Radha Krishna Milan in kurukshetra story in hindi
राधा और कृष्ण का कुरुक्षेत्र मेले में मिलन
भगवान श्री कृष्ण और श्री राधा रानी का मिलन(Shri krishna aur Radha rani ka milan) ब्रज के बाद अगर कहीं हुआ है तो वो जगह है कुरुक्षेत्र। इसमें ब्रज से अनेक लोग आये थे। इसी दृश्य को मोरारी बापू आपको बता रहे हैं। आप सभी भक्त इस दृश्य का दर्शन करना। आपका आनंद दोगुना हो जायेगा।
मोरारी बापू कह रहे हैं–
कुरूक्षेत्र में सूर्यग्रहण का मेला था। कितने साल बीते कृष्ण ने बृज छोडे ..द्वारकाधीश बन चुका है ..बृज में बात गयी कि कृष्ण कुरूक्षेत्र में सूर्यग्रहण के मेले में आने वाले हैं। गरीब वृजवासियों ने तैयारियाँ की ..हम कुरूक्षेत्र जायें..जवान गोप गोपियाँ और कृष्ण के समवयस्क ..जो थोडी उम्र लग चुकी है ऐसे गोप गोपांगनाएँ तैयार हो गये। ..बूढे व्रजवासी जो अपनी खटिया से खड़े नहीं हो पाते वो अपने युवान गोप गोपियों को संदेश देते हैं कि गोपाल कुरूक्षेत्र में मिले तो कहना व्रज के बूढे तुम्हें याद करते हैं ..सब जाते हैं ..उसमें आप जानते है राधा भी जाती है।
2 मत हैं ..उसमें 1 मत है ..नंद यशोदा भी जाते हैं ..1 मत कहता है नंद यशोदा नहीं गये ..इच्छा तो बहुत थी।
मैं उसी पक्ष में हूँ कि नहीं गये।
even राधा ने भी कहा माँ बाबा आप भी चलिये ..कम से कम एक बार देख तो लें। ..तुम्हारा लाला द्वारकाधीश हो चुका है ..और नंद तो तैयार भी हो गये ..लेकिन यशोदा ने मर्यादा से नंद का हाथ पकडा ..नहीं ..नहीं जाना है ..क्या रूठना है ? क्या अपनी नारजगी पेश करनी है?
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प्रेम एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें आप नारजगी भी पेश नहीं कर सकते। प्रारंभ प्रेम में नारजगी का ..उलाहना ..शिकायतें ..रूठना ..मनाना ..ये सब शास्त्रीय भाव लक्षण है ..लेकिन पराकाष्ठा जहाँ होती है वहाँ नारजगी भी पेश नहीं की जाती। ..वहाँ तो 1 ही धुन होती है की ..एक तू ना मिला और सारी दुनिया मिले भी तो क्या है ..जिसको पाने के लिये पैदा हुए थे और वोही मुद्दा रह गया ..मेरा दिल ना खिला सारी दुनिया मिले भी तो क्या है ?
..गोपी गीत है भले फिल्म का हो ..पंक्तियां सुनिये ..कोई गोपी की आर्द्रता है ..तकदीर की मैं कोई भूल हूँ ..डाली से बिछडा हुआ फूल हूँ ..तेरा दामन नहीं और ये आँसू ढले भी तो क्या है ..एक तू ना मिला …
नंद का हाथ पकडा है यशोदा माँ ने ..नहीं जायेंगे ..तू ही तो पैर दबाते हुए कहती हो की दर्शन कराओ और आज अवसर मिला है ..पूरा व्रज जा रहा है तो क्यूँ ज़िद पर अडी हो ?..
तो कहे नहीं ..कि डर लगता है की 1 बार तो उसको छोडकर हम आये ..अब जायेंगे तो छोडकर तो आना पड़ेगा और दूसरी बार उसको छोडकर आना अब मेरे लिये संभव नहीं ..व्रजवासियों की यात्रा बिगड जायेगी ..और लोग कहेंगे कि कुरूक्षेत्र में यशोदा की मृत्यु हो गयी ..और दुनिया को तो मैं समझ सकती हूँ ..लेकिन उस समय कृष्ण की क्या हालत होगी ..मैं उसका मेला बिगाडना नहीं चाहती।
Radha krishna milan : राधा कृष्ण का मिलन
बृज आता है कुरूक्षेत्र ..उसमें राधा भी आयी है ..मिले हैं ..लेकिन वृंदावन का मिलना कहाँ?…कुरूक्षेत्र है ये तो युद्ध की भूमि है ..प्रेम भूमि तो व्रज है ..कृष्ण और राधा मिले हैं।
Radha Krishna Prem : राधा कृष्ण का प्रेम
…कुरूक्षेत्र का सरोवर आज भी बहुत प्रसिद्ध है . वहाँ बैठे हैं ..बहुत बड़ा संवाद है ..मैं उसमें ना जाऊँ ..समय भी नहीं है ..लेकिन राधा ने कृष्ण को कहा ..द्वारकाधीश! ..व्यंग्य भी था ..थोड़ा ताना था ..कहाँ हमारा कन्हैया और कहाँ द्वारकाधीश ..कहाँ वो मोर पंख कहाँ ये मणी रत्नजड़ित मुकुट ..राधा रो पड़ी ..कृष्ण मना रहे हैं ..ये शास्वत प्रेमी हैं ..ये केवल द्वापर की कहानी नहीं है ..ये अखंड ..अनंत . शास्वती है प्रेम गाथा …राधा ने कहा द्वारकाधीश हम व्रजवासी से 1 भूल हो गयी है ….
राधे ऐसी बातें क्यूँ करती हो ? कैसी भूल ?किसने की है ? आपने ?सखियों ने ?श्री दामा ने ? मधुमंगल ने ?…सब सखाओं को कृष्ण याद कर रहे हैं।
..राधा ने गोविन्द को कहा ..द्वारकाधीश! हमारी भूल ये हो गयी है कि हम भोले और गरीब व्रजवासी ये समझ ना सके ..आज समझ में आया कि प्रेम भगवान से नहीं हो सकता ..मानवी से ही हो सकता है ..तू भगवान निकला ..तू मानव बना रहता
…आज हम मानते हैं कि भगवान की आरती उतारी जाये ..स्तोत्र गाये जाये ..प्रेम तो इंसान से होता है ..और तू भगवान है ..और राधा बिदा लेती है।
और मेरी व्यास्पीठ को लगता है उसी समय कृष्ण के मुख से कुरूक्षेत्र के सरोवर के तट पर ये कीर्तन का जन्म हुआ था। ..यहाँ राधा जा रही है एक बहुत बड़ा सूत्रपात करके …
हाथ ऊपर उठा होगा ..राधे जा रही थी …
श्री राधे ..जय राधे ..राधे ..राधे ..श्री राधे …
बापू के शब्द
मानस शंकर
जय सियाराम बाप
इस संदर्भ में एक भाव और पढ़िए, मुझे हर भाव में गुरुदेव की बात याद आ जाती है , पढ़िए मत दर्शन कीजिये–
जिस समय राधा जी ने जब व्यंग्य किया द्वारिका… धीश। तो एक बार तो कृष्ण जी के तले से जमीं खिसक गई होगी। ये मेरी राधा ने क्या कह दिया ? कान्हा जी समझ गए होंगे आज मैं पराया हो गया हूँ।
राधा जरूर बोली हैं द्वारिका-धीशसससस.. प्रेम में सब मर्यादा भी टूट जाती हैं, और प्रेम में अधिकार भी है। आज किशोरी जी को कान्हा से ज्यादा पीड़ा हुई होगी ये व्यंगात्मक शब्द कहकर। द्वारिका तो जैसे तैसे मुख से निकला लेकिन जब धीश…. शब्द निकला होगा तो राधा का ह्रदय भी तुरंत रोया होगा। इसलिए ….धीश तक पहुँचते पहुँचते राधा की आवाज रुआवनि हो गई। मानो 100 छुरियां चल पड़ी हों तब जाकर ह्रदय से ये शब्द बाहर निकला हो।
अब बोल दिया तो किशोरी जी ने भी सोचा होगा, ये क्यों बोल दिया मैंने, गलानि हुई होगी, पर बोलना भी जरुरी था। …अपने लिए नहीं तो पुरे ब्रज की ओर से शिकायत करने की छूट है। राधा बोल भी न पाए लेकिन व्रजवासियों की ओर से बोली है।
कान्हा के तले से जमीं खिसकी, मानो आज कान्हा के प्राण(राधा) उनसे बिछुड़कर फिर से जाने जाने लगे हैं। कहना चाहते हैं- ब्रजवासी मुझे द्वारिकाधीश कहने लगे, नन्द गोप भी द्वारिका धिस कहने लगे, गोपियाँ भी कहने लगी और आज तुमने भी राधे !
लेकिन कह नहीं पा रहे हैं। कैसे कहें? और राधा क्यों सुने ? क्योंकि व्रज से जाते समय कान्हा खुद कहकर गए थे कि मैं शीघ्र आऊंगा। और कभी नहीं आये।
राधा जी जा रही हैं और इसके बाद राधे राधे कीर्तन हुआ होगा। जब श्री राधे, श्री राधे पुकार निकली होगी तो राधा भी एक क्षण के लिए रुक गई होंगी। क्यों न रुकेंगी किशोरी जी, आज प्यारे ने आवाज दी है श्री राधे!…. द्वारिकाधीश आवाज देते तो शायद न भी रूकती।
कान्हा पास आये और कहते हैं- राधा! माफ़ नहीं करोगी। राधा जी कुछ भी नहीं बोली।
कान्हा जी ने डरते डरते राधा जी के नजदीक आये होंगे और हाथ का स्पर्श चाहते हैं लेकिन मर्यादा नहीं है। द्वारिकाधीश में उलाहना दे दिया गया है। मानो कान्हा पूछते हों, क्या मुझे तुम्हे छूने का अधिकार नहीं है? या ये अधिकार भी मैं खो चूका हूँ, ये अधिकार भी तुम छीन लोगी राधे! अद्भुत मिलन हो रहा है साहब, जिसका शब्दों में वर्णन नहीं हो पा हा है। इस प्रेम का दर्शन कीजिये।
कान्हा के पूछने पर किशोरी जी कुछ भी बोली होंगी, आँखें झुक गई होंगी और सहमति दे दी गई। फिर कान्हा ने एक ऊँगली का स्पर्श किया होगा। बहोत ही हल्का स्पर्श। ….इस ऊँगली के स्पर्श से सभी यादें याद आ गई होगी।
उस एक ऊँगली के स्पर्श से जैसे राधा की सारी पीड़ा कान्हा ने हर ली। या फिर कहूं एक नई ऊर्जा स्फुटित हुई होगी। …..कोई महापुरुष छू दे ना तो जीवन बदल जाता है। यहाँ तो एक प्रेम की पराकाष्ठा का भाव महाभाव को छू गया। उस स्पर्श ने सब शिकायत दूर कर दी होगी।
दोनों बैठकर खूब रोये होंगे। दोनों एक दूसरे के नेत्रों में भरे हुए जल को अपने हाथों की उँगलियों से पूछ रहे होंगे।
आँखों ही आखों में आज प्रेम उमड़ गया होगा। आँखों के भाव से ही शिकायत होगी। और आँखों से ही सफाई देकर कान्हा ने सब शिकायत दूर कर दी होगी। राधा जी रोते रोते मुस्कुराई होंगी। दोबोरा दोनों मुस्कुराते हुए रो पड़े होंगे।
Hi.. i remember this was quoted during Kedarnath katha. Do you remember which day’s katha it was?
Much appreciate your assistance!
Jai Siyaram . Thank you so much… It Was 7th Day of katha 26th May..