Krishna and Trinavarta story in hindi
कृष्ण ने किया तृणावर्त का उद्धार
एक दिन यशोदा अपने कान्हा को नन्द भवन में दूध पिला रही थी। माँ अपने लाला का मुख देख रही है। और बहुत प्यार कर रही है। भगवान ने देखा की आकाश में तृणावर्त(Trinavarta) नाम असुर चक्कर लगा रहा था। ये आंधी के रूप में आया था। भगवान ने जब देखा तो भगवान समझ गए ये मुझे माँ की गोदी से आकाश में ले जायेगा। यदि मैं माँ की गोदी में लेटा रहा तो कहीं माँ को भी ये साथ ना ले जाये आकाश में। मैं माँ को सम्भालुंगा या खुद को।
भगवान ने अपने वजन को बढ़ाना शुरू कर दिए। इतना वजन बढ़ा लिए की माँ से गोदी में रखा ही नहीं गया। माँ सोचने लगी की मेरो लाला फूल से हलको है। लेकिन आज क्या हो गया की मैं इसे उठा भी नही पा रही हूँ। माँ ने झट भगवान को उठाकर पृथ्वी पर लिटा दिया।
उसी समय तेज आंधी चली और चारों ओर अन्धकार ही अन्धकार छा गया। तुरंत तृणावर्त ने भगवान को अपनी गोद में लिया ओर आकाश में उड़ गया । भगवान तृणावर्त के साथ युद्ध करने लगे। अंत में भगवान ने अपने कर कमलो से तृणावर्त का कंठ पकड़ा ओर दबा दिया। इस तरह भगवान ने तृणावर्त का उद्धार कर दिए।
तृणावर्त कौन है? Who is Trinavarta?
पूर्वकाल में पांडु देश में सहस्त्राक्ष नामक राजा था। वह रानियों के साथ जलविहार कर रहा था। अत: निकट से जाते दुर्वासा को उसने प्रणाम नहीं किया। दुर्वासा ने उसे राक्षस होने का शाप दिया तथा मुक्ति के लिए श्रीकृष्ण का स्पर्श वांछनीय बताया। वही राजा तृणावर्त के रूप में गोकुल पहुंचा। वह राक्षस रूप मेंपृथ्वी पर गिरा तो उसका विशाल शरीर क्षत-विक्षत दिखलायी पड़ रहा था।
आध्यात्मिक पक्ष
ये तृणावर्त आंधी के रूप में आया था। व्यक्ति के जीवन में भी मोह रूपी आंधी चलती है। लेकिन प्रेम और मोह में अंदर है भगवान ब्रज में प्रेम लीला कर रहे है। क्योंकि प्रेम में से सुगंध आती है और मोह में आती है दुर्गन्ध। प्रेम बहता रहता है और मोह रुक जाता है।
जैसे वर्षा का पानी किसी गड्ढे में रुक जाये तो वहां से 2 -4 दिन के बाद दुर्गन्ध आने लग जाती है लेकिन जब वही पानी नदी में जाकर मिल जाता है तो स्वच्छ हो जाता है। कहने का अभिप्राय की प्रेम करो। मोह मत करो।
प्रेम सबके लिए होता है। मोह व्यक्ति विशेष, वस्तु विशेष के लिए होता है। भगवान ने मोह रूपी आंधी को हटाया।
Boliye Krishan Kanhaiya ki jai !! बोलिए कृष्ण कन्हैया की जय !!
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