Shiv-Parvati Vivah Story(katha) in hindi
शिव पार्वती विवाह कथा(कहानी)
आपने पढ़ा की सती ने अपनी देह का त्याग किया और फिर उन्होंने पार्वती के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने शिव की तपस्या की और भोले नाथ ने कामदेव को जलाकर भस्म कर दिया। ब्रह्मादि देवताओं ने ये सब समाचार सुने तो वे वैकुण्ठ को चले॥ फिर वहाँ से विष्णु और ब्रह्मा सहित सब देवता वहाँ गए, जहाँ कृपा के धाम शिवजी थे। कृपा के समुद्र शिवजी बोले- हे देवताओं! कहिए, आप किसलिए आए हैं?
ब्रह्मा जी बोले- हे नाथ!इतने दिन तो हो गए हैं। देवताओं में किसी का विवाह नही हुआ है। सब देवता आपका विवाह देखना चाहते हैं
हे कृपा के सागर! कामदेव को भस्म करके आपने रति को जो वरदान दिया, सो बहुत ही अच्छा किया॥ हे नाथ! श्रेष्ठ स्वामियों का यह सहज स्वभाव ही है कि वे पहले दण्ड देकर फिर कृपा किया करते हैं।
पार्वती ने अपार तप किया है, अब उन्हें अंगीकार कीजिए॥ ब्रह्माजी की प्रार्थना सुनकर और प्रभु श्री रामचन्द्रजी के वचनों को याद करके शिवजी ने प्रसन्नतापूर्वक कहा- ‘ऐसा ही हो।’ तब देवताओं ने नगाड़े बजाए और फूलों की वर्षा करके ‘जय हो!
अब ब्रह्मा जी ने सप्तऋषि को हिमाचल के घर भेज दिया है। ये पार्वती से मिले और फिर कहने लगे- नारदजी के उपदेश से तुमने उस समय हमारी बात नहीं सुनी। अब तो तुम्हारा प्रण झूठा हो गया, क्योंकि महादेवजी ने काम को ही भस्म कर डाला॥
यह सुनकर पार्वतीजी मुस्कुराकर बोलीं- हे विज्ञानी मुनिवरों! आपने उचित ही कहा। शिवजी को अकाम है। उन्हें कामदेव से क्या लेना देना। हे मुनियों! अग्नि का तो यह सहज स्वभाव ही है कि पाला उसके समीप कभी जा ही नहीं सकता और जाने पर वह अवश्य नष्ट हो जाएगा। महादेवजी और कामदेव के संबंध में भी यही न्याय (बात) समझना चाहिए॥
पार्वती के वचन सुनकर और उनका प्रेम तथा विश्वास देखकर मुनि हृदय में बड़े प्रसन्न हुए। वे भवानी को सिर नवाकर चल दिए और हिमाचल के पास पहुँचे॥ उन्होंने पर्वतराज हिमाचल को सब हाल सुनाया। कामदेव का भस्म होना सुनकर हिमाचल बहुत दुःखी हुए। फिर मुनियों ने रति के वरदान की बात कही, उसे सुनकर हिमवान् ने बहुत सुख माना॥
फिर कहते हैं जल्दी अब विवाह की तैयारी करो। हिमालयराज बोले इतनी जल्दी भी क्या है?
मुनि बोले- बड़ी मुश्किल से समाधि से जागे है भोले नाथ। फिर समाधी लग गई तो न जाने कब खुलेगी।
हिमाचल ने श्रेष्ठ मुनियों को आदरपूर्वक बुला लिया और उनसे शुभ दिन, शुभ नक्षत्र और शुभ घड़ी शोधवाकर वेद की विधि के अनुसार शीघ्र ही लग्न निश्चय कराकर लिखवा लिया॥ फिर हिमाचल ने वह लग्नपत्रिका सप्तर्षियों को दे दी। उन्होंने जाकर वह लग्न पत्रिका ब्रह्माजी को दी। ब्रह्माजी ने लग्न पढ़कर सबको सुनाया, उसे सुनकर सब मुनि और देवताओं का सारा समाज हर्षित हो गया।
Rishi Durvasa curse(shaap) to Shiva : ऋषि दुर्वासा का शिव को श्राप(शाप)
सभी देवतागण और शिवगण आज बहुत खुश है और कैलाश पर उत्सव मना रहे हैं। उसी समय कैलाश पर ऋषि दुर्वासा अपनी माता अनसुइया के साथ कैलाश पर आते हैं। नारद जी ऋषि और माता अनसुइया से मिलते हैं।
नारद जी पूछते है मुनिवर, आप अपनी माँ को छोड़कर वापिस चले जायेंगे ना?
दुर्वासा जी कहते हैं- नही भाई, मैं भी भोले बाबा के विवाह में जाने के लिए आया हूँ।
नारद जी कहते हैं- मुनिवर , सब ठीक है लेकिन आपको क्रोध बहुत जल्दी आता है और आप क्रोध में श्राप भी जल्दी दे देते हो।
तब दुर्वासा से कहा की-नही, मैंने माँ को वचन दिया है की ना क्रोध करूँगा और ना ही किसी को श्राप दूंगा।
फिर नारद जी ने नंदी को जाकर सुचना दी है की ऋषि दुर्वासा अपनी माँ के साथ आये हैं। नंदी जी तुरंत ऋषि के पास गए और माता जी को अलग कक्ष में ठहराया है। जबकि दुर्वासा जी को बताया की विवाह के लिए सब नाच-गाना कर रहे हैं सभी अपनी मस्ती में झूम रहे हैं। जैसे ही दुर्वासा जी भगवान शिव के पास पहुंचे। वहां सभी शिवगण और देवतागण उन्माद में थे और मौज मस्ती कर रहे थे। कुछ हंसी मजाक दुर्वासा जी से भी किया। और उन्हें भी नाच गाने में शामिल करने का शिवगणों ने प्रयत्न किया।
दुर्वासा जी को लगा की ये सभी शिव गण मेरा अपनाम कर रहे हैं। तभी दुर्वासा जी को क्रोध आ गया और उन्होंने शिवगणों को श्राप दे दिया। तुम्हारे इस हाल को देखकर कन्या पक्ष वाले मूर्छित हो जायेंगे जब तुम उनके द्वार पर पहुंचोगे। और फिर शिव को भी शाप दे दिया। तुम्हारा इस रूप में पार्वती से विवाह कभी नही हो सकता है।
जैसे ही उन्होंने शाप दिया नारद जी ने कहा, मुनि जी ये आपने क्या कर दिया? इतने दिनों बाद तो भोले बाबा विवाह के लिए तैयार हुए थे और तुमने शाप दे दिया। फिर नंदी भी आ गए। उन्होंने ऋषि से कहा, मुनिवर आपके साथ हंसी ठिठोली तो शिवगणों ने की है और आपने भगवान को शाप क्यों दे दिया?
सभी चिंतित हो गए। ऋषि दुर्वासा को भी दुःख हो रहा है। ये मैंने क्या कर दिया? मैंने तो माँ को वचन दिया था की मैं ना तो क्रोध करूँगा और ना ही किसी को श्राप दूंगा। नारद के समझाने के बाद भी मैंने कैसे शाप दे दिया?
उसी समय भगवान विष्णु प्रकट हो गए और उन्होंने कहा- दुर्वासा जी आप शोक ना कीजिये। ये सब विधि के विधान के अनुसार ही हुआ है। आप सभी विवाह में चलने की तयारी कीजिये।
इस प्रकार अब सबके हृदय को सुकून मिला है। और सबने विवाह में चलने की तैयार शुरू की है।
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Hrhr mahadew
Har har mahadev
Om nao shivay
Har Har Mahadev
shiv parwati vivah katha
Jai Shiv Parvati
Very Nice…………..
Thanks.. Bhagwan shiv or mata parvati ki jai…
thanks
Jai Bhole nath, Jai Parvati mata
Jai jag k mata pita
jai ho bhagwan shiv or mata parvati ki .. माता पार्वती और भगवान शिव की जय
Jai ho Maa Parvati ji ki aur bhagwan shree Mahaprabhu sankar bholenath ki jai ho …….
Jai bhole.. Jai Maa Parvati 🙂
Shiv Parvati vivah katha…
bhagwan Shiv or parvati ke vivah ki katha adbhut hai.. aisa vivah n pehle kabhi hua hai or n kabhi hoga .. Jai Bhole .. Jai Maa Parvati 😊
धन्यवाद भाई
welcome