Guru Shishya ka sambandh kaisa ho?
गुरु शिष्य का सम्बन्ध कैसा हो?
मोरारी बापू “मानस श्री” राम कथा में बताते हैं कि
जब कोई जीवित बुद्धपुरूष विदा ले …तो रोना कायरता नहीं …. रोना ही चाहिये।
अमीर खुसरो के मुर्शिद निजामुद्दिन औलिया जब देह त्याग करते हैं और अमीर खुसरो को जब पता लगा कि मेरा मुर्शिद जा रहा है। अमीर तब लखनऊ की य़ात्रा पर था।
जब आते हैं तब बाबा ने नयन मूँद लिये थे। अमीर अपने कपड़े फाड़ने लगा था। कहते हैं कि अब मेरे लिये जगत अंधेरा हो गया है।
ऐसा प्रिय शिष्य था अमीर …निजामुद्दिन पीर का ….कि वो कह गये थे कि अमीर खुसरो बहुत जिये। लेकिन जब वो प्राण छोडे तब उसकी कब्र मेरे बगल में करवाना।
क्या गुरू शिष्य का नाता होगा?
सबसे ज़्यादा ये पागलपन आ गया था खुसरो में। एक सज्जन ने तो अमीर को समझाया कि तू तो बुद्धपुरूष के संग रहा है। इतना शोक क्यूँ कर रहा है?
तुझे पता नहीं कि ये जगत नाशवंत है? आत्मा तो शास्वत है ना …तू क्यूँ रोता है?
बोले – आत्म तत्व तो अमर है लेकिन मेरे लिये तो ये मंदिर भी महान था , मेरा गुरू जो मेरा मंदिर था।
शिष्यों की निगाहें और होती हैं …जो पूर्णत: आश्रित है उसकी चक्षु और होती है।
कोई मेरी आँखों से देखे तो समझे … हे गुरू! कि तुम मेरे क्या हो …कि तुम मेरे क्या हो।
मैं आपसे निवेदन करने चला …बुद्धपुरूषों की विदा, युग पुरूषों की विदाई, सत् पुरूषों की विदाई, भले लाख हम अमरता की चर्चा करें इसलिये मेरा निवेदन है कि जीवंत चेतनाओं को भजो।
ऐसा शिष्य ….ऐसी प्रियता …ये ऐश्वर्य है …ये श्री है …यही संपदा है …यही धन्यता है।
मोरारी बापू के शब्द
मानस श्री
जय सियाराम
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