Lord Krishna Daily Routine in hindi
भगवान श्री कृष्ण की दिनचर्या
जब सबेरा होने लगता, कुक्कुट (मुरगे) बोलने लगते, पारिजात की सुगन्ध से सुवासित भीनी-भीनी वायु बहने लगती। भौंरें तालस्वर से अपने संगीत की तान छेड़ देते। पक्षियों की नींद उचट जाती और वे वंदीजनों की भाँति भगवान श्रीकृष्ण को जगाने के लिये मधुर स्वर से कलरव करने लगते।
इस तरह भगवान श्रीकृष्ण प्रतिदिन ब्राम्हमुहूर्त में ही उठ जाते और हाथ-मुँह धोकर अपने आत्मस्वरुप का ध्यान करने लगते। इसके बाद वे विधिपूर्वक निर्मल और पवित्र जल में स्नान करते। फिर शुद्ध धोती पहनकर, दुपट्टा ओढ़कर यथाविधि नित्यकर्म सन्ध्या-वन्दन आदि करते। इसके बाद हवन करते और मौन होकर गायत्री का जप करते। इसके बाद सूर्योदय होने के समय सूर्योपस्थान करते और अपने कलास्वरुप देवता, ऋषि तथा पितरों का तर्पण करते।
फिर कुल के बड़े-बूढ़ों और ब्राम्हणों की विधिपूर्वक पूजा करते। इसके बाद श्रीकृष्ण दुधारू, पहले-पहल ब्यायी हुई, बछड़ों वाली सीधी-शान्त गौओं का दान करते। उस समय उन्हें सुन्दर वस्त्र और मोतियों की माला पहना दी जाती। सींग में सोना और खुरों में चाँदी मढ़ दी जाती। वे ब्राम्हणों को वस्त्राभूषणों से सुसज्जित करके रेशमी वस्त्र, मृगचर्म और तिल के साथ प्रतिदिन तेरह हजार चौरासी गौएँ इस प्रकार दान करते । तदनन्तर अपनी विभूतिरूप गौ, ब्राम्हण, देवता, कुल के बड़े-बूढ़े, गुरुजन और समस्त प्राणियों को प्रणाम करके मांगलिक वस्तुओं का स्पर्श करते।
इसके बाद भगवान सुंदर पीतांबर धारण करके घी और दर्पण में अपना मुखारविन्द देखते; गाय, बैल, ब्राम्हण और देव-प्रतिमाओं का दर्शन करते। फिर पुरवासी और अन्तःपुर में रहने वाले चारों वर्णों के लोगों की अभिलाषाएँ पूर्ण करते और फिर अपनी अन्य (ग्रामवासी) प्रजा की कामनापूर्ति करके उसे सन्तुष्ट करते और इन सबको प्रसन्न देखकर स्वयं भी बहुत ही आनन्दित होते । वे पुष्पमाला, ताम्बूल, चन्दन अंगराग आदि वस्तुएँ पहले ब्राम्हण, स्वजनसम्बन्धी, मन्त्री और रानियों को बाँट देते; और उनसे बची हुई स्वयं अपने काम में लाते ।
भगवान यह सब करते, तब तक दारुक नाम का सारथि सुग्रीव आदि घोड़ों से जुता हुआ अत्यन्त अद्भुत रथ ले आता और प्रणाम करके भगवान के सामने खड़ा हो जाता। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण सात्यकि और उद्धवजी के साथ अपने हाथ से सारथि का हाथ पकड़कर रथ पर सवार होते। उस समय रनिवास की स्त्रियाँ लज्जा एवं प्रेम से भरी चितवन से उन्हें निहारने लगतीं और बड़े कष्ट से उन्हें विदा करतीं। भगवान उनके चित्त को चुराते हुए मुस्कुरा कर महल से निकलते।
फिर भगवान समस्त यदुवंशियों के साथ सुधर्मा नाम की सभा में प्रवेश करते। उस सभा की ऐसी महिमा है कि जो लोग उस सभा में जा बैठते हैं, उन्हें भूख-प्यास, शोक-मोह और जरा-मृत्यु—ये छः उर्मियाँ नहीं सतातीं। सभा में जाकर भगवान श्रेष्ठ सिंहासन पर बैठ जाते। सभा में विदूषक लोग विभिन्न प्रकार के हास्य-विनोद से, नटाचार्य अभिनय से और नर्तकियाँ कलापूर्ण नृत्यों से अलग-अलग अपनी टोलियों के साथ भगवान की सेवा करतीं । उस समय मृदंग, वीणा, पखावज, बाँसुरी, झाँझ और शंख बजने लगते और सूत, मागध तथा वंदीजन नाचते-गाते और भगवान की स्तुति करते कोई-कोई व्याख्याकुशल ब्राम्हण वहाँ बैठकर वेदमन्त्रों की व्याख्या करते और कोई पुर्वकालीन पवित्रकीर्ति नरपतियों के चरित्र कह-कहकर सुनाते ।