Morari Bapu : Guru Purnima Sandesh
मोरारी बापू : गुरु पूर्णिमा सन्देश
आज गुरु पूर्णिमा है। गुरु का आज दिन है। तो सभी अपने गुरुदेव के चरणों में वंदन करते हैं। मोरारी बापू को भी बहुत से साधक गुरु मानते हैं हालाकिं वो मना करते हैं। मानस सीता कथा में उन्होंने गुरु पूर्णिमा के लिए कुछ बातें कहीं जिसका वर्णन उन्ही के शब्दों में इस प्रकार है —
मोरारी बापू कह रहे हैं
यद्यपि तलगाजरडा में कोई उत्सव नहीं होता है ..सब बंद कर दिया गया है क्यूँकी लोग मुझे गुरू मानने लगे ..मैं किसीका गुरू नहीं …मैं तलगाजरडा में केवल मेरे गुरू की पादुका की पूजा कर लेता हूँ सुबह 4 बजे …फिर रोज की तरह चित्रकूट में सबको मिलता हूँ …लेकिन त्रिभुवनीय दिन है गुरू पूर्णिमा इसलिये जीवन के कुछ रस आप लेकर जायेंगे मुझे बड़ी खुशी होगी …4 वस्तु तुम्हारे और मेरे जीवन में दिखे …क्यूँकी जन्म तो हमें मिला है और परमात्मा सबको दिर्घायू करे …लेकिन मरना निश्चित है ….ये जन्म और मृत्यु के बीच में हमें जीवन को प्राप्त करना होता है …जन्म मिल चुका है ..मृत्यु मिलेगी ..जीवन पाना है …
इस बार की 9 तारीख की आनेवाली गुरू पूर्णिमा का message क्या हो सकता है ?मुझे और आपको ..हम सबको …4 वस्तु याद रखें ..मेरी दृष्टी उसीको जीवन कहेगी …
1….किसी वस्तु का अभाव ना हो ..उसीका नाम है जीवन …क्या दुनिया में अभाव से मुक्त किसीकी ज़िन्दगी हो सकती है ? पैसे होंगे तो प्रतिष्ठा नहीं होगी …पैसे प्रतिष्ठा दोनों होंगे तो पत्नी से बनती नहीं होगी …पैसे प्रतिष्ठा और पत्नी से सुंदर व्यवहार होंगे तो पुत्र नहीं होंगे ..पुत्री नहीं होगी …और यदि ये भी है तो उनके साथ अन बन होगी …अभाव ..असंतोष ..कमियाँ हम सबके जीवन में …और मैं आज बोल रहा हूँ गुरू पूर्णिमा के message के कारण कि अभाव ना हो वोही जीवन …ज़रा विचित्र लगेगा ..विप्रीत लगेगा …
लोग इतने शिकायती हो चुके है ना कि आप क्या कहने जा रहे हैं वो सुननेको भी राजी नहीं है …कैसे जीवन का रस पाओगे ?
एक भाई ने अपनी पत्नी को कहा….सुना ?…तो उसने क्या कहा? …मैं चाय बनानेवाली नहीं हूँ ….
आप कैसे जी रहे हैं ? और ये दृष्टांत नहीं ..दंत कथा नहीं …ये घर घर में हो रहा है …वो क्या कहना चाहता था …अगला वाक्य तो सुनो ….ऐसे जीवन में जीने का रस नहीं प्यारों …
अभाव से मुक्त जीवन की मेरी परिभाषा है …संतुष्ट जीवन …जो हाल हो कुबूल कर लो …डकार …राज़ी हैं हम उसीमें …जिसमें तेरी रज़ा है …स्वीकार ….
कृष्ण कहते हैं …कितना भी अभाव हो …मालिक की महरबानी है ..इसी भाव में रहते हैं उसको कृष्ण.. योगी कहता है ….
संतोष ना रखने से जनम जनम अभाव रहेगा ..बिना संतोष तुम्हारी कामना …तुम्हारी मांग ..तुम्हारी अभाव की शिकायतें कभी समाप्त नहीं होने वाली ..हम क्या ? उल्टा सूत्र कि हमारी कामना पूरी हो जाये ..तो संतोष …..असंभव …totally impossible …
संतुष्ट हो जाओ …कामना खत्म हो जायेगी …
जो मिले उसमें संतुष्ट होना ये कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है ….कोई छीन ले …जो था वो भी चला जाये उसी समय भी अहोभाव में जीना …हरी तूने बहुत अनुग्रह कीनही ..हे मेरे मालिक तूने जितनी कृपा की है …हर पल अहोभाव में जीयो …मेरे दाता ने बहुत दिया है ….
2…जिसका जीवन पराधीन ना हो ..
तुम प्रेम करो ..किसीको बांधो मत ..वो अपने आप तुम्हारे वश हो जायेगा ..उसके जीवन की हत्या क्यूँ करते हो तुम्हारे नियम लादकर के ? हमको कितने बंधन में जीना पड़ता है …इसको खुश करो …इसको खुश करो …इसको खुश करो …और जितने तुम दूसरों को खुश करो उतना वो तुम्हें और कड़ी रस्सी से बांधते जायेंगे ..इसलिये आदमी को चाहिये हर एक आदमी को स्वाधीनता दे ..स्वतंत्रता दे ..हाँ तुम्हारी करुणा के कारण किसीको समझाओ ..प्यार से ..दुर्भाव से नहीं …
मेरी व्यास्पीठ कहना चाहेगी जो स्वाधीन है ..वो जीवन जी रहा है ..कोई गुरू भी यदि चेले को पराधीन करे तो वो गुरू नहीं …
3..जीवन में मूर्छा ना हो …awareness …जीवन सभानता से जीया जाये …हर कदम पर सावधानी …ईर्षा क्या है ? मूर्छा है …निंदा क्या है ? मूर्छा है …एक दूसरे का आप द्वेष करते हो ..क्या है ? मूर्छा है ….होश नहीं है ये ….मूर्छा ज़िन्दगी जीवन नहीं है ….जागो …..
4..नीरसता नहीं होनी चाहिये …जीवन में रस हो …हमारा पिता रस रूप है …चिढ़ चिढ़ करो ..मुँह चढ़ाये बैठो …कोई आपको अच्छा ना लगे …ये सब क्या है ? नीरसता …बाहर आओ …रसहीन जीवन ..जीवन नहीं ….
9 तारीख को त्रिभुवनीय दिवस है ..गुरू पूर्णिमा …केवल 1 भुवन में नहीं मनाया जाता …त्रिभुवन का ये उत्सव है …परम पावन ये व्यास पूर्णिमा जिसको हम गुरू पूर्णिमा कहते हैं …170 देश सुन रहे हैं इस colorado की ये कथा को …मैं सबसे निवेदन करना चाहता हूँ कि कुछ साल पहले ज़रूर …तलगाजरडा में गुरू पूर्णिमा का उत्सव होता था ..लेकिन कुछ सालों से हमने ये बंद कर दिया है क्यूँकी मैं कही इन लोक मान्यता में फंस ना जाऊँ …मैं कहीं बध ना जाऊँ ..क्यूँकी मैं कोई गुरू नहीं हूँ ..मेरा कोई शिष्य नहीं है ..
ना कोई गुरू ..ना कोई चेला …
अकेले में मेला ..मेले में अकेला...
लेकिन फिर भी ..हम सबके गुरू तो सदगुरू ज्ञान …ये रामचरित मानस है …तो रामचरित के नाते और मुझे जहाँ से रामचरित मिला..वो मेरे पूज्य पाद सदगुरू भगवान त्रिभुवनदास दादा …उसकी पादुका का मैने कल भी कहा हम पूजन कर लेते हैं ..ये मेरा व्यक्तिगत उत्सव है …तो हम हर वक्त कहते हैं कि गुरू पूर्णिमा का कोई उत्सव तलगाजरडा में हम नहीं मनाते तो कृपया कोई कष्ट ना करे …लेकिन फिर भी लोग आ जाते हैं अपने भाव के कारण लेकिन कोई उत्सव नहीं है …
आपकी जहाँ श्रद्धा है …जिस बुद्धपुरूष में आपकी आत्मा समर्पित है वहाँ ..अपने अपने स्थान में ..अपने अपने घट में बैठकर अपने बुद्धपुरूष को याद करना बस …मैं इस व्यास्पीठ से ..त्रिभुवनीय दिन गुरू पूर्णिमा की ..आप सबको बधाई देता हूँ …
विश्व के समस्त बुद्धीय चेतनायें हम सबके अध्यात्मिक मार्ग में विशेष उजाला प्रदान करें ..हमारा दूज का चांद ..पूर्णिमा के के चांद तक गति करे ..हम विकसते विकसते ..develop होते होते पूर्णता की ओर यात्रा करें और तुलसीदासजी की तरह हम भी कभी कह सकें कि ..पायो परम विश्राम ..
गुरू त्रिभुवन पर काम करता है ..3 शब्द हैं हमारे यहाँ इंड ..पिंड ..ब्रह्मांड …..गुरू तीनों पर काम करता है …इंड माने चैतन्य आत्मा …गुरू का लक्ष्य क्या है ?..आश्रित की आत्मा ..गुरू दृष्टी से ..स्पर्श से अथवा चिंतन से हमारी आत्मा को जागृत कर देता है ….दूसरा पिंड …गुरू हमारे शरीर पर काम करता है ..शरीर में इन्द्रियां हैं …गुरू हमारे इन्द्रियों की दिशा बदलता है …तीसरा ..ब्रह्मांड में भी गुरू का ही साम्राज्य होता है …
गुरू के समान उदार ईश्वर भी नहीं होता …
गुरू के समान कृपालू परमात्मा भी नहीं होता …
गुरू के समान क्षमादाता परमात्मा भी नहीं होता …
गुरू के समान वात्सल्य उडेलने वाला कोई नहीं होता …
हमारे अपने अपने गुरू ने हमको कितना दुलार दिया है …
इनके प्रति आँसुओं का अभिषेक करनेका ..गुरू पूर्णिमा का दिन है …मैं तो इस दिन सुबह में जब 4 बजे मेरे गुरू की पादुका की पूजा कर लेता हूँ आधे घंटे में …उसी समय विश्व की समस्त बुद्ध चेतनाओं को प्रणाम करता हूँ और मूल में तो मेरा त्रिभुवन गुरू होता है ..महादेव …
और मैं इतना ही कहूँ …मैं आप सबको उसी दिन याद करूँगा ..कैसे भी …अपने ढंग से …
बापू के शब्द
मानस सीता
जय सियाराम