोले – लो …मैं तुझे खिलता हुआ कमल दूँ ….नव कंज लोचन कंज मुख कर कंज….ले …मेरे हाथ दूँ …खिलता हुआ कमल …..तुलसी बोले मुझे आप इतने सारे कमल दो तो जीव का स्वभाव है कि बोलेगा कि इस कमल का मूल क्या है ? मुझे मूल चाहिये …फूल नहीं …मुझे मूल तक पहुँचना है।
तो भगवान ने चौथा कमल दिया ….नव कंज लोचन कंज मुख कर कंज पद कंजारुणं ….भगवान ने कहा मेरे चरण कमल ले ….मूल।
ऐसे 4..4 कमल दिये …तो तुलसी ने बात घुमा दी।
तुलसीदाजी ने बात घुमा दी कि महाराज मेरा मन सिर्फ भँवरा नहीं ….मेरा मन तो मोर है ..मयूर है …कुछ दो।
राम बोले क्या दूँ तुम्हें? चारा दूँ? कि मोरनी दूँ?
नहीं….नहीं…. चारा नहीं चाहिये और मोरनी भी नहीं चाहिये क्यूँकी मोर संयमी पक्ष है …तभी तो उसका पंख ठाकुरजी सिर पे सजाते हैं …तुलसीदासजी बोले …मोर को भी आनंद होता है जब मेघ घटा चढ़े ….मुझे बादल चाहिए।
तो राम बोले ….ले मेघ …..कंदर्प अगणित अमित छबि नवनील नीरद सुन्दरं ….मेरा वर्ण बादलों के जैसा है।
तुलसीदासजी कहे कि मैं तो मोर हूँ, मुझे तो नाचना है और मैं तभी नाचूँ जब मेघ बरसे
तो भगवान बोले चल मैं मेघ का इंतजाम कर दूँ …नील वर्ण के बादल के जैसा मैं सुंदर हूँ।
तुलसी कहे.. लेकिन जब तक बिजली की चमक ना हो तब तक मजा ना आये….. तो फिर …….पट पीतमानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरं …..मेरा वर्ण मेघ का और मैं पितांबर ऐसा पहनूँ ….और फिर मेरे हनुमान का पिता …पवन बहता है …और मेरा पीला पितांबर ऐसे उडेगा कि वो बिजली की चमक जैसा तुम्हें लगेगा ….अब तो तुलसी संतोष हो गया है ?
तुलसी कहे 1 और इच्छा है कि मैं आऊँ ना… तो मेरा बेटा भी ज़िद करता है कि मुझे भी आपके साथ आना है। मेरा मन कहता है कि मुझे हरि के पास जाना है लेकिन मेरा बेटा पीछे पड़ता है।
भगवान कहे तेरे मन का बेटा कौन?
तो तुलसी कहे – मनोज ….कामदेव और मैने सुना है कि राम के पास जाना हो तो काम को छोड़ना पड़ेगा लेकिन मेरा बेटा तो ज़िद कर रहा है कि मुझे साथ ले चलो तो ही मैं तुम्हें राम के पास जाने दूँगा।
काम बुरा नहीं …उसकी भी सम्यक सुनो।
तो भगवान ने कहा कि उसको लेकर अाओ लेकिन वो छोटा है …हम दोनों बातें करेंगे तो वो तो अकेला पड़ जायेगा …उसकी उम्र के हों.. तो उसको अच्छा लगे ….तुम लेकर अाओ …मैं उसकी भी व्यवस्था कर दूँगा ………..कंदर्प अगणित अमित छबि नवनील नीरद सुन्दरं ……मेरा रूप ऐसा है 1 काम नहीं …अगणित काम को तेरे बेटे के साथ खेलता कर दूँ।