Krishna son Pradyumna story in hindi
कृष्ण पुत्र प्रद्युम्न की कहानी/कथा
कामदेव भगवान वासुदेव के ही अंश हैं। भगवान शिव ने इस कामदेव को भस्म कर दिया था। फिर शरीर-प्राप्ति के लिये उन्होंने अपने अंशी भगवान वासुदेव का ही आश्रय लिया। अबकी बार भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा रुक्मिणीजी के गर्भ से उत्पन्न हुए और प्रद्युम्न नाम से जगत् में प्रसिद्ध हुए। ये काफी सुंदर और गुणवान थे।
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जब बालक प्रद्युम्न 10 दिन के भी नही हुए थे एक काम रूपी शम्बरासुर वेष बदलकर सूतिकागृह से उन्हें हर ले गया और समुद्र में फेंकर अपने घर लौट गया। उसे पता था की ये बालक मेरा काल है। समुद्र में उस शिशु को एक मछली निगल गई और उस मछली को एक मगरमच्छ ने निगल लिया। वह मगरमच्छ एक मछुआरे के जाल में आ फँसा जिसे कि मछुआरे ने शम्बासुर की रसोई में भेज दिया। जब उस मगरमच्छ का पेट फाड़ा गया तो उसमें से अति सुन्दर बालक निकला। उसको देख कर शम्बासुर की दासी मायावती के आश्चर्य का ठिकाना न रहा।
वह उस बालक को पालने लगी। तब नारदजी ने आकर बालक का कामदेव होना, श्रीकृष्ण की पत्नी रुक्मिणी गर्भ से जन्म लेना, मच्छ पेट में जाना सब कुछ कह सुनाया । वह मायावती कामदेव की यशस्विनी पत्नी रति ही थी। जिस दिन शंकरजी ने क्रोध से कामदेव का शरीर भस्म हो गया था, उसी दिन से वह उसकी देह के पुनः उत्पन्न होने की प्रतीक्षा कर रही थी ।
उसी रति को शम्बरासुर ने अपने यहाँ दाल-भात बनाने के काम में नियुक्त कर रखा था। जब उसे मालूम कि इस शिशु के रूप में मेरे पति कामदेव ही हैं, तब वह उसके प्रति बहुत प्रेम करने लगी । श्रीकृष्ण कुमार भगवान प्रद्दुम्न बहुत थोड़े दिनों में जवान हो गये। उनका रूप-लावण्य इतना अद्भुत था कि जो स्त्रियाँ उनकी ओर देखतीं, उनके मन में श्रृंगार-रस का उद्दीपन हो जाता ।
एक दिन प्रद्दुम्न ने रति के भावों में परिवर्तन देखकर कहा—‘देवि! तुम तो मेरी माँ के समान हो। तुम्हारी बुद्धि उलटी कैसे हो गयी ? मैं देखता हूँ कि तुम माता का भाव छोड़कर कामिनी के समान हाव-भाव दिखा रही हो’ ।
रति ने कहा— आप स्वयं भगवान नारायण के पुत्र हैं। शरम्बरासुर आपको सूतिकागृह से चुरा लाया था। आप मेरे पति स्वयं कामदेव हैं और मैं आपकी सदा ही धर्म-पत्नी रति हूँ । जब आप दस दिन के भी न थे, तब इस शरम्बरासुर ने आपको हरकर समुद्र में डाल दिया था। वहाँ एक मच्छ आपको निगल गया और उसी के पेट से आप यहाँ मुझे प्राप्त हुए हैं ।
मायावती रति ने इस प्रकार कहकर प्रद्दुम्न को महामाया नाम की विद्या सिखायी और धनुष बाण, अस्त्र-शस्त्र आदि सभी विद्याओं में निपुण कर दिया। अब प्रद्दुम्न जी शम्बरासुर के पास जाकर कड़े वचन बोले और उसे युद्ध के लिए ललकारने लगे।
प्रद्दुम्नजी के कटुवचनों कि चोट से शम्बरासुर तिलमिला उठा। ह हाथ में गदा लेकर बाहर निकल आया । उसने अपनी गदा बड़े जोर से आकाश में घुमायी और इसके बाद प्रद्दुम्नजी पर चला दी। भगवान प्रद्दुम्न ने देखा कि उसकी गदा बड़े वेग से मेरी ओर आ रही है। तब उन्होंने अपनी गदा के प्रहार से उसकी गदा गिरा दी और क्रोध में भरकर अपनी गदा उस पर चलायी।
तब वह असुर अनेक प्रकार की माया रच कर युद्ध करने लगा किन्तु प्रद्युम्न ने महा विद्या के प्रयोग से उसकी माया को नष्ट कर दिया और अपने तीक्ष्ण तलवार से शम्बासुर का सिर काट कर पृथ्वी पर डाल दिया। देवता फूलों की वर्षा करते हुए स्तुति करने लगे और इसके बाद मायावती रति, जो आकाश में चलना जानती थीं, अपनी पति प्रद्दुम्नजी को आकाश मार्ग से द्वारिकापुरी में ले गयी ।
द्वारिका में रुक्मिणीजी ने प्रद्दुम्न को देखा। रुक्मणी को बड़ा आश्चर्य हुआ ये कृष्ण के जैसे दिखने वाला बालक कौन है? न जाने क्यों इसे देख कर मेरा वात्सल्य उमड़ रहा है। मेरा बालक भी बड़ा होकर इसी के समान होता किन्तु उसे तो न जाने कौन प्रसूतिकागृह से ही उठा कर ले गया था। जब रुक्मणी ऐसा विचार कर रही थी उसी समय श्री कृष्ण भी अपने माता-पिता देवकी और वसुदेव तथा भाई बलराम के साथ वहाँ आ पहुँचे। भगवन् श्रीकृष्ण सब कुछ जानते थे। परन्तु वे कुछ न बोले, चुपचाप खड़े रहे।
इतने में ही नारदजी वहाँ आ पहुँचे और उन्होंने सारी घटना को कह सुनाया। जब द्वारकावासी नर-नारियों को यह मालूम हुआ कि खोये हुए प्रद्दुम्नजी लौट आये हैं तब वे परस्पर कहने लगें ‘अहो, कैसे सौभाग्य की बात है कि यह बालक मानो मरकर फिर लौट आया’ । इस तरह से भगवान श्री कृष्ण की सुंदर लीलाएं द्वारका में चल रही हैं।
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