Who is Lord Krishna in hindi
भगवान श्री कृष्ण कौन है?
Shri Krishna Kaun hai?
भगवान श्री कृष्ण सर्व आकर्षण हैं। भगवान श्री कृष्ण के नाम, रूप , लीला अनेक हैं। जिनका वर्णन कर पाना असंभव है। फिर भी जो हमारे संतों ने बताया वो हम कॉपी करके यहाँ पर लिखते रहते हैं। हमारा अपना यहाँ पर कुछ भी नहीं है। हाँ एक भगवान श्री कृष्ण हैं जिन्हे हम अपना कह सकते हैं। भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को श्रीमद भगवत गीता में बता रहे हैं कि मैं कौन हूँ?-
Bhagavad Gita Vibhuti Yog : श्रीमद् भागवत गीता विभूति योग
भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को भागवत गीता मैं अपने स्वरूप का वर्णन किया है। श्री कृष्ण ने 10वें अध्याय में विभूतियोग के अंतर्गत अपने को बताया है-
श्री कृष्ण कहते हैं अर्जुन! हे कुरुश्रेष्ठ! अब मैं जो मेरी दिव्य विभूतियाँ हैं, उनको तेरे लिए प्रधानता से कहूँगा; क्योंकि मेरे विस्तार का अंत नहीं है॥
संसार में जितने भी प्राणी हैं मैं उन सबकी आत्मा हूँ। सभी जीवों का आदि, मध्य और अंत मैं ही हूँ। मैं अदिति के 12 पुत्रों में विष्णु(वामन) , प्रकाशमान वस्तुओं में किरणों वाला सूर्य हूँ। वायु सम्बन्धी देवताओं के भेदों में मैं मरीचि नामक देवता हूँ और नक्षत्रों में चन्द्रमा हूँ।
मैं वेदों में सामवेद हूँ। देवताओंमें इन्द्र हूँ। इन्द्रियोंमें मन हूँ और प्राणियों की चेतना हूँ।
मैं ग्यारह रुद्रों में भगवान शंकर हूँ और यक्षों में कुबेर हूँ। मैं आठ वसुओं में अग्नि हूँ और शिखर वाले पर्वतों में सुमेरु पर्वत हूँ।
Read : शिव पार्वती विवाह कथा
पुरोहितों में मुख्य बृहस्पति हूँ। मैं सेनापतियों में स्कंद और जलाशयों में समुद्र हूँ।
भगवान कृष्ण कहते हैं- मैं महर्षियों में भृगु और शब्दों में एक अक्षर अर्थात् ओंकार(प्रणव) मैं हूँ। सब प्रकार के यज्ञों में जपयज्ञ और स्थिर रहने वालों में हिमालय पहाड़ हूँ।
सभी वृक्षों में पीपल हूँ। देवर्षियों में नारद हूँ। गन्धर्वों में चित्ररथ हूँ और सिद्धों में कपिल मुनि हूँ।
मैं घोड़ों में अमृत के साथ समुद्र से प्रकट होने वाले उच्चैःश्रवा नामक घोड़े, हाथियों में श्रेष्ठ ऐरावत नामक हाथी, और मनुष्यों में राजा हूँ।
मैं आयुधों(शस्त्र) में वज्र और गौओं में कामधेनु हूँ। सन्तान उत्पत्ति का हेतु कामदेव हूँ और सर्पों में वासुकि मैं हूँ।
नागों में अनन्त (शेषनाग) और जल जन्तुओं का अधिपति वरुण मैं हूँ। पितरोंमें अर्यमा नमक पितृ और,शासन करने वालों में यमराज मैं हूँ।
मैं दैत्यों में प्रह्लाद हूँ और गणना करने वालों में काल हूँ। पशुओं में मृगराज सिंह और पक्षियों में गरुड हूँ।
Read : भक्त प्रल्हाद की कथा
मैं पवित्र करने वालों में पवन हूँ और शास्त्रधारियों में श्री राम हूँ। जल जन्तुओं में मगर हूँ। बहने वाले स्रोतोंमें गङ्गाजी हूँ।
Read : भगवान राम की सम्पूर्ण कथा
हे अर्जुन! सम्पूर्ण सर्गोंके आदि, मध्य तथा अन्त में मैं ही हूँ। विद्याओं में अध्यात्म विद्या और परस्पर शास्त्रार्थ करने वालों का (तत्त्वनिर्णय के लिये किया जाने वाला) वाद मैं हूँ।
मैं अक्षरों में अकार और समासों में द्वन्द्व समास हूँ। अक्षयकाल अर्थात् काल का भी महाकाल तथा सब ओर मुख वाला, विराट्स्वरूप, सबका धारण-पोषण करने वाला भी मैं हूँ।
मैं सबका हरण करने वाली, सबका नाश करने वाली मृत्यु और उत्पन्न होने वालों का उत्पत्ति हेतु हूँ। स्त्री जाति में कीर्ति, श्री, वाक्, स्मृति, मेधा, धृति और क्षमा मैं हूँ।
मैं गायी जाने वाली श्रुतियों में बृहत्साम और वैदिक छन्दों में गायत्री छन्द हूँ। बारह महीनों में मार्गशीर्ष और छः ऋतुओंमें वसन्त हूँ।
मैं छल करने वालों में जूआ और तेजस्वियों में तेज हूँ। जीतने वालों की विजय हूँ, निश्चय करने वालों का निश्चय और सात्त्विक पुरुषों का सात्त्विक भाव हूँ।
मैं वृष्णिवंशियों में वासुदेव और पाण्डवों में धनञ्जय(अर्जुन) हूँ। मुनियों में वेदव्यास और कवियों में शुक्राचार्य भी मैं हूँ।
मैं दमन करने वालों में दण्डनीति और विजय चाहने वालों में नीति हूँ। गोपनीय भावों में मौन और ज्ञानवानों का तत्त्वज्ञान मैं ही हूँ।
हे अर्जुन! सम्पूर्ण प्राणियों का जो बीज है वह बीज मैं ही हूँ। क्योंकि मेरे बिना कोई भी चर अचर प्राणी नहीं है अर्थात् चरअचर सब कुछ मैं ही हूँ।
इतना कहने के बाद भी भगवान श्री कृष्ण कहते हैं – हे! परंतप अर्जुन! मेरी दिव्य विभूतियों का अन्त नहीं है। मैंने तुम्हारे सामने अपनी विभूतियों का जो विस्तार कहा है, यह तो केवल संक्षेप से कहा है।
जो जो ऐश्वर्ययुक्त शोभायुक्त और बलयुक्त वस्तु है, उस उसको तुम मेरे ही तेज(योग) के अंश से उत्पन्न हुई समझो। अथवा हे अर्जुन तुम्हें इस प्रकार बहुत सी बातें जानने की क्या आवश्यकता है? मैं इस संपूर्ण जगत् को अपनी योगशक्ति के एक अंश मात्र से धारण करके स्थित हूँ।