Krishna-Balram sister Subhadra marriage Story in hindi
कृष्ण-बलराम की बहन सुभद्रा विवाह कथा/कहानी
राजा परीक्षित् ने शुकदेव जी से पूछा—भगवन्! मेरे दादा अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण और बलरामजी की बहिन सुभद्राजी से किस प्रकार विवाह किया था?
श्रीशुकदेवजी कहते हैं—परीक्षित्! एक बार अर्जुन तीर्थयात्रा के लिये पृथ्वी पर घूमते हुए प्रभासक्षेत्र पहुँचे। वहाँ उन्होंने यह सुना की बलरामजी मेरे मामा की पुत्री सुभद्रा का विवाह दुर्योधन के साथ करना चाहते हैं और वसुदेव, श्रीकृष्ण आदि उनसे इस विषय में सहमत नहीं हैं। अब अर्जुन के मन में सुभद्रा को पाने की लालसा जग आयी।
वे त्रिदण्डी वैष्णव का वेष धारण करके द्वारका पहुँचे । अर्जुन सुभद्रा को प्राप्त करने के लिये वहाँ वर्षाकाल में चार महीने तक रहे। वहाँ पुरवासियों और बलरामजी ने उनका खूब सम्मान किया। लेकिन कोई भी नही जान पाया की ये ये अर्जुन है।
एक दिन बलरामजी ने आतिथ्य के लिये उन्हें बुलाया और उनको वे अपने घर ले आये। त्रिदण्डी-वेषधारी अर्जुन को बलरामजी ने बड़ी श्रद्धा के साथ भोजन करवाया। अर्जुन ने भोजन के समय वहाँ सुंदर सुभद्रा को देखा।अर्जुन के नेत्र में प्रेम भर आया। उनके मन ने उसे पत्नी बनाने का पक्का निश्चय कर लिया ।
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परीक्षित्! तुम्हारे दादा अर्जुन भी बड़े ही सुन्दर थे। उन्हें देखकर सुभद्रा ने भी मन में उन्हीं को पति बनाने का निश्चय किया। वह तनिक मुसकराकर लजीली चितवन से उनकी और देखने लगी। अब अर्जुन केवल उसी का चिन्तन करने लगे और इस बात का अवसर ढूँढने लगे कि इसे कब हर ले जाऊ। सुभद्रा को प्राप्त करने की उत्कट कामना से उनका चित्त चक्कर काटने लगा, उन्हें तनिक भी शान्ति नहीं मिलती थी।
Subhadra Haran : सुभद्रा हरण
एक बार सुभद्राजी देव-दर्शन के लिये रथ पर सवार होकर द्वारका के किले से बाहर निकलीं। उसी समय अर्जुन ने देवकी-वासुदेव और श्रीकृष्ण की अनुमति से सुभद्रा का हरण कर लिया। रथ पर सवार होकर अर्जुन ने धनुष उठा लिया और जो सैनिक उन्हें रोकने के लिये आये, उन्हें मार-पीटकर भगा दिया। सुभद्रा के निज-जन रोते-चिल्लाते रह गये और अर्जुन जिस प्रकार सिंह अपना भाग लेकर चल देता है, वैसे ही सुभद्रा को लेकर चल पड़े ।
यह समाचार सुनकर बलरामजी बहुत बिगड़े। बड़ा गुस्सा करने लगे। लेकिन भगवान श्रीकृष्ण तथा अन्य सम्बन्धियों ने उनके पैर पकड़कर उन्हें बहुत कुछ समझाया-बुझाया, तब वे शान्त हुए । इसके बाद बलरामजी ने प्रसन्न होकर वर-वधू के लिये बहुत-सा धन, सामग्री, हाथी, रथ, घोड़े और दासी-दास दहेज में भेजे।
इस तरह से भगवान श्री कृष्ण अर्जुन के साले भी बने हैं।
How Tridandi Sanyasi can come back as a Gruhastha? Was Vitthal Kulkarni of Alandi a similar case? Please explain in details!
sorry, i have no information about this.. Jai Shri Krishna