Krishna killed(vadh) Aristasura Story in hindi
कृष्ण द्वारा अरिष्टासुर वध कथा
एक बार भगवान कृष्ण गऊ चराकर ब्रज में आ रहे थे। उसी समय अरिष्टासुर नाम का एक दैत्य बैल के रूप में आया। वह काफी बलशाली था और अपने खुरों को इतने जोर से पटक रहा था कि उससे धरती काँप रही थी।
वह बड़े जोर से गर्ज रहा था और पैरों से धूल उछालता जाता था। पूँछ खड़ी किये हुए था और सींगों से चहरदीवारी, खेतों की मेड़ आदि तोड़ता जाता था । बीच-बीच में बार-बार मूतता और गोबर छोड़ता जाता था। आँखें फाड़कर इधर-उधर दौड़ रहा था।
उसके जोर से गरजने से स्त्रियों और गौओं के तीन-चार महीने के गर्भ स्रवित हो जाते थे और पाँच-छः महींने के गिर जाते थे। उस तीखे सींगवाले बैल को देखकर गोपियाँ और गोप सभी भयभीत हो गये। पशु तो इतने डर गये कि अपने रहने का स्थान छोड़कर भाग ही गये । उस समय सभी व्रजवासी ‘श्रीकृष्ण! श्रीकृष्ण! हमें इस भय से बचाओ’ इस प्रकार पुकारते हुए भगवान श्रीकृष्ण की शरण में आये।
भगवान ने वृषासुर को ललकारा, ‘अरे मूर्ख! महादुष्ट! तू इन गौओं और ग्वालों को क्यों डरा रहा है ? इससे क्या होगा । देख, तुझ-जैसे दुरात्मा दुष्टों के बल का घमंड चूर-चूर कर देने वाला यह मैं हूँ।’
इस प्रकार ललकारकर भगवान ने ताल ठोंकी और उसे क्रोधित करने के लिये वे अपने एक सखा के गले में बाँह डालकर खड़े हो गये। भगवान श्रीकृष्ण की इस चुनौती से वह क्रोध के मारे तिलमिला उठा और अपने खुरों से बड़े जोर से धरती खोदता हुआ श्रीकृष्ण की ओर झपटा।
उस समय उसकी उठायी हुई पूँछ के धक्के से आकाश के बादल तितर-बितर होने लगे । उसने अपने तीखे सींग आगे कर लिये। लाल-लाल आँखों से टकटकी लगाकर श्रीकृष्ण की ओर टेढ़ी नज़र से देखता हुआ वह उनपर इतने वेग से टूटा, मानो इन्द्र के हाथ से छोड़ा हुआ वज्र हो।
भगवान श्रीकृष्ण ने अपने दोनों हाथों से उसके दोनों सींग पकड़ लिये और जैसे एक हाथी अपने से भिड़ने वाले दूसरे हाथी को पीछे हटा देता है, वैसे ही उन्होंने उसे अठारह पग पीछे ठेलकर गिरा दिया । भगवान के इस प्रकार ठेल देने पर वह फिर तुरंत ही उठ खड़ा हुआ और क्रोध से अचेत होकर लंबी-लंबी साँस छोड़ता हुआ फिर उन पर झपटा। उस समय उसका सारा शरीर पसीने से लथपथ हो रहा था ।
भगवान श्री कृष्ण ने अपने दोनों हाथों से उसके सींग पकड़ लिये और उसे लात मारकर ज़मीन पर गिरा दिया और फिर पैरों से दबाकर इस प्रकार उसका कचूमर निकाल दिया। इसके बाद उसी का सींग उखाड़कर उसको खूब पीटा, जिससे वह पड़ा ही रहा गया ।
इस प्रकार वह दैत्य मुँह से खून उगलता और गोबर-मूत करता हुआ पैर पटकने लगा। उसकी आँखें उलट गयीं और उसने बड़े कष्ट के साथ प्राण छोड़े। अब देवता लोग भगवान पर फूल बरसा-बरसाकर उनकी स्तुति करने लगे ।
जब भगवान श्रीकृष्ण ने इस प्रकार बैल के रूप में आने-वाले अरिष्टासुर को मार डाला, तब सभी गोप उनकी प्रशंसा करने लगे। उन्होंने बलरामजी के साथ गोष्ठ में प्रवेश किया और उन्हें देख-देखकर गोपियों के नयन-मन आनन्द से भर गये ।
बोलिए श्री कृष्ण जी महाराज की जय !!