Dhanteras puja vidhi and katha in hindi
धनतेरस पूजा विधि और कथा
धनतेरस का त्यौहार दिवाली से 2 दिन पहले कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को मनाया जाता है। धनतेरस को धनत्रयोदशी भी कहा जाता है। इस दिन धन्वन्तरि का जन्म हुआ था इसलिए इस तिथि को धनतेरस के नाम से जाना जाता है। धनतेरस का पर्व आयुर्वेद के देवता के जन्मदिन के रूप में भी मनाया जाता है। इसलिए यह धन्वन्तरि जयंती कहलाती है। इस दिन लोग भगवान धन्वन्तरि की पूजा करते हैं और यमराज के लिए दीप देते हैं।
Dhanteras puja Vidhi : धनतेरस पूजा विधि
इस दिन धनवन्तरि जी अमृत कलश के साथ सागर मंथन से उत्पन्न हुए हैं। और देवताओं को अमृत पिलाकर अमर कर दिया था। आयु और स्वास्थ्य की कामना से धनतेरस पर भगवान धन्वंतरी का पूजन किया जाता है। आज से ही तीन दिन तक चलने वाला गो-त्रिरात्र व्रत भी शुरू होता है।
सबसे पहले धन्वंतरी जी का पूजन करें। घर में नई वस्तु जरूर लाएं। नवीन झाडू एवं सूपड़ा खरीदकर उनका पूजन करें।
भगवान धन्वन्तरी अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है। अगर सम्भव न हो तो कोइ बर्तन खरिदे।
इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में संतोष रूपी धन का वास होता है। कहते हैं की इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें 13 गुणा वृद्धि होती है।
धन्वन्तरी जो चिकित्सा के देवता भी हैं उनसे स्वास्थ्य और सेहत की कामना के लिए संतोष रूपी धन से बड़ा कोई धन नहीं है। लोग इस दिन ही दीपावली की रात लक्ष्मी गणेश की पूजा हेतु मूर्ति भी खरीदते हें।
धनतेरस की शाम घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में दीप जलाने की प्रथा भी है। स्कंदपुराण के अनुसार कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को प्रदोषकाल में घर के दरवाजे पर यमराज के लिए दीप देने से अकाल मृत्यु का भय खत्म होता है।
इस दिन पूरे विधि- विधान से देवी लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की पूजा करने का विधान है। माना जाता है कि इस दिन प्रदोषकाल में लक्ष्मी जी की पूजा करने से वह घर में ही ठहर जाती हैं।
इस दिन दीपदान करें और मन में ये भाव रखें दीपदान करने से मृत्यु, पाश, दण्ड, काल और लक्ष्मी के साथ सूर्यनन्दन यमराज जी प्रसन्न हों।
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