Sati Death story(katha) in hindi
सती मृत्यु(देह त्याग) कथा
आपने पढ़ा की सती ने भगवान राम की परीक्षा ली थी और शिव जी ने सती का मन से त्याग कर दिया था।
उसी समय दक्ष प्रजापति हुए। ब्रह्माजी ने सब प्रकार से योग्य देख-समझकर दक्ष को प्रजापतियों का नायक बना दिया॥ जब दक्ष ने इतना बड़ा अधिकार पाया, तब उनके हृदय में अत्यन्त अभिमान आ गया। जगत में ऐसा कोई नहीं पैदा हुआ, जिसको प्रभुता पाकर मद न हो॥
Daksha dwara Shiv apmaan : दक्ष द्वारा शिव का अपमान
एक बार देवताओं की सभाओ में सभी देवता लोग बैठे थे। देवता, गन्धर्व और किन्नर आदि। उस सभा में भगवान शिव भी बैठे थे और ब्रह्मा भी बैठे थे। लेकिन दक्ष प्रजापति का ये नियम था। किसी भी सभा में जाता था तो अंत में जाता था। क्योंकि ये सोचता था की अंत में जाऊंगा तो सभी लोग उठकर मुझे सम्मान देंगे क्योंकि में प्रजापति हूँ सभी में श्रेष्ठ हुँ।
इस सभा में भी अंत में गया। सबने खड़े होकर सम्मान दिया है। लेकिन 2 व्यक्ति खड़े नही हुए एक ब्रह्मा जी और एक शिव जी।
इसने विचार किया की ब्रह्मा तो मेरे पिता हैं। जब शिव की और देखा तो कहा- इन्होने तो मेरा शिष्यत्व प्राप्त कर लिया है। दक्ष जी बताना चाह रहे हैं की ब्रह्मा के कहने पर मैंने अपनी बेटी की शादी इनसे करवाई है लेकिन इसने उठकर मुझे प्रणाम नही किया।
रुण्ड मुंडो की माला पहनते हैं। चिता की भस्म लगते हैं। भूत- प्रेतों में रहते हैं। दक्ष ने इनको बहुत सुनाया है अंत में विवेक खो दिया और शिव को श्राप दिया आजसे शिव के नाम की आहुति किसी यज्ञ में नही निकाली जाएगी।
लेकिन भगवान शिव ने कोई भी उत्तर नही दिया। भगवान शिव चुप बैठे रहे।
वहां पर नन्दी भी थे इन्होने दक्ष को श्राप दिया की जिस मुंह से तूने भगवान शिव को गाली दी है तेरा मस्तक भी बकरे का बन जाये।
शिवगणों ने भी श्राप दिया तुम वैद आदि ग्रंथों को भूल जाओ। आपस में श्रापा-श्रापी होने लगी। जब भगवान शिव ने सुना तो बोले की यहाँ तो अकारण झगड़ा है। भगवान शिव शांत भाव से उठकर वहां से चल दिए।
लेकिन जबसे दक्ष प्रजापति ने भगवान शिव को श्राप दिया तबसे कोई यज्ञ नही करता है। संसार में यज्ञ होना ही बंद हो गया। अब दक्ष ने सोचा की कोई यज्ञ ही नही करता है। अब दक्ष ने विशाल यज्ञ गंगा के तट पर किया। सबको निमंत्रित किया लेकिन अपनी बेटी और अपने दामाद को नही बुलाया।
दक्ष ने सब मुनियों को बुला लिया और वे बड़ा यज्ञ करने लगे। जो देवता यज्ञ का भाग पाते हैं, दक्ष ने उन सबको आदर सहित निमन्त्रित किया॥
दक्ष का निमन्त्रण पाकर किन्नर, नाग, सिद्ध, गन्धर्व और सब देवता अपनी-अपनी स्त्रियों सहित चले। विष्णु, ब्रह्मा और महादेवजी को छोड़कर सभी देवता अपना-अपना विमान सजाकर चले॥
सतीजी ने देखा, अनेकों प्रकार के सुंदर विमान आकाश में चले जा रहे हैं, देव-सुन्दरियाँ मधुर गान कर रही हैं, जिन्हें सुनकर मुनियों का ध्यान छूट जाता है॥
सतीजी ने (विमानों में देवताओं के जाने का कारण) पूछा, तब शिवजी ने सब बातें बतलाईं। पिता के यज्ञ की बात सुनकर सती कुछ प्रसन्न हुईं और सोचने लगीं कि यदि महादेवजी मुझे आज्ञा दें, तो इसी बहाने कुछ दिन पिता के घर जाकर रहूँ॥ क्योंकि उनके हृदय में पति द्वारा त्यागी जाने का बड़ा भारी दुःख था, पर अपना अपराध समझकर वे कुछ कहती न थीं। आखिर सतीजी भय, संकोच और प्रेमरस में सनी हुई मनोहर वाणी से बोलीं- हे प्रभो! मेरे पिता के घर बहुत बड़ा उत्सव है। यदि आपकी आज्ञा हो तो हे कृपाधाम! मैं आदर सहित उसे देखने जाऊँ॥
शिवजी ने कहा- तुमने बात तो अच्छी कही, यह मेरे मन को भी पसंद आई पर उन्होंने न्योता नहीं भेजा, यह अनुचित है। दक्ष ने अपनी सब लड़कियों को बुलाया है, किन्तु हमारे बैर के कारण उन्होंने तुमको भी भुला दिया॥
हे भवानी! जो तुम बिना बुलाए जाओगी तो न शील-स्नेह ही रहेगा और न मान-मर्यादा ही रहेगी॥
शिवजी ने बहुत प्रकार से कहकर देख लिया, किन्तु जब सती किसी प्रकार भी नहीं रुकीं, तब त्रिपुरारि महादेवजी ने अपने मुख्य गणों को साथ देकर उनको बिदा कर दिया॥
भगवान शिव ने विचार किया अगर मैं इनको यहाँ पर रोकूंगा तो ये अपनी देह का त्याग कर देगी। भगवान शिव ने कोई उत्तर नही दिया और शांत भाव से बैठ गए।
सती जी की बहनें वहीं थी। किसी ने भी सती से वार्तालाप नही की। उनके पतियों ने भी कोई वार्तालाप नही की। दक्ष के डर के मारे किसी ने उनकी आवभगत नहीं की, केवल एक माता भले ही आदर से मिली।
जब माँ सामने से निकली और अपनी बेटी को देखा तो प्रसन्न हो गई। एक ख़ुशी बात की थी की बेटी आई है। दूसरी ख़ुशी इस बात की है की इसके पति और मेरे पति में जो विरोध है वो समाप्त हो जायेगा।
सती को माँ ने जल का पात्र दिया है। लेकिन सती ने पात्र लेकर फेंक दिया। सती ने कहा की पहले मैं यज्ञ मंडप की सोभा देखने जा रही हुँ फिर आपसे मिलती हुँ। यज्ञ मंडप के अंदर सती जी ने प्रवेश किया।
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