Sita Ram Love Story/Katha in hindi
सीता राम की प्रेम कहानी/कथा
एक बार जानकी जी ने भगवान राम से कहा ….वहाँ साकेत में बैठे बैठे दोनों बात कर रहे थे …free थे। तो सरकार को कहा कि प्रभु मैं कुछ पूछना चाहती हूँ। प्रभु जब मैं पृथ्वी पर नीचे देखती हूँ ना .तो नीचे लोग बहुत दुखी हैं …ये हमारे संतान …बहुत दुखी हैं।
ठाकुर 1 आदमी चला जा रहा है और वो अंधा है …उसके रास्ते में 1 कुंआ पड़ता है और कुंए का किनारा टूटा हुआ है तो आप क्या करोगे?
अरे सियाजू …सीधी सी बात है …मैं पुकारूँगा कि ए भाई ज़रा बांया चल …दांया चल …य़ा तो पीछे लौट जा।
अच्छा …ये तो बात आपकी बराबर है …सियाजू कहती हैं। लेकिन आप लाख उसको बोलो फिर भी वो आगे ही जाये, आपकी अनसुनी करे तो?
बोले तब मैं सोचूँगा कि ये केवल अंधा ही नहीं …बहरा भी है।
तो फिर आप क्या करोगे? बैठे बैठे बोलते रहोगे?
देवी मैं दौड़कर उसको बचा लूँगा …कूद पडूँगा …यही उपाय है।
तो महाराज ये मैं पृथ्वी पर देखती हूँ ना तो हमारे सब संतान अंधे हो चुके हैं …कोई स्वार्थ में …कोई लोभ में …कोई द्वेष में …कोई एक दूसरे की निंदा में …कलि प्रभाव से सब बेहरे भी हो चुके हैं …महाराज अब साकेत से कूदो ….अवतार लो …अब जाओ अयोध्या…अब उसको बचा लो।
भगवान ने कहा कि आप कहती हैं तो जाऊँ लेकिन आपको पता है ना …आप तो कभी गले में हार भी नहीं पहनती ….मैने कई बार कहा कि गले में हार तो पहनो …तो आप रो पड़ी हो कि मैं गले में हार पहनूँ ना तो आपको जब गले लगाती हूँ ना …तब हार के जितना मेरा वियोग हो जाता है….मैं सह नहीं पाती हूँ।
आप इतना 1 हार का अंतर भी सह नहीं पाती हो और मुझे कहती हैं …गिर जाओ और अवतार लो। तुम्हारा क्या होगा?
बोले – मैं सह लूँगी …मेरे बच्चों के लिये सह लूँगी वियोग।
भगवान ने कहा मैं तो आपको 15 साल बाद मिलूँगा मिथिला में।
भले …मैं सह लूँगी ….फिर हो जायेंगे एक ….
12 साल अयोध्या में साथ रहेंगे …उसके बाद 14 साल का वनवास कर दूंगा मैं …
मैं वन सह लूँगी।
अच्छा …तो मैं लीला करूँगा …1 असुर तुम्हारा अपहरण करेगा …फिर वियोग ।
वो भी सहन कर लूँगी मेरी संतानों के लिये।
अपहरण के बाद आपकी अग्नि कसौटी करूँ तो?
वो भी सहन कर लूँगी।
ओह्ह् ….अग्नि कसौटी के प्रमाण के बाद भी कोई सिय निंदक ऐसा निकले …जो आप पर फिर ऊंगली उठाये और दूसरी बार मुझे आपको मुनि के आश्रम भेजना पड़े।
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तो बोले वो भी सह लूँगी मेरे संसार के लिये …जो भी कहो मैं सह लूँगी…धरती में समा जाऊँगी ….मेरे संतान दुखी हैं …अवतार लो …कूद पड़ो।
फिर सियाजू रो पड़ी …भगवान ने कहा आप रोती हैं तो कैसे कूदूँ? तो क्या करूँ ?…मुझे कोई उपाय दो।
1 काम करूँ …आप ऐसी लीला करना कि जब छोटे बालक बन जाओ …महाराज दशरथ के आँगन में फर्श में जो बिराजित है। आप छोटे रुप में जब नाचते होंगे और जब आपको अपनी परछाई दिखे ना …तब लीला करना।
1 दिन ऐसा हुआ कि भगवान राम अपना प्रतिबिंब आँगन में देखते हैं …कौसल्या जी पीछे पीछे दौड़ रही हैं …ठाकुरजी रो पड़े …कौसल्या दौड़ आयी …राघव क्या है ?…बोले मैं उसको पकड़ नहीं पाता हूँ ….अरे बेटा ये तेरी छाया है।
छाया है तो मैं जैसे करता हूँ सब करती है …मैं 1 ऊंगली उठाऊँ तो ये ऊंगली उठाये …मैं सिर पर हाथ रखूँ तो वो भी रखे ….मैं दांया मुड़ूं तो वो भी मुड़े।
ये परछाई है बेटा।
बोले नहीं …..ये परछाई नहीं है …ये पृथ्वी में कोई है छाया रूपा।
क्या योजना बनाई दोनों ने ऊपर बैठे बैठे।
मैं पकड़ने जाता हूँ तो पकड़ में नहीं आती …रो पड़े राघव और माँ दौड़कर लालन को गोद में लेती है …तू रो मत ….तो माँ… कुबूल कर पृथ्वी में कोई है।
माँ को लगा ज़िद कर रहा है …तो कहा …चलो है।
ये और कोई नहीं था। ये सीताजी घूमती थीं साहब अंदर और 1 क्षण का वियोग ना सहन हो इसलिये मेरा राघव पलना छोड़कर बार बार आँगन में घूमने आते।
ये हम सब के प्रति माँ की ममता है कि मैं सब सह लूँगी।
हम सब के प्रति माँ की ममता है कि मैं सब सह लूँगी ….
मोरारी बापू के शब्द
मानस सिया
जय सियाराम
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