Bhim Hanuman Milan Story in hindi
भीम हनुमान के मिलन की कहानी
एक बार द्रौपदी ने एक सुगन्धित कमल को देखा और भीम से कहा- ‘भीम! देखो तो, यह दिव्य पुष्प कितना अच्छा और कैसा सुन्दर है! इसकी सुगंध कितनी अच्छी है। मैं इसे धर्मराज को भेंट करूंगी। तुम मेरी इच्छा की पूर्तिके लिये काम्यवन के आश्रम में इसे ले चलो।
और मेरी इच्छा के लिए तुम बहुत सारे ऐसे फूल लेकर आओ। अब भीम ने वो कमल का फूल द्रौपदी को देकर, खुद और फूल लेने के लिए उस दिशा में चले गए जहाँ से फूलों की खुशबु आ रही थी।
Bhim Hanuman Sambad : भीम और हनुमान जी का संवाद
भीम चलते चलते कदलीवन में पहुंचे। इस वन में श्री हनुमान जी भी एक बूढ़े वानर का भेष बनाकर लेटे हुए थे। जब भीमसेन आगे बढ़ने लगे तो श्री हनुमान जी ने भीम का मार्ग रोक दिया। भीम की नजर हनुमान जी पर पड़ी। लेकिन भीम हनुमान को पहचान नहीं पाए। भीम ने हनुमान जी से कहा- तुम बीच में क्यों लेटे हो? मेरे रास्ते से हटो।
हनुमानजी बोले- भाई! मैं तो रोगी हूँ और यहां सुखसे सो रहा था। तुमने क्यों मुझे जगा दिया ? तुम कौन हो ? इस वन में तुम क्यों और किस लिये आये हो ?
भीम ने पूछा- तुम मेरे बीच में क्यों आ रहे हो? आप मेरे मार्ग से हट जाइये और अपनी पूछ को थोड़ा साइड में कीजिये। ताकि मैं यहाँ से निकल सकूँ।
हनुमानजी कहते हैं – भैया! मैं बूढ़ा हो गया गया हूँ। मुझसे हिला नहीं जा रहा है। तुम खुद ही मेरी पूछ को उठाकर एक ओर करदो।
ऐसा सुनते ही भीम को क्रोध आ गया। उसने हनुमानजी की पूछ उठाना चाहा, बहुत जोर लगाया लेकिन वो टस से मस नहीं हुई। आज दस हजार हाथियों वाले भीम को कुछ समझ नहीं आ रहा था की एक साधारण से दिखने वाले वानर की पूछ को वह साइड में नहीं कर पाया। पूछ एक ओर करने की बात तो दूर वह तो जरा सी भी नहीं हिली।भीम का मुंह लज्जा से झुक गया।
इधर हनुमान जी मुस्कुराने लगे। अब भीम जी समझ गए कुछ तो गड़बड़ है।
भीम हनुमान् जी के पास जाकर उनके चरणों में प्रणाम करके हाथ जोड़कर बोले-‘कपिप्रवर! मुझे क्षमा कीजिये और मुझ पर प्रसन्न होइये। आप कौन हैं ? कृपा करके बताइये।
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हनुमान जी कहते हैं – मैं राम का दास और वायु पुत्र हनुमान हूँ। इसके बाद हनुमान जी ने भीम को अपनी और राम जी के मिलन की पूरी राम कथा सुनाई। किस तरह से भगवान राम ने रावण को मारा और लंका पर विजय पाई। फिर श्रीराम ने मुझे कुछ वर मांगने को कहा। हनुमान जी बताते हैं- कमलनयन श्रीराम से यह वर मांगा कि – जबतक आपकी यह कथा संसार में प्रचलित रहे, तब तक मैं अवश्य जीवित हूं। भगवान् ने ‘तथास्तु’ कहकर मेरी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली।
भीम! श्रीसीता जी की कृपासे यहां रहते हुए ही मुझे इच्छानुसार सदा दिव्य भोग प्राप्त हो जाते हैं। श्रीरामजी ने ग्यारह हजार वर्षों तक इस पृथ्वीपर राज्य किया, फिर वे अपने परम धामको चले गये।
इसके बाद हनुमान जी कहते हैं कि यह मार्ग मनुष्यों के लिये अगम्य है। अतः इस देव सेवित पथ को मैनें इसीलिये तुम्हारे लिये रोक दिया था, कि इस मार्गसे जाने पर कोई तुम्हारा तिरस्कार न कर दे या शाप न दे दे; क्योंकि यह दिव्य देवमार्ग है। इस पर मनुष्य नहीं जाते हैं। तुम जहां जाने के लिये आये हो, वह सरोवर तो यहीं है।
अब भीम बड़े खुश हो गए और हनुमान जी का दर्शन पाकर गदगद हो गए। भीम कहते हैं- आज मेरे समान बड़भागी दूसरा कोई नहीं है; क्योंकि आज मुझे अपने ज्येष्ठ भ्राता का दर्शन हुआ है। अपने मुझ पर बड़ी कृपा की है। आपके दर्शन से मुझे बड़ा सुख मिला है। यहाँ पर भीम हनुमान जी से एक निवेदन और करते हैं कि- समुद्र को लांघते समय आपने जो अनुपम रूप धारण किया था, उसका दर्शन करने की मुझे बड़ी इच्छा हो रही हैं।
अब हनुमान् जी ने हंसकर कहा- ‘भैया! तुम उस स्वरूपको नहीं देख सकते; कोई दूसरा मनुष्य भी उसे नहीं देख सकता। ‘सत्ययुग का समय दूसरा था तथा त्रेता और द्वापर का दूसरा ही है। यह काल सभी वस्तुओं को नष्ट करनेवाला है। अब मेरा वह रूप है ही नहीं। पृथ्वी, नदी, वृक्ष, पर्वत, सिद्ध, देवता और महर्षि-ये सभी काल का अनुसरण करते हैं। प्रत्येक युगके अनुसार सभी वस्तुओं के शरीर, बल और प्रभाव में न्यूनाधिकता होती रहती है। इसलिए! तुम उस स्वरूपको देखनेका आग्रह न करो। मैं भी युगका अनुसरण करता हूं; क्योंकि काल का उल्लंघन करना किसी के लिये भी अत्यन्त कठिन है।
इसके बाद हनुमान जी ने भीम को चारों युगों के लक्षण बताकर कहा-तुम्हारा कल्याण हो, अब तुम लौट जाओ।
भीम ने अब एक बार फिर से हनुमान जी के विराट रूप का आग्रह किया। भीम को प्रेम में देखकर हनुमान जी ने अपना विराट रूप दिखाया और कहा कि भीम! मेरा विराट रूप इससे भी श्रेष्ठ है, इससे भी बड़ा है लेकिन जितना तुम देख सकते हो मैं उतना ही दिखा रहा हूँ।
हनुमान जी के रूप को देखकर भीम को बड़ा ही आश्चर्य हुआ। हनुमान जी सूर्य के सामान चमकने लगे। उनका शरीर सुवर्णमय मेरूपर्वतके समान था और उनकी प्रभासे सारा आकाशमण्डल प्रज्वलित-सा जान पड़ता था। उनकी ओर देखकर भीमसेनने दोनों आंखे बंद कर लीं और भीम डर से कांपने लगे।
अब भीमने हाथ जोड़कर अपने सामने खड़े हुए हनुमान् जी से कहा- ‘प्रभो! आपके इस शरीर का विशाल प्रमाण प्रत्यक्ष देख लिया। अब आप अपने रूप को समेट लीजिये।
भीम की बात मानकर हनुमान जी ने अपने रूप को समेट लिया। आज भीम धन्य हुए और उन्होंने हनुमान जी के चरणों में शीश नवाया। अब हनुमानजी ने भीम से कहा कि तुम कुछ वर मांगो। यदि तुम्हारी इच्छा हो कि मैं हस्तिनापुरमें जाकर तुच्छ धृतपुत्रोंको मार डालूं तो मैं यह भी कर सकता हूँ अथवा यदि तुम चाहो कि मैं पत्थरों की वर्षा से सारे नगर को रौंदकर धूल में मिला दूं अथवा दुर्योधन को बांधकर अभी तुम्हारे पास ला दूं तो यह भी कर सकता हूं।
भीम ने कहा- प्रभु! आप मुझ पर प्रसन्न रहिये- मुझ पर आपकी कृपा बनी रहे। आप-जैसे नाथ संरक्षक को पाकर सब पाण्डव सनाथ हो गये। आपके ही प्रभाव से हम लोग अपने सब शत्रुओं को जीत लेंगे’।
हनुमान जी ने भीम से कहा- हनुमान जी ने उनसे कहा-‘तुम मेरे भाई और सुहद हो, इसलिये मैं तुम्हारा प्रिय अवश्य करूंगा। ‘ जब तुम बाण और शक्तिके आघातसे व्याकूल हुई शत्रुओं की सेना में घुसकर सिंहनाद करोगे, उस समय मैं अपनी गर्जनासे तुम्हारे उस सिंहनाद को और बढ़ा दूंगा। उसके सिवा अर्जुन की ध्वजा पर बैठकर मैं ऐसी भीषण गर्जना करूंगा, जो शत्रुओं के प्राणोंको हरने वाली होगी, जिससे तुम लोग उन्हें सुगमता से मार सकोगे।
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