Narad ji ka Shaap(curse) : नारद जी का शाप(Shrap)
मुनि ने जल में झाँककर अपना मुँह देखा। अपना रूप देखकर उनका क्रोध बहुत बढ़ गया। उन्होंने शिवजी के उन गणों को अत्यन्त कठोर शाप दिया। तुम दोनों कपटी और पापी जाकर राक्षस हो जाओ। तुमने हमारी हँसी की, उसका फल चखो।
नि ने फिर जल में देखा, तो उन्हें अपना (असली) रूप प्राप्त हो गया, तब भी उन्हें संतोष नहीं हुआ। उनके होठ फड़क रहे थे और मन में क्रोध (भरा) था। तुरंत ही वे भगवान कमलापति के पास चल दिए हैं। इन्हे मार्ग में ही भगवान मिल गए हैं। नारद जी ने देखा की भगवान के एक ओर लक्ष्मी हैं तो दूसरी ओर विश्वमोहिनी हैं। भगवान ने पूछा की नारद जी कहाँ जा रहे हो?
नारद जी बोले की मुझे एक भी नही मिलने दी और खुद दो-दो लिए खड़े हो। मेरी एक भी शादी नही होने दी आपने। बड़ा क्रोध आया हैं। और जो मन में आया हैं वो भगवान को बोला हैं। नारद जी भगवान से कहते हैं-
तुम दूसरों की सम्पदा नहीं देख सकते, तुम्हारे ईर्ष्या और कपट बहुत है। समुद्र मथते समय तुमने शिवजी को बावला बना दिया और देवताओं को प्रेरित करके उन्हें विषपान कराया।असुरों को मदिरा और शिवजी को विष देकर तुमने स्वयं लक्ष्मी और सुंदर (कौस्तुभ) मणि ले ली। तुम बड़े धोखेबाज और मतलबी हो। सदा कपट का व्यवहार करते हो। तुम परम स्वतंत्र हो, सिर पर तो कोई है नहीं, इससे जब जो मन को भाता है, (स्वच्छन्दता से) वही करते हो। भले को बुरा और बुरे को भला कर देते हो।
जब इतने से भी नारद जी को संतोष नही मिला तो शाप दे दिया हैं भगवान को। जिस शरीर को धारण करके तुमने मुझे ठगा है, तुम भी वही शरीर धारण करो, यह मेरा शाप है। तुमने हमारा रूप बंदर का सा बना दिया था, इससे बंदर ही तुम्हारी सहायता करेंगे। (मैं जिस स्त्री को चाहता था, उससे मेरा वियोग कराकर) तुमने मेरा बड़ा अहित किया है, इससे तुम भी स्त्री के वियोग में दुःखी होंगे।
नारद जी ने जैसे ही शाप दिया हैं भगवान ने उसे सर पर धारण कर लिया हैं। उसी समय लक्ष्मी और विश्वमोहिनी वहां से गायब हो गई हैं। माया का साम्राज्य समाप्त हो गया हैं और मायाधिपति सामने आ गए हैं।
अब नारद जी ने भयभीत होकर श्री हरि के चरण पकड़ लिए और कहा- हे शरणागत के दुःखों को हरने वाले! मेरी रक्षा कीजिए। हे कृपालु! मेरा शाप मिथ्या हो जाए। मुझसे बहुत बड़ा अपराध हो गया। तब भगवान बोले की नारद ये सब मेरी ही इच्छा से हुआ हैं।
नारद जी कहते हैं- मैंने आपको अनेक खोटे वचन कहे हैं। मेरे पाप कैसे मिटेंगे?
भगवान बोले हैं की- जाकर शंकरजी(Shankar ji ) के शतनाम(shatnaam) का जप करो, इससे हृदय में तुरंत शांति होगी। शिवजी के समान मुझे कोई प्रिय नहीं है, इस विश्वास को भूलकर भी न छोड़ना।
जपहु जाइ संकर सत नामा। होइहि हृदयँ तुरत बिश्रामा॥ कोउ नहिं सिव समान प्रिय मोरें। असि परतीति तजहु जनि भोरें॥
हे मुनि ! पुरारि (शिवजी) जिस पर कृपा नहीं करते, वह मेरी भक्ति नहीं पाता।
जेहि पर कृपा न करहिं पुरारी। सो न पाव मुनि भगति हमारी॥
शिव ने पार्वती को प्रसंग सुनाकर कहा की वही दोनों रुद्रगण रावण(Ravana) और कुम्भकर्ण(kumbhakarna) बने हैं। और भगवान ने राम अवतार लेकर इनका उद्धार किया हैं। एक कारण ये भी हैं।
इस तरह से सुंदर नारद चरित्र सुनाया है।
heart story
naradmuni story is myth made by shashtra writers to make more interesting it appears that narad was an imaginary story to lure the readers
nothing is myth in the story.. apna apna vishwas hota hai….. Narad ji ek guru hai. Jise narad ji mile hai use bhagwan bhi jarur mile hai.. Jaise Dhruv or Prahlad ji .. .
Very inspiring story
Thank you
नारायण हरि