Shrimad Bhagwat Geeta ka Saar/Conclusion in hindi
श्रीमद भगवद गीता का सार
श्रीमद्भगवद्गीता – भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को कुरुक्षेत्र के मैदान पर गीता का ज्ञान दिया है। जिसमें भगवान ने अर्जुन को सांख्य योग, कर्म योग, ज्ञान योग, भक्ति योग, अपने विराट रूप का वर्णन, शरीर और आत्मा का वर्णन, पुनर्जन्म, मोक्ष आदि आदि का खूब सारा वर्णन किया है।
ये सब वर्णन करने के बाद अंत में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि यदि तुम्हारे मन में अब भी कोई शंका, कोई आशंका या कोई प्रश्न हो तो मुझे बताओ!
अर्जुन कहते हैं – नहीं माधव! अब इस मन में कोई शंका, कोई आशंका, कोई संशय नहीं। मन में अब केवल विश्वास और श्रद्धा है। केशव! अब मुझे और कुछ नहीं पूछना। कुछ नहीं जानना। हाँ, मुझे अपना शिष्य समझकर तुम्हें कोई अंतिम उपदेश देना हो तो उस प्रसाद को पाने के लिए मैंने अपने मन की झोली फैला रखी है। मुझे जिसके योग्य समझो वही अंतिम उपदेश प्रदान करो।
Last updesh of Bhagwat geeta in hindi : श्रीमद्भगवद्गीता का अंतिम उपदेश
कृष्ण कहते हैं – सचमुच मेरा अंतिम उद्देश्य सुनना चाहते हो?
अर्जुन बोला- हाँ केशव! अब तक जितना मैंने पूछा, उतना ही तुमने बताया है। अब मैं चाहता हूँ कि मेरे प्रश्नों की सीमाओं से भी परे जो और है, वो अपनी इच्छा से तुम बताओ!
कृष्ण बोले – यदि वो जानना चाहते हो अर्जुन, जो तुम्हारी बुद्धि और तर्क से परे है तो सुनों। मेरा अंतिम उपदेश बस इतना ही है कि अब तक जो मैंने तुम्हें ज्ञान, कर्म अथवा योग आदि की शिक्षा दी है वो सब भूल जाओ। सब पूजा की विधियों को, सब योग साधनों को और सब धर्मों को भुलाकर केवल मेरी शरण में इस प्रकार आओ जैसे काँटों से लहू लुहान और कीचड़ से लथपथ एक बालक रोता रोता भागकर अपनी माँ की गोद में पनाह लेता है और जिस प्रकार माँ उसके शरीर से सारा गंद और कीचड़ धोकर उसे फिर से एक फूल की तरह निर्मल और स्वच्छ बना देती है।
हे अर्जुन! उसी प्रकार मैं तुम्हारे समस्त पापों का मेल धोकर तुम्हें पाप मुक्त कर दूंगा और समस्त संसारी बंधनों से मुक्ति देकर तुम्हें शाश्वत शांति प्रदान करूँगा। इसलिए –
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच: ।।
अर्थ :- सम्पूर्ण धर्मों को अर्थात् सम्पूर्ण कर्तव्य कर्मों को मुझमें त्याग कर तू केवल एक मुझ सर्वशक्तिमान, सर्वाधार परमेश्वर की ही शरण में आ जा। मैं तुझे सम्पूर्ण पापों से मुक्त कर दूँगा, तू शोक मत कर ।।
अर्जुन भगवान श्री कृष्ण को नमस्कार करते हैं और कहते हैं- हे केशव! सारे बंधनों से मुक्त होकर अब मैं अपने आपको तुम्हारे श्री चरणों में अर्पित करता हूँ। मुझे आज्ञा दो कि अब मैं क्या करूँ?
कृष्ण बोले –
अर्जुन यह महाभारत का महापर्व तेरे बिन कैसे मनेगा,
धर्म के युद्ध में मौन रहा तो फिर कब तेरा धनुष तनेगा।
तुझपर लोग हँसेंगे युगों तक, तू ऐसी अपकीर्ति जनेगा,
स्वर्ग मिलेगा न कीर्ति मिलेगी केवल पाप का भागी बनेगा।
हे अर्जुन! अब तुम धर्म क्षेत्र में अपने कर्तव्य को निभाने के लिए आगे बढ़ो। अपना गांडीव उठाकर उसकी प्रत्यंचा खींचो और अपने गांडीव की टंकार से युद्ध की घोषणा करो।
अर्जुन अपने गांडीव धनुष को हाथ में लेता है और उसकी प्रत्यंचा खींचकर टंकार करता है और युद्ध के लिए कौरव सेना को ललकारता है।
इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण का गीता का उपदेश अर्जुन की समझ में आ जाता है और अर्जुन युद्ध के लिए तैयार हो जाता है।
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