Ramayan : Ram Rajyabhishek story(katha) in hindi
रामायण : राम राज्याभिषेक कथा(कहानी)
उत्तरकाण्ड में तुलसीदास जी ने भगवान राम को नमस्कार किया है और भगवान के चरणों की वंदना की है और भगवान शिव को भी प्रणाम किया है।
रामजी के लौटने की अवधि का एक ही दिन बाकी रह गया, अतएव नगर के लोग बहुत आतुर (अधीर) हो रहे हैं।
इतने में सब सुंदर शकुन होने लगे और सबके मन प्रसन्न हो गए।
भरत जी सोच रहे हैं की श्री राम ने हमे भुला तो नही दिया? श्री रामजी के विरह समुद्र में भरतजी का मन डूब रहा था, उसी समय पवनपुत्र हनुमान्जी ब्राह्मण का रूप धरकर इस प्रकार आ गए, मानो (उन्हें डूबने से बचाने के लिए) नाव आ गई हो॥
हनुमान जी बोले- देवताओं तथा मुनियों के रक्षक श्री रामजी सकुशल आ गए॥ शत्रु को रण में जीतकर सीताजी और लक्ष्मणजी सहित प्रभु आ रहे हैं, देवता उनका सुंदर यश गा रहे हैं।
ये वचन सुनते ही (भरतजी को) सारे दुःख भूल गए। (भरतजी ने पूछा- तुम कौन हो? और कहाँ से आए हो?
हनुमान्जी ने कहा हे कृपानिधान! सुनिए, मैं पवन का पुत्र और जाति का वानर हूँ, मेरा नाम हनुमान् है॥
यह सुनते ही भरतजी उठकर आदरपूर्वक हनुमान्जी से गले लगकर मिले। मिलते समय प्रेम हृदय में नहीं समाता। भरतजी ने कहा-) हे हनुमान्- तुम्हारे दर्शन से मेरे समस्त दुःख समाप्त हो गए (दुःखों का अंत हो गया)। (तुम्हारे रूप में) आज मुझे प्यारे रामजी ही मिल गए।
फिर भरतजी के चरणों में सिर नवाकर हनुमान्जी तुरंत ही श्री रामजी के पास (लौट) गए और जाकर उन्होंने सब कुशल कही।
इधर भरतजी भी हर्षित होकर अयोध्यापुरी में आए और उन्होंने गुरुजी को सब समाचार सुनाया! फिर राजमहल में खबर जनाई कि श्री रघुनाथजी कुशलपूर्वक नगर को आ रहे हैं॥
खबर सुनते ही सब माताएँ उठ दौड़ीं। भरतजी ने प्रभु की कुशल कहकर सबको समझाया। नगर निवासियों ने यह समाचार पाया, तो स्त्री-पुरुष सभी हर्षित होकर दौड़े॥ श्री रामजी के स्वागत के लिए) दही, दूब, गोरोचन, फल, फूल और मंगल के मूल नवीन तुलसीदल आदि वस्तुएँ सोने की थाली में भर-भरकर हथिनी की सी चाल वाली सौभाग्यवती स्त्रियाँ (उन्हें लेकर) गाती हुई चलीं॥
बहुत सी स्त्रियाँ अटारियों पर चढ़ीं आकाश में विमान देख रही हैं और उसे देखकर हर्षित होकर मीठे स्वर से सुंदर मंगल गीत गा रही हैं॥
यहाँ (विमान पर से) सूर्य कुल रूपी कमल को प्रफुल्लित करने वाले सूर्य श्री रामजी वानरों को मनोहर नगर दिखला रहे हैं। (वे कहते हैं-) हे सुग्रीव! हे अंगद! हे लंकापति विभीषण! सुनो। यह पुरी पवित्र है और यह देश सुंदर है॥ द्यपि सबने वैकुण्ठ की बड़ाई की है- यह वेद-पुराणों में प्रसिद्ध है और जगत् जानता है, परंतु अवधपुरी के समान मुझे वह भी प्रिय नहीं है। यह बात (भेद) कई-कोई (बिरले ही) जानते हैं॥
यह सुहावनी पुरी मेरी जन्मभूमि है।
विमान से उतरकर प्रभु ने पुष्पक विमान से कहा कि तुम अब कुबेर के पास जाओ। श्री रामचंद्रजी की प्रेरणा से वह चला।
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