Ramayan : Ram viyog and jatayu antim sanskar
रामायण : राम वियोग और जटायु अंतिम संस्कार
अब तक आपने पढ़ा दुष्ट रावण सीता जी का हरण करके ले गया है।
भगवान रो रहे है और सबसे पूछ रहे हैं की आपने मेरी सीता को देखा, यदि देखा है तो बता दो की सीता कहाँ है।
हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी। तुम्ह देखी सीता मृगनैनी॥ हे पक्षियों! हे पशुओं! हे भौंरों की पंक्तियों! तुमने कहीं मृगनयनी सीता को देखा है?
खंजन, तोता, कबूतर, हिरन, मछली, भौंरों का समूह, प्रवीण कोयल, कुन्दकली, अनार, बिजली, कमल, शरद् का चंद्रमा और नागिनी, अरुण का पाश, कामदेव का धनुष, हंस, गज और सिंह- ये सब आज अपनी प्रशंसा सुन रहे हैं॥
इस प्रकार राम विलाप करते हुए वन वन में सीताजी को खोज रहे हैं।
Jatayu and Shri Ram : जटायु और श्री राम
आगे जाने पर उन्होंने गीधराज जटायु को पड़ा देखा। वह श्री रामजी के चरणों का स्मरण कर रहा था।
कर सरोज सिर परसेउ कृपासिंधु रघुबीर। निरखि राम छबि धाम मुख बिगत भई सब पीर॥ कृपा सागर श्री रघुवीर ने अपने करकमल से उसके सिर का हाथ फेरा तो उसकी सब पीड़ा दूर हो गई।
तब जटायु ने बताया की मेरी रावण ने ये दशा की है। उसी दुष्ट ने जानकीजी को हर लिया है॥
लै दच्छिन दिसि गयउ गोसाईं। हे गोसाईं! वह उन्हें लेकर दक्षिण दिशा को गया है। और सीताजी बहुत विलाप कर रही थी। हे प्रभो! आपके दर्शनों के लिए ही प्राण रोक रखे थे। हे कृपानिधान! अब ये चलना ही चाहते हैं॥ इस प्रकार जटायु ने गीध की देह त्यागकर हरि का रूप धारण किया। अखंड भक्ति का वर माँगकर गृध्रराज जटायु श्री हरि के परमधाम को चला गया।
श्री रामचंद्रजी ने उसकी (दाहकर्म आदि सारी) क्रियाएँ यथायोग्य अपने हाथों से कीं॥ क्योंकि अपने पिता का अंतिम संस्कार नही कर पाये थे। और जटायु भी मेरे पिता तुल्य है इसलिए अंतिम संस्कार किया है।
Kabandh Vadh by Ram : राम द्वारा कबंध राक्षस वध
फिर दोनों भाई सीताजी को खोजते हुए आगे चले। वे वन की सघनता देखते जाते हैं॥ श्री रामजी ने रास्ते में आते हुए कबंध राक्षस को मार डाला। वह बोला- दुर्वासाजी ने मुझे शाप दिया था। अब प्रभु के चरणों को देखने से वह पाप मिट गया। श्री रामजी ने कहा- हे गंधर्व! सुनो, मैं तुम्हें कहता हूँ, ब्राह्मणकुल से द्रोह करने वाला मुझे नहीं सुहाता॥ शील और गुण से हीन भी ब्राह्मण पूजनीय है। श्री रामजी ने भागवत धर्म कहकर उसे समझाया। अपने चरणों में प्रेम देखकर वह उनके मन को भाया। तदनन्तर श्री रघुनाथजी के चरणकमलों में सिर नवाकर वह अपनी गति (गंधर्व का स्वरूप) पाकर आकाश में चला गया॥
भगवान ने खूब सबको दर्शन दिया है और फिर सबरी के पास पहुंचे हैं। भीलनी परम तपस्विनी शबरी जाको नाम। गुरु मतंग कह कर गए तोहे मिलेंगे राम।
इनके गुरु कह कर गए थे की आप यहीं रहना और राम का इंतजार करना। राम खुद तुम्हे दर्शन देने आएंगे। आगे पढ़ें….